तुम आया न करो

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मेरे ख्वाबों में
ख्यालों में
खुद से पूछे गए
सवालों में
सुनो
तुम आया ना करो..
ये जो आ जाते हो ना
बेवजह अनजाने से
जब भी जिक्र खुद का
लोगों से किया मैं करता हूँ
कि ये जो आकर
बैठ जाते हो ना
आँखों में मेरी
जब भी खुद को
सोचा मैं करता हूँ
मेरी बातें
मेरी आँखें
जागीर मेरी हैं
कोई अमानत नहीं तुम्हारी
इन पर हक़ दिखलाने को
 सुनो
तुम आया न करो…
कि ये जो
ढलते सूरज के साथ
उस पार क्षितिज के
हाथ पकड़ मेरा
ले जाते हो ना..
जिस रात सोच
लेता हूँ
तुमको
नींदों में अपनी
फिर अगली सुबह
मेरे आंगन की
हरी सी दूब पर
ओस की बूंदें बनकर
सुनो
तुम आया ना करो….
तुम आते हो दो पल के लिए
फिर हम
तन्हा हो जाते हैं
फिर दूर कहीं से
हाथ हिलाते
तुमको जाते देखा करते हैं
दूर कहीं पर
नदी किनारे
पैरों को पानी में डाले
एक शाम हम
साथ  तुम्हारे
यूँ ही सोचा करते हैं
फिर लगता है तुम सपना हो
नींद खुलेगी उड़ जाओगे
पलकों के कोने से जैसे
तुम धीरे से बह जाओगे
ऐसे सपने दिखलाने को
सुनो
तुम आया न करो….
अनुराग सिंह परिहार
एक्स एयर फोर्स आई टी इंजीनियर