SHASHI KUMAR KESWANI
नमस्कार दोस्तों आज बात करते है एक ऐसे गीतकार की जो असल में देशभक्ति से लवरेज था। जिसे अपनी देशभक्ति के लिए जेल भी जाना पड़ा। जी हां दोस्तों ये तो उन्होंने खुद ने भी नहीं सोचा था कि वो एक दिन इतने बढ़े गीतकार बनेंगे। वे तो अपने दिल की भावनाओं को देश प्रेम के लिए लिखा करते थे। इनका नाम है श्यामलाल बाबू राय। बाद में वे आजाद के नाम से लिखने लगे। जेल की हवा खाने के बाद जब मुंबई पहुंचे तो शुरुआती दौर में इन्होंने आजाद के नाम से ही गीत लिखे। लेकिन अपने कुछ मित्रों की सलाह पर उन्होंने अपना नाम बदलकर इंदीवर रख लिया। दोस्तों इंदीवर एक ऐसे गीतकार बने जिन्हें शायद ही कोई फिल्म इंडस्ट्री में न जानता हो। इंदीवर भारत के प्रसिद्ध गीतकारों मे से एक थे। 1949 में फिल्म मल्हार के लिए लिखे उनके गीत बड़े अरमान से रखा है बलम तेरी कसम ने खासी शोहरत हासिल की।
चार दशक के फिल्मी करियर में 300 से ज्यादा फिल्मों में लगभग एक हजार गीत लिखे। ये ऐसे गीत है जिन्हें हर कोई गुनगुनाने पर विवश हो जाता है। 1976 में दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा गीत के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। इंदीवर का जन्म 15 अगस्त 1924 को उत्तर प्रदेश के झांसी के बरूवा सागर नामक कस्बे में हुआ था। हालांकि इसमें विवाद है कुछ लोगों का कहना है कि इनका जन्म 1 जनवरी 1924 को हुआ। हालांकि इस बात से इंदीवर ने कभी पर्दा नहीं उठाया। उनके पिता का नाम हरलाल राय था। बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया। जिसके बाद उनकी बड़ी बहन और बहनोई उन्हें अपने साथ लेकर चले गए। लेकिन कुछ समय बाद ही वे वहां से वापस आ गए। बचपन से ही उनकी गीत लेखन में काफी रुचि थी। जिसके चलते वे एक फक्कड़ बाबा के संपर्क में आए। वो बाबा बरूवा सागर में गुलाब बाग में एक विशाल पेड़ के नीचे अपना डेरा जमाकर रहते थे। वे कहीं भिक्षा मांगने नहीं जाते थे। धूनी के पास बैठे रहते थे। बहुत अच्छे गायक थे। फक्कड़ बाबा के सम्पर्क में इन्दीवर को गीत लिखने व गाने की रुचि जागृत हुई। इंदीवर बाबाजी का चिमटा लेकर राग बनाकर स्वलिखित गीत, भजन गाया करते थे। युवावस्था में उनका विवाह उनकी मर्जी के बिना झांसी की रहने वाली पार्वती नाम की लड़की से करा दिया गया। उसी बीच बिना मर्जी के अपनी शादी से रूठकर एक दिन वह मुंबई भाग गए।

उस समय उनकी उम्र केवल बीस साल थी। वहां फिल्म निर्देशकों, कवि-साहित्यकारों की परिक्रमा करते रहे। आखिरकार 1946 में फिल्म डबल फेस में उनका पहला गीत दर्शकों तक पहुंचा। गीत चला नहीं। वह फिर बरुवा सागर लौट गए लेकिन मुम्बई आते-जाते रहे। इधर दांपत्य जीवन सहज होने लगा था। दोबारा जाकर मुंबई में संघर्ष करने लगे। दीवर ने 1949 में फिल्म मल्हार के लिए लिखे उनके गीत ने खासी शोहरत हासिल की। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और पायदान-दर-पायदान बुलंदियां छूते गए। बताते हैं कि वह लाख कोशिश के बावजूद जब अपनी धर्मपत्नी पार्वती, जिसे वह पारो कहते थे, मुंबई न ले जा सके तो उनके गीत विरह और जुदाई के स्वाद में रंगने लगे थे। इसके बाद तो उनके एक से एक गीत चंदन सा बदन, मैं तो भूल चली बाबुल का देश, होंठों से छू लो तुम, फूल तुम्हें भेजा है खत में, प्रभु जी मेरे अवगुन चित ना धरो, कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे, है प्रीत जहां की रीत सदा, जो तुमको हो पसंद वही बात करेंगे, दुश्मन न करे दोस्त ने जो काम किया है आदि तमाम सुपरहिट गीत दिए। मनमोहन देसाई के निर्देशन में फिल्म सच्चा-झूठा के लिये उनका लिखा एक गीत मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुल्हनियां.. को आज भी शादियों के मौके पर सुना जाता है।