श्रुति कुशवाहा
सायरा बानो और राजकपूर में आजकल ठनी सी है… इधर सायरा बानो इठला के चलती, उधर राजकपूर की त्योरियां चढ़ जाती। कभी राजकपूर अपनी अकड़ दिखाते तो सायरा बानो नाक-भौं सिकोड़ लेती… बानो को राज फूटी आंख न सुहाते, और राज तो अपने नाम के मुताबिक़ यूं ही ख़ुद को राजा समझते, सो बानो की तरफ हमेशा ही हिकारत भरी नज़रों से देखा करते…
दोनों के चक्कर में अच्छे मियां और बेगम जान भी एक-दूसरे से उलझ-उलझ पड़ते हैं इन दिनों। जहां बेगम अपनी बानो को सीने से लगाए फिरती हैं, वहीं मियांजी भी राज की खातिर बेगम से ख़ुद होके झगड़ा मोल लेने लगे हैं…
कुछ ही दिन तो हुए और बानो जैसे बेगम की जान बन गई है। ये बात कोई बीसेक दिन पहले की है, बेगम छत पर धूप सेंकने गई तो देखा कि सफेद बालों वाली, भूरी आंखों वाली छोटी सी बिल्ली दुबकी-सहमी बैठी है। यूं ही बिल्लियां उनको बहुत प्यारी लगती है, उसपर इसने तो उन्हें जिन नज़रों से देखा, मानो दिल ही ले लिया…
बेगम बिल्ली को गोद में उठाए चली आईं, और मानो तबसे उसे गोद ही ले लिया जैसे। पहले सुबह उठते ही मियांजी को चाय का प्याला पकड़ाती थीं, अब पहले बिल्ली को दूध मिलता है तब जाके कहीं अच्छे मियां को चाय नसीब होती है…
न.न..बिल्ली न बोलिये साहब, जो बोल दिया तो बिल्ली नहीं लेकिन बेगम ज़रूर आपका मुंह नोंच लेंगी। इन साहिबान का बाकायदा एक नाम है, और नाम भी माशाअल्लाह…
मियांजी और बेगम दोनों सायरा बानो के कद्रदान हैं। लेकिन बेगम तो जैसे उनकी दीवानी ही हैं…सायरा बानों की खुली ज़ुल्फ़े, कपड़ों का सलीक़ा, चलने की अदा, वो तीर नज़र से देखना और सबसे खूबसूरत खरज वाली हंसी..बेगम तो बस कुर्बान हुए जाती उनपे। तो ज्यों ही उन्होने सफेद बालो वाली बिल्ली को देखा, एकदम उसे नाम दे दिया ‘सायरा बानो’। यूं ख़ुद उसे प्यार से बानो कहती हैं, लेकिन खबरदार जो किसी और ने ये गुस्ताख़ी की तो, बस उसकी ख़ैर नहीं…
तो साहब आजकल वक्त यूं गुज़रता है कि सायरा बानो बेगम की बगल में सोती हैं..रात पूरे बिस्तर पर उनका कब्ज़ा होता, वो जहां चाहे डेरा जमा ले। उनके हिसाब से मियांजी को अपने सोने की जगह एडजस्ट करनी पड़ती। सुबह उठते ही बिल्ली को नहलाने, फिर पुचकारकर दूध पिलाने, फिर धूप सेंकने, फिर दोपहर में दूध में ब्रेड या चपाती भिगोकर खिलाने में ही सारा वक्त निकल जाता बेगम का। इस बीच में वो ज़रा रहम कर मियांजी को चाय-वाय, खाना-वाना दे दिया करतीं बस…
तो बड़े मियां यूं ही खार खाए हुए हैं..असल सायरा बानो भी अब उन्हें हीरोईन की बजाय खलनायिका लगने लगी है। वो तो मौक़ा ही तलाश रहे हैं कि किस तरह इस बानो को बेगम से थोड़ा दूर किया जाए, और मौक़ा उन्हें मिल भी गया…
चार घर छोड़कर आशिक़ मियां रहते हैं, वाकई जानवरों के आशिक़ ही हैं वो..खासकर कुत्तों के। उनके घर जाने किन-किन नस्लों के कितने कुत्ते पले हुए हैं। अभी पिछले हफ्ते ही जब अच्छे मियां सैर को निकले तो आशिक़ साहब से दुआ सलाम हो गई, उसी दौरान उन्होंने मियांजी से पूछ लिया कि अच्छी नस्ल के कुत्तों के कुछ बच्चे हैं, यूं तो वो आठ-आठ हज़ार में बिकते हैं लेकिन अच्छे मियां चाहें तो एकाध ले जा सकते हैं…
हालांकि अच्छे मियां को जानवरों से प्यार है, फिर भी पालने के बारे में कभी सोचा नहीं था। लेकिन इस बार जैसे ही ये पेशकश हुई उन्होने झट मान ली। मान क्या ली, लौटते में छोटा सा प्यारा सा कुत्ता लेते ही आए। जैसे ही घर में घुसे तो मियांजी के हाथों में कुत्ते का बच्चा देख बेगम चौंक गईं, साथ ही उनकी गोद में बैठी बानो सहम सी गई। अपनी सायरो बानो को यूं डरा देख बेगम ने मियांज की क्लास ले ली…
