अमृतसर हादसा और चौदह साल पहले की दुखद याद

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ब्रजेश राजपूत की ग्राउंड रिपोर्ट

उमंग और उल्लास में डूबा दशहरा का पर्व शाम होते होते ऐसे घनघोर शोक में बीतेगा कभी सोचा ना था। सुबह से ही शाम को होने वाले रावण दहन की कहानियों की तैयारियां कर रहे थे। हमारे चैनल पर ही सौ शहरों के रावण दहन के विजुअल्स दिखाने की तैयारी थी। एक तीर जला अहंकार रावण का हुआ संहार, विजय पर्व मनाइये एबीपी न्यूज पर आइये। दशानन दहन की दिव्य सौ तस्वीरें देखिये इस टेग लाइन से आकर्पक प्रोमो चल रहे थे। शाम तक एमपी के कई शहरों से दशहरा दहन की तस्वीरें आने भी लगीं थीं कि आ गयी वो बुरी खबर।

अमृतसर में रावण दहन के दौरान पटरी पर खडे होकर कार्यक्रम देख रहे तकरीबन साठ लोग वहां से गुजरी रेलगाडी के नीचे आकर हादसे का शिकार हो गये। अफरातफरी मच गयी, हताहतों की संख्या के बारे में कयास लगने लगे कोई सौ तो कोई डेढ सौ कह रहा था मगर जो हुआ उसने उल्लास के त्यौहार को गमगीन बना दिया। दशानन दहन की तस्वीरें दिखाना स्थगित कर मौके पर ग्राउंड रिपोर्ट से हादसे की खबरें चलने लगीं। और जब ये ग्राउंड रिपोर्ट लिखने बैठा हूं तो मुझे चोदह साल पहले की अपनी वो ग्राउंड रिपोर्ट याद आ रही है जब भोपाल के पास हुये ऐसे ही हादसे में बारह लोग रेल की पटरी पर मारे गये थे।

उन दिनों बाबूलाल गौर मध्यप्रदेश के सीएम थे ओर एक दिन पहले ही उनके बेटे पुरूपोत्तम की हदय गति रूकने से मौत हो गयी थी। वो अपनी कार में ज्योति टाकीज के पास मृत पाये गये थे। सीएम के जवान बेटे की अचानक हुयी मौत बडी खबर थी हम सब टीवी वाले सुभाप नगर के श्मशान घाट पर हो रहे अंतिम संस्कार के कवरेज के लिये पहुंचे हुये थे। थोडी देर में ही श्मशान घाट पर शवयात्रा आयी जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर गमजदा होकर आगे आगे चल रहे थे साथ में उनके दो पोते भी थे। हम सब बात कर रहे थे कि नियति का कुछ भरोसा नहीं गौर साहब को किस्मत ने अचानक मेहरबान होकर प्रदेश का सबसे ताकतवर पद दे दिया तो फिर कुछ दिनों बाद ही दुनिया का सबसे बडा दर्द यानिकी जवान बेटे की मौत भी दे दी।

इसी गमजदा माहौल में फोन बजता है और पता चलता है कि सूखी सेवनियां में कोई हादसा हुआ है कुछ लोग रेल से कट गये हैं। रेल की पटरी से कटने वाले हादसे बडी खबरों में नहीं आते हैं ये जान कर बहुत ध्यान नहीं दिया मगर वहां खडे खडे ही रेलवे के उस वक्त पीआरओ अनिल जैन साहब को फोन लगा लिया। उन्होंने चौंका देने वाली खबर दी बताया कि सूखी सेवनियां में संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से दस से ज्यादा लोग कट गये हैं। सारे अफसर वहीं भाग रहे हैं। अब ऐसे में हम यहां कैसे रह सकते थे। पार्थिव देह को प्रणाम कर हम भागे सूखी सेवनियां की ओर। कार भाग रही थी और हम थे कि इस हादसे की जानकारी जुटाने में लगे हुये थे।

थोडी देर में ही ये साफ हो गया था कि भोपाल से जाने वाली पैंसेजन टेन में कुछ लोग सवार थे जो सांची जा रहे थे जहां पर दो दिन का बौध मेला लगा हुआ था। एमएसीटी के पास की झुग्गी बस्ती राहुल नगर के इन लोगों का टेन में सीट पर बैठने का लेकर झगडा हुआ और ये झगडा इतना बढा कि जब सूखी सेवनियां पर पैसेजर को रोक कर स्वर्ण जयंती एक्सप्रेस को रास्ता दिया जा रहा था तो ये लोग पटरियों पर उतर कर आपस में मारपीट कर रहे थे ओर उसी बीच आ गयी तेज रफतार स्वर्ण जयंती एक्सप्रेस जिसने रेलवे टेक पर खडे बारह लोगों को काट दिया। पल भर में हुये इस हादसे ने वहां हाहाकार मचा दिया।

ये सारी बातें मैं अपने दफतर से हो रहे फोनो पर बता रहा था। जब तक हम भोपाल से पंद्रह किलोमीटर दूर सूखी सेवनियां रेलवे स्टेशन पहुंचे एक घंटा हो चुका था। सांची की ओर जाने वाले पैंसेजर जा चुकी थी और रेलवे ने टेक पर पडे शवों को हटा मालगाडी में भरकर भोपाल के लिये रवाना किया जा रहा था। पहले हम रोड से भाग कर रेलवे स्टेशन तक आये उसके बाद जिस गाडी में शव रखकर ले जाये जा रहे थे उसके पीछे भागकर चढने की कोशीश की जिसें मैं तो पीछे रह गया मगर हमारे कैमरामेन साथी होमेंद्र उस डब्बे में चढ गये जहां क्षत विक्षत शव रखे हुये थे। उनके पास ही मारे गये लोगों के साथी परिजन बैठे थे। घर से हंसते खेलते निकले ये लोग इस बुरे हाल में वापस लौटेंगे कोई नहीं जानता था।

भारी भागदौड करने के बाद हमारे पास मारे गये लोगों के विजुअल थे। हम घटनास्थल पर पहले पहुंचने वाले कुछ लोगोें में से थे मगर ये क्या ये हम दफतर आये और जब इस एक्सक्लुसिव विजुअल्स के बारे में बताया तो दफतर का रिस्पांस ठंडा था कहा कि ऐसे वीभत्स शाट हम टीवी पर कैसे दिखा पायेंगे इनको रहने दीजिये, इससे बेहतर है मरने वाले लोगो की प्रोफाइल कर भेजो कौन थे और क्या करते थे। थोडे थके और थोडे निराश हम वापस उस बस्ती की ओर भागे के किशोर ओर युवा बच्चे इस हादसे में जान गंवा बैठे थें।

ऐसे गमजदा माहौल में कवरेज करना कठिन होता है मगर यहीं परिस्थितियां सिखातीं हैं कि हर हाल में काम कैसे किया जाता है। मगर हम पत्रकार ही नहीं नेताओं का काम भी कितना कठिन होता है ये हमने तब जाना जब देखा कि इस बस्ती में तत्कालीन सीएम बाबूलाल गोर भी अपने बेटे का गम भुलाकर गमजदा परिवारों का दर्द बांटने अगले दिन ही पहुंचे हुये थे।

एबीपी न्यूज, भोपाल