नई दिल्ली। करीब सवा करोड़ कारोबारियों को जीएसटी के दायरे में ले आने का दावा करने वाली सरकार अब इसकी जमीनी हकीकत को समझने लगी है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि करीब 21% जीएसटी रजिस्टर्ड कारोबारियों ने एक भी पैसा टैक्स नहीं दिया है, जबकि 10% ने तो कभी रिटर्न ही नहीं भरा है। लेकिन इनके चलते सिस्टम पर लोड और सरकार की टैक्स कलेक्शन की लागत जरूर बढ़ गई है। सरकार इनमें से कइयों को बाहर करने और कुछ रियायतों के साथ कंप्लायंस के रास्ते पर लाने पर विचार कर रही है।
21% of GST registered traders did not pay any tax, tax collection cost of government increased, getting upset
30 नवंबर तक जीएसटी के तहत कुल रजिस्टर्ड कारोबारियों की संख्या 1.17 करोड़ रही, जिनमें से 25 लाख ने अब तक जीरो टैक्स रिटर्न फाइल किया है, जबकि 12 लाख ने अब तक कोई रिटर्न ही नहीं भरा है। दिल्ली में 7 लाख रजिस्टर्ड डीलर्स में से औसतन 70 हजार ने निल टैक्स रिटर्न फाइल किया है।
जीएसटी काउंसिल मीटिंग की तैयारियों में जुटे दिल्ली जीएसटी के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि निल टैक्स फाइलर और नॉन-फाइलर केंद्र और सभी राज्यों के लिए चुनौती बने हैं, क्योंकि नेटवर्क पर लोड के साथ ही टैक्सपेयर्स बेस में इन्हें मेंटेन करने पर भारी लागत आती है। इनमें से कुछ बोगस रजिस्ट्रेशन हो सकते हैं, लेकिन ज्यादातर ऐसे हैं जो किसी वजह से अनुपालन नहीं कर रहे। ऐसे लोगों को एम्नेस्टी स्कीम या एकमुश्त लेनदेन के जरिए सिस्टम से बाहर करने या टैक्स भरवाने पर विचार किया जा रहा है, लेकिन इसका प्रारूप तय नहीं हो सका है।
आगामी काउंसिल मीटिंग में भी इस पर चर्चा हो सकती है। मसलन, लेट फीस माफी योजना लाकर नॉन-फाइलर्स को रिटर्न फाइल करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। यह साफ है कि निल टैक्स फाइलर्स की वास्तविक टैक्स लायबिलिटी भी बहुत ज्यादा नहीं होती, लेकिन वे टैक्स चोरी के साथ-साथ कुछ तकनीकी वजहों से भी भुगतान नहीं करते।
ऐसे लोगों को भी माफी योजना या पुराने डिफॉल्ट पर कोई कार्रवाई नहीं करने जैसा भरोसा देकर आगे लाया जा सकता है। इससे कम से कम टैक्सपेयर्स बेस साफ करने और लोड घटाने में मदद मिलेगी। अधिकारियों का मानना है कि आम तौर पर हर टैक्स एमनेस्टी स्कीम से कम से कम 10-15 पर्सेंट रिकवरी जरूर होती है। फिलहाल मंथली जीएसटी रिटर्न के लिए लेट फीस 50 रुपये प्रति दिन और निल फाइलर्स के लिए 20 रुपये प्रति दिन है।