मध्यप्रदेश नगरीय – पंचायत चुनाव पीढ़ी परिवर्तन के प्रयोग में पिटती भाजपा…

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TIO BHOPAL

कॉलम में हमने करीब 1 महीने पहले लिखा था मध्य प्रदेश में भाजपा अपने सबसे कठिन दौर में है नेताओं की प्रतिक्रियाओं से ऐसी आशंका सही होने के संकेत मिल रहे हैं।दरअसल नगरी निकाय चुनाव से लेकर पंचायत के त्रिस्तरीय चुनाव में भाजपा को बगावत के कारण नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं। यह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। हालत यह है कि कमजोर संगठन के चलते समूची भाजपा मतदाता पर्चियां तक वितरित नहीं कर सकी। हालंकि यह काम जिला निर्वाचन अधिकारी का भी है। लेकिन भाजपा संगठन और उनका बूथ प्रबंधन अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकता। फिलहाल इस मुद्दे पर संगठन को बचाने के लिए चुनाव आयोग की पार्टी स्तर पर खूब आलोचना हो रही है। यदि नतीजे कुछ आसमानी सुल्तानी आते हैं तो संगठन का एक बड़ा हिस्सा इसके लिए राज्य सरकार को भी दोषी बनाने का मूड माहौल तैयार कर रहा है ऐसे में शिवसेना की तरह कुछ “संजय राउत” यहां भी बनते नजर आ रहे हैं जो चुनावी रण का आंखों देखा हाल अपने-अपने धृतराष्ट्र को जो वे सुनना पसंद करते हैं सुना रहे हैं। इसमें भाजपा के साथ संघ परिवार के दिग्गज भी शामिल हैं।

वार्डों में वोटर पर्ची बांटने से लेकर उम्मीदवार के बिना भी मोहल्लों में घर घर वरिष्ठ और युवा कार्यकर्ताओं की टोलियां गायब थीं। आमतौर से 45 से 65 वाले अनुभवी कार्यकर्ता के पास कोई काम नही था। पीढ़ी परिवर्तन के नाम पर घर बैठे रहे या घर बैठा दिए गए।
पार्टी के वफादार कार्यकर्ता अपने मुद्दे पर चुनाव आयोग पर ऐसे पल पड़ी है जैसे चुनाव लड़ना भाजपा या कांग्रेस का नहीं बल्कि चुनाव आयोग का ही काम है अब अपनी कमजोरी छुपाने के लिए भाजपा के कई नेता शिवसेना के संजय रावत की भूमिका में नजर आने का प्रयास करते दिख रहे हैं। कोई यह नहीं पूछ रहा है कि आखिर बूथ प्रबंधन की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले नेता और उनके कार्यकर्ता कहां हैं? पन्ना प्रमुख, पन्ना प्रभारी, मेरा बूथ सबसे मजबूत के नारे सब कहां है हवा हो गए..? अभी तक जो खबरें आ रही हैं उसके मुताबिक मजबूत भाजपा का मजबूत संगठन कागजी साबित होता दिख रहा है। कड़वा है पर अभी तो यही सच होता दिख रहा है।


नतीजा जो भी आए कम से कम भाजपा को एक बार फिर अपने गिरेबान में झांकने और दिल टटोलने की जरूरत है कि आखिर इतनी सशक्त भाजपा ऐसी असहाय कमजोर और लाचार क्यों हो गई पीढ़ी परिवर्तन का नुस्खा यहां इस कदर पिटता दिखाई क्यों दे रहा है..? सक्रियता के साथ शांत और शालीन रहने वाली भाजपा के भीतर अंतर कलह के ज्वार भाटा चढ़ते और उतरते दिख रहे हैं। ऐसा लगता है चुनाव नतीजों के बाद कुछ बड़ा होने वाला है। इसलिए अभी से सब के सब पांचवीं क्लास के बच्चों की भांति अपने मास्टर,हेडमास्टर, प्रिंसिपल की नाराजगी से बचने के लिए बहाने बनाने और खोजने में जुट गए हैं।


कोई कद्दावर नेता नही…
भाजपा में आदमकद और कार्यकर्ताओं के बीच कद्दावर नेताओं की खासी कमी देखी जा रही है। यही वजह है कि इस बार के चुनाव में बगावत और भितरघात ने भी रिकॉर्ड बनाए हैं। अनुशासन की करवाई में चिट्ठी न नोटिस, प्रभावी संवाद न संपर्क सीधे बर्खास्तगी ने भाजपा के हालात नेतृत्व को चिंता में डाले हुए हैं। ऐसा कम ही होता था।


