इंदौर। मालवा-निमाड़ क्षेत्र में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का दौरा कई मायनों में महत्वपूर्ण है। प्रदेश की सत्ता का रास्ता इसी गलियारे से होकर जाता है। जब-जब भी भाजपा के हाथ से मालवा-निमाड़ क्षेत्र छूटा प्रदेश की सत्ता भी छूटी है। फिर चाहे लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा। इंदौर-उज्जैन संभाग की 66 विधानसभा सीटें प्रदेश की राजनीति में भाजपा के लिए हमेशा निर्णायक रही हैं। वर्ष 2013 के चुनाव में मालवा-निमाड़ में भाजपा को बड़ी सफलता मिली थी और कांग्रेस सिर्फ नौ सीटों पर सिमट कर रह गई थी। लेकिन अब इस क्षेत्र में सपाक्स, अजाक्स और एंटी इंकमबेंसी जैसे मुद्दों से भाजपा को जूझना पड़ रहा है।
MP: The key to power Malwa-Nimar, during Rahul did all the seats, the BJP hopes from the organization
क्षेत्र के चुनावी माहौल को अपने पक्ष में करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष ने इंदौर, उज्जैन, धार, झाबुआ, खरगोन जैसे जिलों में जाकर समाज के हर वर्ग और तबके को साधने का प्रयास किया। राहुल ने दो दिनी दौरे के दौरान उन सीटों पर फोकस किया जहां कांग्रेस 2013 के चुनाव में हारी थी। इधर, राहुल के दौरे और सभाओं में उमड़ी भीड़ ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। भाजपा अपने गढ़ को बचाने के लिए संघ, संगठन और माइक्रो मैनेजमेंट के भरोसे है।
टिकट काटो और नाराजगी दूर करो… भाजपा संगठन प्रदेश में राहुल गांधी और उनकी टीम के हर कदम पर नजरें गढ़ाए हुए है। मालवा-निमाड़ की स्थिति का अंदाजा भाजपा के संभाग और प्रदेश स्तर के नेतृत्व को पहले ही हो चुका था। क्षेत्र में असंतोष को दूर करने की कवायद भी शुरू कर दी गई थी, लेकिन जब इसका कोई खास असर नजर नहीं आया तो केंद्रीय नेतृत्व ने टिकट वितरण के पहले प्रदेश के नेताओं को दो टूक फैसला सुना दिया कि जिनके भी खिलाफ असंतोष है उनके टिकट काटो और नए चेहरों को लाकर असंतोष दूर करो।
विकास के मुद्दे पर नए समीकरण हावी
विकास को राजनीति का एजेंडा बनाकर चुनाव लड़ने का प्रयोग प्रदेश में भाजपा ने शुरू किया था। इसका उसे लाभ भी हुआ पर अब स्थानीय स्तर पर बनने वाले समीकरण विकास के मुद्दे पर हावी होते जा रहे हैं। इसी वजह से क्षेत्र के ज्यादातर स्थानों पर नए संघर्ष से भी संगठन को जूझना पड़ रहा है। प्रदेश भाजपा से जुड़े पदाधिकारी सत्ता के अधिक केंद्रीयकरण को भी इसकी वजह बताते हैं। नेताओं के अनुसार राज्य की राजनीति मुख्यमंत्री के इर्द-गिर्द ही घूमती नजर आती है। केंद्रीय संगठन ने कुछ माह पहले ही इस कमी को भांपते हुए मालवा-निमाड़ में कैलाश विजयवर्गीय, ग्वालियर-चंबल संभाग में नरेंद्रसिंह तोमर व प्रभात झा, महाकौशल में राकेश सिंह और फग्गनसिंह कुलस्ते जैसे नेताओं की सक्रियता बढ़ा सामूहिक नेतृत्व का संदेश देने का प्रयास किया है।
तीन साल का बिखरा संगठन तीन माह में कैसे ठीक हो…
मालवा-निमाड़ की जिम्मेदारी संभालने वाले वरिष्ठ नेता यह कहते नहीं थकते कि कांग्रेस की यह एकता व शक्ति सिर्फ टिकट वितरण तक ही है, जैसे ही टिकट बटेंगे सभी अलग-अलग खेमों में बंट जाएंगे। जिसे टिकट नहीं मिलेगा वह दूसरे खेमे के खिलाफ काम करेगा। लेकिन जैसे ही बात भाजपा संगठन की तरफ मुड़ती है तो सब चुप्पी साध लेते हैं। क्षेत्रीय नेता इस बात को दबी जुबान से स्वीकार भी करते हैं कि पिछले तीन वर्षों में भाजपा का संगठनात्मक ढांचा कई इलाकों में कमजोर हुआ है।
गठन की दृष्टि से जिस भाजपा को सबसे मजबूत संगठनात्मक ढांचे वाली पार्टी माना जाता है वही मालवा-निमाड़ में पूरी ताकत से काम नहीं कर पा रही है। एंटी इंकमबेंसी जनता के साथ-साथ कार्यकतार्ओं में साफ नजर आती है। टिकट बदलने से यह असर कितना कम होगा इसका अनुमान फिलहाल किसी को नहीं है। लेकिन पदाधिकारी यह जरूर चर्चा करते नजर आते हैं कि तीन माह में संगठन के उस पुराने स्वरूप को कैसे प्राप्त कर पाएंगे जिसमें कार्यकर्ता मतभेद भुलाकर पार्टी हित में काम करता रहता था।
दिल्ली की बैठक, जो अपेक्षित नहीं उन्हें भी बुलाया
टिकट वितरण में सबकी बात सुनी जाए, की नीति पर चल रहे केंद्रीय नेतृत्व ने मंगलवार को हुई बैठक में भी यही रुख अपनाया। केंद्रीय चुनाव समिति की दिल्ली में हुई बैठक में मध्यप्रदेश से कुछ ऐसे नेताओं को भी अचानक बुलावा भेजा गया जो संगठन के नियमानुसार बैठक में अपेक्षित नहीं थे। उनके अनुभव और क्षेत्र में प्र भाव को देखते हुए उनसे भी राय ली गई।
अध्यक्षों की तुलना के सवाल भी कर रहे परेशान
भाजपा-कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्षों के दौरे व सभाएं इंदौर में हो चुके हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह इंदौर दौरे में इतनी जल्दी में थे कि जिन जगह पर लोगों से मिलना था उसे भी एन वक्त पर निरस्त कर दिया गया। दूसरी और राहुल ने दो दिन इंदौर में अलगअलग वर्ग के लोगों से बात की और भरपूर समय भी बिताया। ऐसे में लोग दोनों की तुलना कर सवाल दाग रहे हैं।