चुनावी दंगल : हकों का लॉलीपॉप देने वाले दलों के पास समानता का रोडमैप नहीं

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पंकज शुक्ला,

मप्र में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है। अब अगले दो माह चुनाव प्रचार का शोर होगा। जीत का जश्न होगा, हार पर आगे बढ़ने का संकल्प होगा। कुछ मुद्दे इन दिनों पर भारी होंगे और ये भारी भरकम मुद्दे कपूर की तरह काफूर भी हो जाएंगे। आरक्षण का विरोध कर आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग करते हुए सपाक्स चुनाव मैदान में उतरने को लालायित है तो जय आदिवासी संगठन यानि जयस भी है जो आदिवासी हकों को लेकर बिगुल फूंक रहा है। ये कदम सही भी हैं, जब मौका और दस्तूर दोनों हों तो अपने हक की बात कर ही लेनी चाहिए। मगर, इन सारी ही आवाजों में समानता की आवाज गायब है। अधिकारों के स्वर बुलंद हैं, कर्तव्य की इबारत मौन हैं। इससे लेकर दूजे को देने का भाव तो है मगर समग्रता का कोई रोडमैप नजर नहीं आता।
Electoral riots: Do not have a road map of equality with parties giving the lollipop of rights
आईएएस अधिकारी राजीव शर्मा ने अपने अनुभवों के आधार पर फेसबुक पर एक पोस्ट साझा की है। वे लिखते हैं झ्रह्ययदि दृष्टि और प्रज्ञा हो तो छोटे देश भी महान कार्य कर सकते हैं। भूटान के सरकारी स्कूल शानदार हैं क्योंकि वर्तमान राजा के पिता जिग्मे सिंगमे वांगचुक ने अपने राजकुमार को दार्जिलिंग दून या लंदन भेजने की बजाय महल के पास वाले सरकारी स्कूल में भेजा।

फिर क्या था मन्त्रियों, उच्च अधिकारियों, धनाढ्यों के बच्चे भी वहीँ आ गए। नतीजा जर्जर बदहाल स्कूल ही नहीं पूरा शैक्षणिक तंत्र दुरुस्त हो गया। मुझे यह प्रसंग जानकर लोहिया याद आए जो रानी और मेहतरानी को सम दृष्टि से देखते थे। प्रजातंत्र चुनावी मोल तोल के दुष्चक्र से बाहर निकले और जाति धर्म अर्थ के भेदभाव से परे सब बच्चों को एक शिक्षा का अवसर दे यह कठिन है पर असंभव नहीं। जब तक यह स्वप्न अपूर्ण है तब तक न संविधान का कोई अर्थ है न लोकतंत्र का।

संयोग से राजीव शर्मा उस सामान्य, पिछडा वर्ग कर्मचारी अधिकारी संगठन सपाक्स के संरक्षक हैं जो इन दिनों मप्र के विधानसभा चुनाव में पूरे दम-खम से मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। सपाक्स पार्टी ने आरक्षण के मुद्दे को अपनी ताकत बनाया है। पार्टी के पहले अध्यक्ष हीरालाल त्रिवेदी ने कहा है कि उनकी पार्टी आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था के खिलाफ है और आर्थिक आधार पर आरक्षण की पक्षधर। सुप्रीम कोर्ट भी स्पष्ट कर चुका है कि अनुसूचित जाति-जनजाति में क्रीमीलेयर तय करना होगा।

पार्टी अध्यक्ष को अपना मत साफ करना पड़ा क्योंकि सोशल मीडिया पर यह सूचना तेजी से फैल गई थी कि सपाक्स पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण देने का मन बना चुका है। पार्टी के अध्यक्ष त्रिवेदी कहते हैं कि सपाक्स सभी वर्गों में समानता की पक्षधर है और आर्थिक आधार पर आबादी के मान से 50 फीसदी की मांग करती है। इसमें अनुसूचित जाति के लिए 8 फीसदी, जनजाति के लिए 10 फीसदी, पिछड़ा वर्ग के लिए 23 फीसदी और सामान्य वर्ग के लिए 9 फीसदी आरक्षण होगा। पार्टी का कहना है कि आरक्षण का लाभ एक परिवार को एक ही बार दिया जाए। ताकि वर्ग के अन्य लोगों को भी यह लाभ मिल सके और वे अपना जीवन स्तर सुधार सकें।

फौरी तौर पर तो यह बात बहुत अच्छी लगती है मगर इसके पीछे के अबूझ सवालों को अनदेखी करना भी किसी खतरे से खाली नहीं है। सवाल यह है कि दो बेटों वाले परिवार में आरक्षण का लाभ एक बेटे को मिलेगा तो दूसरे बेटे का क्या होगा यदि वह बेटा आरक्षण का लाभ लेकर अलग चला गया तब भी परिवार को आरक्षण का या अन्य सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा यह तो एक उलझन हैं। नारों के ओट में छिपी ऐसी और भी उलझने हैं जिन पर अभी ध्यान न दिया जा रहा क्योंकि अभी सभी का मकसद चुनाव जीतना है।

चुनाव जीतने के बाद वर्तमान ढर्रे में आमूलचूल बदलाव का रोडमैप क्या होगा, इस सवाल का उत्तर किसी भी दल के पास नहीं है। वादों का झुनझुना है, छूट और रियायतों का लॉलीपॉप है मगर कोई ठोस विकल्प नहीं है जो हमारे देश की उन तमाम समस्याओं को सुलझाने की बात करें जिनके कारण समाज में इतनी असमानता हैं। एक हाथ से छिन कर दूजे को देने का प्लान तो सबके पास है मगर हर हाथ में हक होगा ऐसी योजना किसी के पास नहीं है। हम यही नहीं समझना चाहते क्योंकि हम केवल हक चाहते हैं। कर्तव्य की बात करने का समय हमारे पास नहीं होता। दलों के पास तो बिल्कुल नहीं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है