संगठन की एमपी और एमएलए की खूब चली
मेयर , पार्षद प्रत्याशी चयन में संगठन के बजाए विधायक और सांसदों की सिफारिश पर अमल ज्यादा किया गया। उनके पसंदीदा नेताओं को पार्षद से लेकर महापौर के टिकट दिए गए ऐसे में जो संगठन के प्रति समर्पित थे उन कार्यकर्ताओं की अनदेखी हुई। यही कारण है कि लगभग करीब छह हजार वार्डों में 25 फ़ीसदी बागी उम्मीदवार खड़े हुए हैं। वे किसी के समझाने बुझाने पर भी नाम वापसी के लिए राजी नही हुए। यही सबसे बड़ी चिंता की वजह है।
बिना संगठन मंत्रियों के चुनाव
भाजपा में संगठन के प्रति समर्पित चरित्रवान और चाल चलन चेहरे में सुयोग्य संगठन मंत्रियों की लंबी कतार रही है ऐसे ही संगठन मंत्री भाजपा की ताकत भी रहे हैं यही कारण है कि सुपात्र संगठन मंत्री कार्यकर्ताओं के साथ न्याय और उन्हें परिष्कृत और समय आने पर पुरस्कृत भी करते आए हैं लेकिन पिछले कुछ सालों से संगठन मंत्रियों की उत्कृष्टता में गिरावट आने के कारण पार्टी ने जिला और संभाग के संगठन मंत्रियों की व्यवस्था कोई समाप्त कर दिया अब नए नए संगठन महामंत्री बने सीताराम शर्मा हित आनंद शर्मा को भाजपा जब तक समझ में आएगी तब तक विधानसभा और लोकसभा के चुनाव भी संपन्न हो चुके होंगे। इसलिए भाजपा के पुराने नेता सुपात्र संगठन मंत्रियों के भाजपा में आने की आस लगाए बैठे हैं। मध्य प्रदेश को संगठन के लिहाज से संघ और भाजपा दोनों ही प्रयोगशाला बनाए हुए हैं। अभी तक जितने भी प्रयोग हुए हैं उसने लोगों को निराश ज्यादा किया है। बहुत संभव है इसमें नेता चयन का दोषपूर्ण होना।
मध्यप्रदेश में भाजपा संगठन और विचारों के प्रति समर्पण से लेकर चाल चरित्र और चेहरे के मामले में पार्टी के नंबर बढ़ने के बजाय घटाएं ज्यादा है। पंचायत और नगरी चुनाव में पार्टी की जो हालत है उसके लिए अच्छे संगठन मंत्रियों की कमी और समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जा रही है।


सीएम शिवराज का भी धीरज टूटता सा दिखा
प्रत्याशी चयन से लेकर चुनावी प्रबंधन तक में भाजपा के भीतर जो चल रहा है उसने डैमेज कंट्रोल को लेकर सबसे कमजोर प्रदर्शन किया इसके चलते कई जगह मुख्यमंत्री के नाते शिवराज सिंह चौहान को दखल देना पड़ा हालत यह हुई कि उन्हें अपने गृह क्षेत्र में भी बागियों को संभालने के लिए खुद मोर्चा लेना पड़ा। संगठन के मुद्दे पर मुख्यमंत्री अपने जिले के पदाधिकारियों से भी संतुष्ट नजर नहीं आए। उन्होंने असंतुष्ट को संभालने में असफल जिला टीम को आड़े हाथों लेते हुए खरीखोटी सुनाई। मुख्यमंत्री के गृह जिले सीहोर की शाहगंज नगर परिषद मैं अलबत्ता निर्विरोध निर्वाचन का रिकॉर्ड बनाया है यहां पर संगठन और खास तौर से सांसद रमाकांत भार्गव को संवाद और समन्वय में पूरे 100 में से 100 नंबर मिलेंगे। सांसद भार्गव की रणनीति और व्यवहार के चलते हैं पार्षद से लेकर अध्यक्ष तक निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं। असल में मुख्यमंत्री संगठन की शक्ति और समन्वय का जो रूप शाहगंज में दिखा उससे सीएम खासे खुश नजर आए।