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9/11 हमले की आज बीसवीं बरसी है। बीस साल में सबकुछ बदल चुका है। वॉर ऑन टेरर की बात करने वाला अमेरिका अफगानिस्तान को तालिबान के हवाले कर के जा चुका है। अमेरिका की इस नीति की दुनिया भर में आलोचना हो रही है।
इस जंग में अमेरिका की ओर से जान दांव पर लगाने वाले अमेरिका के फौजी भी अमेरिका के तौर-तरीकों की जमकर आलोचना कर रहे हैं। उनका कहना है कि 2001 में युद्ध की शुरुआत से ही अमेरिका का उद्देश्य साफ नहीं था। अफगानिस्तान में लड़ते-लड़ते अचानक इराक पर हमला कर दिया गया।
शुरुआत में सिर्फ स्पेशल ऑपरेशन के जरिए तालिबान को उखाड़ फेकने वाला अमेरिका एक लाख से ज्यादा फौजी वहां तैनात कर चुका था। लगातार अमेरिकी फौजी मारे जा रहे थे। आतंक के खिलाफ लड़ाई कभी लोकतंत्र तो कभी अफगानिस्तान को बनाने में बदल गई।
इन बीस सालों में अफगानिस्तान में कई बार तैनात किए गए पांच अमेरिकी फौजियों से जानिए किस तरह बार-बार बदलता रहा अमेरिका का स्टैंड।
जब नेवी सील की एक टीम ने पाकिस्तान में बिन लादेन को मार डाला और उसके शव को समुद्र में मीलों दूर फेंक दिया गया उस वक्त 26 साल की मर्सडीज एलियास मरीन फर्स्ट लेफ्टिनेंट के रूप में अफगानिस्तान पहुंचीं।
एलियास बताती हैं कि उनका काम दक्षिणी हेलमंड प्रांत में स्मॉल आउटपोस्ट पर सप्लाइस का मूवमेंट ट्रैक करने का था। लेकिन जल्दी ही वह काम बदल गया। कैंप ड्वायर (बेस का नाम) बेस पर तैनाती के ठीक तीन महीने बाद एलियास को सैनिकों को वापस अमेरिका भेजने के आदेश मिलने लगे।
एलियास इसे लेकर कहती हैं कि उन्हें लगा था कि हम यहां एक खास मिशन के लिए आए हैं, लेकिन अब कहा जा रहा है कि लोगों को वापस भेजना है। अगर यही करना था तो हम यहां आए ही क्यों थे?
एलियास कहती हैं कि अप्रैल 2012 में जब वे वहां से वापस अमेरिका आ रही थीं, तब अफगानी सिविल कॉन्ट्रैक्टर्स अमेरिकी सेना के लिए कई सारी नई फैसिलिटी तैयार कर रहे थे। जिसे इस्तेमाल करने का मौका अमेरिकी सेना को कभी मिला ही नहीं। यह बिल्कुल ऐसा था जैसे किसी को कुछ पता ही नहीं है कि क्या करना है और क्या होने वाला है।
पूर्व राष्ट्रपति ओबामा की स्पीच से अफगानिस्तान में ड्यूटी करने के लिए प्रेरित हुए लेफ्टिनेंट (उस वक्त) मैथ्यू अर्चुलेटा 2012 में गजनी प्रांत पहुंचे। उस वक्त अफगानिस्तान में 1,00,000 अमेरिकन फोर्सेस पहुंच चुकी थीं।
मैथ्यू बताते हैं कि हमें निर्देश दिए गए थे कि हम अफगानों के साथ साझेदारी करें, लड़ाई का नेतृत्व करें लेकिन उन्हें खुद का नेतृत्व करने के लिए ट्रेनिंग दें। उस वक्त एक बात मेरे दिमाग में थी कि हम हमेशा यहां नहीं रहने वाले हैं, इसलिए हमें उनकी मदद करनी होगी ताकि बाद में वो खुद अपनी मदद कर सकें। जबकि ऐसा हो नहीं पाया। यानी अफगानी सेना अपनी मदद नहीं कर पाई और अब वहां हालात पूरी तरह से बदल चुके हैं।
अर्चुलेटा कहते हैं कि मुझे पहले से पता था कि पूर्वी अफगानिस्तान आसानी से अलग हो सकता है या उसपर कब्जा किया जा सकता है, क्योंकि वहां के आदिवासी मतभेदों की वजह से कम समय में किसी समस्या का समाधान निकालना मुश्किल होगा।
मैथ्यू अर्चुलेटा बाद में ग्रीन बेरे बन गए और कैप्टन बनने के बाद 2020 में उन्होंने आर्मी छोड़ दी थी।
अफगानिस्तान पर संपूर्ण कब्जा करने के बाद तालिबान अपने सबसे बड़े दुश्मन अमेरिका के सबसे बड़े जख्म को कुरेदने की फिराक में था। बताया जा रहा है कि तालिबान अमेरिका के 9/11 आतंकी हमले की बरसी के मौके पर शपथ-ग्रहण समारोह आयोजित करने वाला था लेकिन सहयोगियों के दबाव के बाद इसे रद्द कर दिया है।
अफगान सरकार के सांस्कृतिक आयोग के सदस्य इनामुल्ला समांगानी ने ट्विटर पर जानकारी देते हुए कहा कि नई अफगान सरकार का शपथ ग्रहण समारोह कुछ दिन पहले ही रद्द कर दिया गया था। लोगों को और भ्रमित न करने के लिए हमने नई सरकार गठन का फैसला लिया था और यह अब काम करना शुरू कर दिया है।