मियांजी ने ये पहली बार बेगम की क्लास में गुस्ताख़ी की थी…बोल उठे- “ पहली बात ये कि इसे कुत्ता कहकर इसकी बेइज्ज़ती न करें, फिलहाल इसे पप्पी बुलाया जाए (जैसा कि आशिक मियां ने बताया कुत्ते के बच्चे को पपी कहते हैं), दूसरा, कल शाम तक इसका एक नाम रख दिया जाएगा, तीसरा जब आप अपनी मर्जी से सायरा बानो के तमाम नाज़ो-नखरे उठा सकती हैं तो मै भी एक पप्पी तो ला ही सकता हूं, चौथी और आखिरी बात, कल सुबह से इस पप्पी के लिये भी दूध की प्याली तैयार कर दिया करें ”…
बेगम अब कुछ कहने की हालत में नहीं थी..अबसे पहले वो ही हमेशा ही जानवरों को पालने के लिए इनकार करती आई हैं। लेकिन अब जो उन्होंने खुद बानो को गले लगा लिया तो वो मियांजी को मना करने की कोई सूरत नहीं। लिहाज़ा उन्होने उस वक्त चुप रह जाना ही बेहतर जाना..सोचा कि दो-चार दिन में इसका हल निकाल लिया जाएगा…
हल तो क्या ही निकलता..निकला एक और शानदार नाम। अच्छे मियां राजकपूर साहब के ज़बरदस्त मुरीद हैं। राजकपूर के चेहरे का भोलानप, आंखों की मासूमियत, आवाज़ का खरापन और सादगी भरी अदाएं उन्हें बहुत भाती। फिर पप्पी का नाम सायरा बानो की टक्कर का भी तो होना था..तो जनाबे पप्पी का नाम रखा गया ‘राजकपूर’…
बस उसी दिन से राजकपूर और सायरा बानो के साथ अच्छे मियां और बेगम की अनबन का सिलसिला भी शुरू हो गया। यूं बानो साइज़ में राज से कुछ बड़ी ही थी, लेकिन थी तो बिल्ली ही..सो पहले-पहल उसे कुछ डर सा लगा। लेकिन राजकपूर शायद किसी शांत नस्ल का कुत्ता था, तो उसने बानो को कोई नुक्सान पहुंचाने की कोशिश तो न की लेकिन उस तरफ से शुरू हुई दुश्मनी को बरकरार ज़रूर रक्खा…
अब सुबह उठ दोनों आंगन में एक-दूसरे को खा जाने वाली नज़रों से देख दूध पीते, बेगम इधर बानो को नहलाती उधर मियांजी राज की ड्राईक्लिनिंग शुरू कर देते। बेगम दिन में बानो के लिए दूध में चार ब्रेड भिगोती और राज के लिए तीन, मियांजी अपनी किताब की अलमारी से बिस्कुट का पैकेट निकाल चार बिस्कुट राज के सामने डालते और दो बानो के। यूं राज-बानो ने न कभी छीनाझपटी की न हाथापाई, लेकिन वो दोनों भी बखूबी समझ गए थे कि किसका आका कौन है…
इस खामोश झगड़े में बेगम और अच्छे मियां की अच्छी-ख़ासी ज़िंदगी जैसे जंग का मैदान बन गई। अपना खाना पीना आराम भूल दोनों सायरा बानो और राजकपूर की खिदमत में लगे रहते और एक-दूसरे से लड़ा करते। आज शाम तो बस हद ही हो गई, सर्दी बढ़ती देख बेगम ने पुराने कपड़ो से बानो के लिए एक झबला जैसा सिलकर उसे पहना दिया। बस ये देख अच्छे मियां का खून खौल उठा, उन्होने बेगम को चार जलीकटी सुना दी और ये भी कह दिया कि वो बाज़ार से राज के लिये गर्म बिस्तर ले आएंगे। बात इतनी बढ़ी कि झगड़ा सोने के कमरे तक पहुंच गया। लड़ते-लड़ते ही दोनों कब सो गए पता ही नहीं चला…
सुबह नींद खुली तो दोनों को ध्यान आया कि रात अपने झगड़े के चक्कर में उन्होंने न तो राज-बानो को खाना दिया, न ही उनके सोने का इंतज़ाम किया। चाहे जितना झगड़े लेकिन दिल तो मोम ही है दोनों का, सो भागे बाहर की तरफ…
क्या देखते हैं…बिस्कुट का पैकेट खाली पड़ा है, बिस्कुट के कुछ टुकड़े इधर-उधर छितराए पड़े हैं और राजकपूर-सायरा आपस में गलबहियां डाले सो रहे हैं। लग रहा है जैसे दो दोस्त लंबी लड़ाई के बाद फिर से गले मिले हो..दोनों के नन्हे-नन्हे खर्राटे सुनाई दे रहे हैं और ये इतना सुंदर नज़ारा है कि बेगम और अच्छे मियां दोनों ही कल रात का सारा झगड़ा पल भर में भूल गए…
हाथ-मुंह धो लो तब तक मैं चाय लाती हूं, राज और बानो को चाय पीकर उठाएंगे, और अबसे एक दिन तुम दोनों को नहलाना एक दिन मैं..कहकर बेगम रसोई में चली गई हैं, अच्छे मियां मंद-मद मुस्कुरा रहे हैं….

जानी मानी लेखिका