नई दिल्ली। रिजर्व बैंक की ओर से मतभेदों को सार्वजनिक किए जाने पर वित्त मंत्रालय द्वारा रोष प्रकट किए जाने के बाद अब मंत्रालय के एक टॉप आॅफिसर ने ही विवादों को नए सिरे से हवा दे दी। इससे सरकार और आरबीआई के बीच टकराव बढ़ने की आशंका पनप रही है। इस बार, आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने आरबीआई के डेप्युटी गवर्नर विरल आचार्य के हाल में दिए व्याख्यान पर तंज कसा।
The controversy arises between the RBI and the government, the ministry’s appraiser again gave a new air
इसके कुछ घंटों बाद ही आरबीआई ने अपनी वेबसाइट पर एक अन्य डेप्युटी गवर्नर एन एस विश्वनाथन का एलआरआई जमशेदपुर में इसी सप्ताह दिया व्याख्यान अपोलड कर दिया, जिसमें वह पूंजी की जरूरतों से निपटने के लिए सरकार के तर्कों पर कटाक्ष करते दिख रहे हैं। विश्वनाथन ने व्याख्यान में कहा कि इससे तो बैंकों की मजबूती का ढिंढोरा पीटा जा सकता है, असलियत में ऐसा होने वाला नहीं।
जिम्मेदारी से उलट बयान?
आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग वित्त मंत्रालय की वह प्रमुख शख्सियत हैं जिन पर आरबीआई के साथ संबंधों की देखरेख करने की जिम्मेदारी है। लेकिन, उन्होंने ही आरबीआई के डेप्युटी गवर्नर विरल आचार्य के इस बयान पर कि ‘सेंट्रल बैंक की स्वायत्ता का सम्मान नहीं करनेवाली सरकारों को आज न कल वित्तीय बाजारों का आक्रोश झेलना पड़ता है’, टिप्पणी करके विवाद को अगले दौर में ला दिया।
टॉप नौकरशाह का तंज
गर्ग ने रिजर्व बैंक के डेप्युटी गवर्नर विरल आचार्य की हाल की टिप्पणियों पर व्यंग्य करते हुए कहा कि इस समय तो वृहद आर्थिक संकेतकों में सुधार ही दिख रहा है और विनिमय दर 73 रुपए प्रति डॉलर से भी मजबूत हो गई है। उन्होंने शुक्रवार को ट्वीट किया, ‘डॉलर के मुकाबले रुपया 73 से कम पर ट्रेड कर रहा है, ब्रेंट क्रूड 73 डॉलर के नीचे आ गया है, सप्ताह के दौरान मार्केट 4 प्रतिशत ऊपर रहा और बॉन्ड यील्ड्स 7.8 प्रतिशत के नीचे आ गया। क्या यही बाजारों का आक्रोश है?’
वित्त मंत्रालय ने दी थी हिदायत
हैरत की बात यह है कि गवर्नर उर्जित पटेल की ओर से अपने प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त डेप्युटी पर गर्ग की टिप्पणी तब सामने आई है जब सरकार ने दो दिन पहले ही बेहद सधे शब्दों में बयान जारी कर इसी बात पर नाराजगी जाहिर की थी कि आरबीआई ने सरकार के साथ मतभेदों को सार्वजनिक कर दिया। हालांकि, वक्तव्य में यह भी कहा गया था कि सरकार और केन्द्रीय बैंक दोनों को ही अपने कामकाज में सार्वजनिक हित और भारतीय अर्थव्यवस्था की जरूरतों को देख कर चलना चाहिए।