जय माँ शैलपुत्री

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नवरात्रि का आया प्यारा पावन त्यौहार,
आओ पूजे माँ के नो रूपो को बारंबार,

माँ दुर्गे को सर्वप्रथम जिस रूप पूजा जाता है,
वो रूप माँ का शैलपुत्री कहलाता है,

हिमालय की पुत्री इन्हें माना जाता है,
इसलिए इन्हें शैलपुत्री नाम से जाना जाता है,

वृषभ नाम के बैल की करती है ये सवारी,
देवी वृषारूढा इसलिए अद्धभुत नाम तुम्हारा,

दाहिने हाथ मे त्रिशूल है धारे, जिसे देख
राक्षश थर थर कांपे,बाए हाथ कमल का
फूल खिला माँ की सुंदरता को दिखलाता।

माँ के पूर्व जन्म की कथा माँ के गुणों को
दर्शाती है,उस जन्म में माँ सती के नाम से
जानी जाती है,सती रूप में माँ दक्ष की
पुत्री कहलाती है,पिता के हाथों तब पति
शिव का अपमान सह ना पाई,कूद गई माँ
यज्ञ की अग्नि में और शिव का मान बढ़ाई,

अगले जन्म में माँ,हिमालय शैलराज के जन्मी,
पिता के नाम से ही माँ शैलपुत्री कहलाई।

प्रथम नवरात्रि पर आओ सब इनको मिलकर पूजे भाई,

नीरज त्यागी*