लखनऊ । यूपी की राजधानी लखनऊ के चारबाग स्टेशन पर सोमवार आधी रात के बाद साबरमती एक्सप्रेस पहुंची तो ज्यादातर यात्री गहरी नींद में थे। इनमें कुछ शख्स ऐसे भी थे, जिन्हें नींद छूकर भी नहीं निकली। राजकुमार निषाद भी उनमें से एक थे। पूरे रास्ते उन्हें गुजरात में बिताया पिछले कुछ दिनों का वक्त याद आ रहा था। जनरल कंपार्टमेंट की जमीन पर बैठे राजकुमार कह रहे थे, ‘बिना किसी गलती के सजा दी गई।’
North Indians returned home from Gujarat, said the inmates, said -The crowd was looking in the streets
पहले बच्चों को स्कूल जाने से रोका फिर…
आपबीती सुनाते हुए निषाद ने बताया, ‘मैं अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ वडोदरा में रहता था। हमले शुरू होने के बाद लोगों की भीड़ सड़कों और गलियों में यूपी-बिहार के लोगों को ढूंढती हुई घूमने लगी। पहले मैंने अपने बच्चों को स्कूल जाने से रोका। शनिवार को हमारे फैक्ट्री इंचार्ज ने भी साफ कह दिया कि माइग्रेंट वर्कर्स को चले जाना चाहिए और स्थिति के सामान्य होने का इंतजार करना चाहिए। मैं घर वापस आया, सामान बांधा और भाग लिया।’ दूसरे यात्रियों की कहानियां भी उन्हीं के जैसी थीं।
लगातार वापस आ रहे हैं यूपी, बिहार के लोग
14 महीने की मासूम से रेप के विरोध में प्रदर्शन हिंसक होने के बाद उत्तर भारतीय राज्यों खासतौर से मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग बसों, ट्रकों, ट्रेनों, जैसे हो पा रहा है, वैसे गुजरात छोड़ रहे हैं। आपको बता दें कि 28 सितंबर को घटी इस घटना का आरोपी बिहार का एक युवक है। दावा किया गया है कि अहमदाबाद, वडोदरा, हिम्मतनगर, मेहसाणा, आणंद, साणंद और पांचमहाल से करीब 50,000 लोग निकल चुके हैं।
पुलिस ने भी दी भागने की सलाह
स्थिति की गंभीरता बयां करते हुए 19 साल के सोनू कुमार बताते हैं कि पुलिस भी मजदूरों को घर वापस जाने की सलाह देने लगी थी। सोनू का कहना है कि जिनका काम हमें बचाना है, वही भागने की सलाह दें तो यह कितनी निराशाजनक बात है। इससे डर और भी बढ़ जाता है। उधर, बिहार के खगड़िया जानेवाले सुरेश साहनी बताते हैं कि उन्होंने नवंबर में छठ पर घर जाने के लिए ट्रेन के टिकट बुक किए थे लेकिन अब घर जाने में कोई खुशी नहीं रही। वह बताते हैं कि उनकी कोई नौकरी नहीं है, कोई वेतन नहीं। वह पटना के लिए पहली ट्रेन पकड़कर वापस आ गए हैं।