भोपाल। विधानसभा के चुनावी भंवर में भाजपा के 13 प्रदेश पदाधिकारी ऐसे घिरे कि अपने क्षेत्र से बाहर ही नहीं निकल पाए। प्रमुख पदाधिकारी के नाते उनसे अपेक्षा थी कि पार्टी के अन्य उम्मीदवारों की मदद करेंगे, लेकिन वे अपनी सीट ही बचाने की जद्दोजहद करते रहे। एक प्रदेश मंत्री राघवेंद्र सिंह लोधी तो टिकट न मिलने पर निर्दलीय ही मैदान में कूद गए। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं जबलपुर सांसद राकेश सिंह की टीम के कुल 11 उपाध्यक्षों में से 8 चुनावी मैदान में थे। पार्टी के कोषाध्यक्ष, मंत्री और महामंत्री जैसे पदाधिकारी भी चुनावी अखाड़े में दो-दो हाथ करते नजर आए।
13 BJP office bearers trapped in electoral vault, can not get out of their area
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की टीम के एक चौथाई से अधिक पदाधिकारी पूरे समय चुनावी चक्रव्यूह में फंसे रहे। प्रदेश पदाधिकारी के नाते पार्टी को उनसे उम्मीद थी कि वे पड़ोसी जिलों में जाकर दूसरे प्रत्याशियों को भी मदद करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। ये सभी दिग्गज नेता अपने ही क्षेत्र में घिर गए थे। यहां तक कि देवास सांसद एवं पार्टी के महामंत्री मनोहर ऊंटवाल आगर विधानसभा से उम्मीदवार थे।
उनके खिलाफ कांग्रेस के युवा तुर्क एवं भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के प्रदेश अध्यक्ष विपिन वानखेड़े ताल ठोक रहे थे। पहली बार चुनावी मैदान में उतरे वानखेड़े की चुनौती के चलते परिपक्व राजनेता ऊंटवाल अपने संसदीय क्षेत्र की विधानसभाओं में भी पार्टी के प्रचार के लिए समय नहीं निकाल पाए।
क्षेत्र में ही घिरे रहे
कमोबेश यही स्थिति भाजपा के प्रदेश कोषाध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल की बैतूल में रही। उनके खिलाफ भी कांग्रेस ने अपने नए नवेले प्रत्याशी निलय विनोद डागा को मैदान में उतारा तो खंडेलवाल भी चुनावी भंवर में ऐसे उलझे रहे कि दूसरे प्रत्याशियों की मदद करने नहीं निकल पाए। उनके सामने अपने क्षेत्र के मतदाताओं से डोर-टू-डोर संपर्क की चुनौती बनी रही।
खंदक की लड़ाई
भाजपा संगठन के चार मंत्री भी चुनावी अखाड़े में मौजूद थे। इनमें तीन शरदेंदु तिवारी, ब्रजेंद्र प्रताप सिंह और कृष्णा गौर को तो पार्टी ने टिकट दे दिया, लेकिन राघवेंद्र सिंह लोधी ‘ऋषि भैया” जबेरा से निर्दलीय ही मैदान में कूद पड़े। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के खिलाफ शरदेंदु पूरे समय अपनी खंदक की लड़ाई लड़ते रहे। पिछली बार पवई में चुनाव हार चुके ब्रजेंद्र को पार्टी ने इस बार पन्नाा में मंत्री कुसुम सिंह महदेले को घर बिठाकर मैदान में उतारा है। उनके सामने कांग्रेस-बसपा सहित चौतरफा चुनौतियां इतनी थीं कि पुराने क्षेत्र पवई और गुन्नाौर में प्रचार करने की सोच भी नहीं पाए।
अपनी नैया ही संभालते रहे
आठ उपाध्यक्षों में रामेश्वर शर्मा भोपाल की हुजूर सीट पर कांग्रेस के नरेश ज्ञानचंदानी की चुनौतियों से दो-चार हो रहे थे। उन्हें पार्टी की अंदरूनी चुनौतियों से भी जूझना पड़ा। भिंड जिले में अटेर से उपचुनाव हार चुके अरविंद भदौरिया को भाजपा ने फिर कांग्रेसी उम्मीदवार हेमंत कटारे को टक्कर देने भेजा। इंदौर की ऊषा ठाकुर अंतिम क्षणों में अपना क्षेत्र बदल दिए जाने से महू में हैरान-परेशान बनी रहीं।