बाखबर
राघवेन्द्र सिंह
सियासत के खेल में जब मुकाबला कांटे का दिखे तो जुड़ाव,जुगाड़ और मुकद्दर ही बादशाह बनाता है। मध्यप्रदेश समेत चार राज्यों में चुनाव की तारीख का ऐलान होने के साथ ये तीन चीजें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। सूबे के लिहाज से राजनीति का गुणा भाग समझने के लिए दस साल पुराने पन्ने पलटने होंगे। कभी भाजश ने भाजपा को चिंतित किया था तो आज सपाक्स और जयस भाजपा को परेशान किये हुए है। इसमें गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और सपा बसपा को भी जोड़ा जा सकता है। मगर अलग अलग मैदान में उतरे ये दल कितने ताकतवर इस पर अभी माथा पच्ची होना बाकी है। अंतिम फामूर्ले में जो जनता और कार्यकर्ता से जुड़ेगा जीत की जुगाड़ उसी की होगी।
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2008 में उमा भारती की भारतीय जनशक्ति पार्टी को गेम चैंजर माना जा रहा था। इस फायर ब्रांड लीडर ने तीन खास विशेषताएं थीं। एक तो वे साध्वी होने के साथ पिछड़ा वर्ग की थीं और महिला होने के कारण आधी आबादी पर उनका सीधा हक बनता था। 2003 में भाजपा को 173 सीटें जिताने के बाद नौ महिने बाद ही उन्हें मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था। इस नाते जनता की स्वाभाविक तौर पर उनके प्रति सहानूभूति भी थी। भाजपा से नाराज वोटर और कार्यकर्ता बगावत के मूड में था। ऐसे में भाजश न होती तो अधिकांश वोट कांग्रेस के खाते में जाते। मगर इस मामले में उस समय की एक महिला मंत्री ने चिंतित नेताओं से कहा अगर भाजश मैदान में रहेगी तो हमारे लिए फायदे का सौदा है फिर जो नतीजे आए उससे भाजपा फिर सरकार में आई।
चुनावी मुकाबला पार्टियों के अलावा अगर देखा जाए तो नेताओं की छवि लोकप्रियता और उनके सहज सरल व्यवहार को भी मतदाता महत्व देते हैं । इस मामले में कांग्रेस में दिग्विजय सिंह का कोई तोड़ अभी तक नहीं है और भाजपा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जनआशीर्वाद यात्रा, भाषणों और आचार संहिता के पूर्व घोषणाओं के जरिए चचार्ओं में है। चुनाव में ये दोनों नेता ही एक दूसरे का गेम प्लान बदलने का माद्दा रखते हैं। दिग्विजय सिंह जनता में सीधे जाने की बजाए कार्यकतार्ओं को सक्रिय करने में लगे हैं।
उनकी सहजता और सरलता की तुलना शिवराज सिंह से की जाती है। अलग बात है कि तेरह साल के मुख्यमंत्री अब जनता से जुड़ने के मामले में दिग्विजय सिंह से आगे निकल गए हैं। इसके पीछे वजह भी है कि उन पर कांग्रेस बंटाढार जैसा कोई जुमला चस्पा नहीं कर पाई। जितने नेता मैदान में हैं उनमें परिश्रम और पराक्रम के मामले में शिवराज सोलह सोलह घंटे जनआशीर्वाद यात्रा में लगे हैं।कभी रात को तीन बजे तो कभी सुबह छह बजे वे घर लौटते हैं।
हम तुलना कर रहे हैं कि विपक्ष में इस तरह का परिश्रम कौन कर रहा है। कमलनाथ ,ज्योतिरादित्य सिंधिया और सपाक्स से लेकर आप,बसपा,सपा,गोंगपा वामपंथी दल जनता और कार्यकर्ता के बीच कितने घंटे बिता रहे हैं। परीक्षा सिर पर हो तो विद्यार्थियों से पढ़ाई के घंटे जरूर पूछे जाते हैं। ऐसे में विपक्ष को क्या एट्रोसिटी एक्ट प्रमोशन में आरक्षण मंहगा डीजल पेट्रोल न फरमान नौकरशाही,भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर क्या जनता के बीच 16-16 घंटे नहीं रहना चाहिए। हम किसी भी दल को सत्ता की बी टीम नहीं कहना चाहते। मगर भाजपा को हराना है तो विपक्ष की एकजुटता ही इसका मूलमंत्र हो सकती है।
चुनाव के बारे में अभी से कुछ भी कहना हवा में गांठ लगाने जैसा होगा। प्रत्याशियों की घोषणा और कांग्रेस का दूसरे दलों से कितना गठबंधन हो पाता है। इसके बाद ही कुछ कहना,सुनना और लिखना सच्चाई के निकट होगा। सबने देख लिया माया तो महाठगनी साबित हो रही है। गोंगपा को भी अपनी छवि साफ करनी होगी। सपाक्स सियासत के खेल में नया खिलाड़ी है इसलिए उम्मीदवार घोषित होने के पहले अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। कुल मिलाकर जनता और कार्यकर्ता से फेविकाल की तरह जुड़ाव और देसी अंदाज में जिसकी जुगाड़ होगी जीत की गुंजाईश उसी की ज्यादा दिखेगी। अभी तो तेल और तेल की धार देखने का समय है।
अपनों की नाफरमानियों से मुश्किल…
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिस नौकरशाही को आलपिन से भी खरोंच नहीं लगाना चाहते थे, वही नौकरशाही उन्हें महत्वपूर्ण मुद्दों पर गच्चा देती नजर आ रही है। पुजारियों के आंदोलन के बाद मुख्यमंत्री की घोषणा के मुताबिक आदेश नहीं निकालना भाजपा के लिए मुश्किल का सबब बना हुआ है। पुजारियों को दस एकड़ जमीन नीलाम करने का ही हक मिला है, जबकि मुख्यमंत्री ने बीस एकड़ की घोषणा की थी।
ऐसे ही मुख्यमंत्री निवास पर व्यापारियों के सम्मेलन में जो टिप्पणियां सुनने को मिली उससे साफ हुआ कि वे अधिकारियों से ज्यादा नाराज हैं। इस दौरान मुख्यमंत्री चौहान ने जब कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ईश्वर का अवतार हैं तब त्वरित प्रतिक्रिया में व्यापारियों ने कहा कि उन्होंने हमारा गला काट दिया है। सपाक्स भी केन्द्र के एट्रोसिटी एक्ट के दोबारा लागू करने की उपज है। इसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का प्रमोशन में आरक्षण के लिए कोई माई का लाल इस हक को नहीं छीन सकता वाला जुमला भी भाजपा पर भारी पड़ रहा है।
हालत सांप छछूंदर जैसी हो गई है। न निगलते बनता है न उगलते। इस बीच व्यापारियों ने ये भी कहा कि शिवराज ही हैं जो भाजपा को सरकार में लाने के लिए डैमेज कंट्रोल कर सकते हैं। खास बात ये है कि सीएम हाउस में व्यापारियों के सम्मेलन में जो दर्द बयां कर रहे थे वे भाजपा के समर्थक ज्यादा थे।