सरकार बनाम आरबीआई: कइयों को लगता है, रिजर्व बैंक है दोषी

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मुंबई। रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया (आरबीआई) और सरकार के बीच टकराव की वजह शायद यह है कि सेंट्रल बैंक इंडस्ट्री यानी बैंकिंग, म्यूचुअल फंड या मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के प्रतिनिधियों से मिलना नहीं चाहता। इस वजह से सरकार को आरबीआई बोर्ड में अपने नॉमिनी के जरिए लॉबिस्ट की भूमिका निभानी पड़ रही है। रिजर्व बैंक पर नजर रखने वालों ने यह बात कही है। इंडस्ट्री का कहना है कि उसके उठाए मुद्दों पर आरबीआई ध्यान नहीं दे रहा। इसलिए लॉबी ग्रुप और असोसिएशंस के पास अपनी परेशानियां लेकर सरकार के पास जाने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा है।
Government versus RBI: Many feel, the Reserve Bank is guilty
कई सूत्रों ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर बताया कि साल की शुरूआत में भी कुछ मुद्दों पर सरकार और आरबीआई में मतभेद थे। रिजर्व बैंक ने 12 फरवरी को एक सर्कुलर जारी कर कहा था कि अगर कर्जदार किस्त चुकाने में एक दिन की भी देरी करता है तो बैंकों को ऐक्शन लेना होगा। सरकार इससे खुश नहीं थी। अब दोनों के बीच दरार और बढ़ गई है। एक सूत्र ने बताया कि आरबीआई बोर्ड के कुछ सदस्यों की सोमवार को अनौपचारिक बैठक हुई, लेकिन इसमें सरकार के साथ टकराव खत्म करने का कोई रास्ता नहीं निकला।

बोर्ड के एक सदस्य एस गुरुमूर्ति ने पिछले हफ्ते की बोर्ड मीटिंग में मतभेद की बात से इनकार किया था। उन्होंने ट्वीट करके बताया, ‘मैं मीटिंग में मौजूद था। सभी डायरेक्टर्स इसकी तस्दीक करेंगे कि पांच मामलों में से चार पर सहमति थी, सिर्फ एक पर विवाद था। कोई दबाव नहीं था।’ मीडियम और स्मॉल एंटरप्राइजेज की फंडिंग पर मतभेद के सवाल पर गुरुमूर्ति ने यह बात कही।

उर्जित पटेल के गवर्नर बनने के बाद पिछले दो साल में आरबीआई ने कई सख्त फैसले लिए हैं। इनमें बैड लोन के मामलों को दिवालिया अदालत में भेजने के साथ एक दिन के डिफॉल्ट पर बैंकों के लोन रेजॉलुशन पर काम शुरू करने जैसे फैसले शामिल हैं। प्रॉम्प्ट करेक्टिव ऐक्शन (पीसीए) फ्रेमवर्क के तहत कई सरकारी बैंकों पर कार्रवाई की गई है। इनमें से कई नियमों से इंडस्ट्री नाराज है।