नई दिल्ली। दिग्गज कंपनियों के स्टॉक्स में करेक्शन का दौर चल रहा है और यह स्थिति आमतौर पर बाजार में बेयर फेज आने से पहले बनती है। बेंचमार्क इंडेक्स में शामिल स्टॉक्स जनवरी में बने हाइ लेवल से 12 पर्सेंट से ज्यादा नीचे आ चुके हैं। टेक्निकल ऐनालिस्टों के हिसाब से अगर कोई शेयर हालिया हाइ से 10 पर्सेंट गिर चुका है तो उसे करेक्शन फेज की शुरूआत माना जा सकता है।
Better to stay out of the market rather than shopping in the fall
अगर बाजार में आई गिरावट 20 पर्सेंट का लेवल पार कर जाती है तो माना जाता है कि बाजार मंदड़ियों की गिरफ्त में आ चुका है। हालिया उथल-पुथल में सेंसेक्स स्टॉक्स में 52 वीक हाइ से 12-50 पर्सेंट तक का करेक्शन हो चुका है। ऐसे में बहुत से इनवेस्टर्स नियर टर्म के लिए गिरावट में खरीदारी करने की स्ट्रैटेजी अपना सकते हैं, लेकिन बेहतर तो यही होगा कि अभी के लिए बाजार से बाहर रहा जाए।
बाजार में गिरावट लोकल के बजाय आर्थिक वजहों से ज्यादा आई है, इसलिए जब तक मैक्रो फैक्टर्स में स्टैबिलिटी नहीं आएगी, मार्केट में गिरावट का रुझान बना रहेगा। डॉलर के मुकाबले रुपये में आ रही गिरावट के चलते फॉरन इनवेस्टर्स बिकवाली बढ़ा सकते हैं जिससे बाजार पर दबाव बढ़ेगा। निफ्टी का डॉलर में रिटर्न इस साल अब तक 15% नेगेटिव रहा है जबकि इंडियन करंसी यानी रुपये में यह 2% कमजोर हुआ है।
सोमवार को कितना गिरा शेयर बाजार, देखें
ब्लूमबर्ग के मुताबिक इस साल अब तक डॉलर के मुकाबले रुपया 13.5% कमजोर हुआ है और यह एशियाई देशों की करंसी में सबसे कमजोर है। रुपये में एंप्लायीड वोलैटिलिटी इमर्जिंग मार्केट्स में सबसे ज्यादा है और आॅप्शंस डेटा बताते हैं कि अगले तीन महीने तक उतार-चढ़ाव हाइ पर बना रहेगा।
ऐसे में फॉरन फंड्स तब तक इंडियन इक्विटी मार्केट में निवेश घटा सकते हैं जब तक कि रुपये में स्थिरता नहीं आ जाती। सितंबर के अंत में इंडिया के मार्केट कैप में एफपीआई का हिस्सा 20% यानी 409 अरब डॉलर था। अक्टूबर के पहले पांच दिनों में एफपीआई ने लगभग 1 अरब डॉलर मूल्य की इक्विटी सिक्यॉरिटीज बेची है। इस साल उनकी कुल इक्विटी सेल्स $2.7 अरब रही है।