मेनिफेस्टो या ‘ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान…’

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बाखबर – राघवेंद्र सिंह

भारतीय राजनीति में मतदाता को बहलाने-फुसलाने के अब आसमानी-सुलतानी तरीके ईजाद कर िलए गए हैं। खास बात यह है कि लोकतंत्र में वोटों की लूट रोकने के लिए ठप्पे से मतदान करने के बजाय बटन दबाकर वोट डालने का आधुनिक सिस्टम शुरू किया है। अलग बात है िक अब ईवीएम भी विवादों के दायरे में है।
Manifesto or ‘Thugs of Hindustan …’
वोटों की लूट तो ईवीएम के जरिए चुनाव आयोग ने काफी हद तक काबू में की, लेकिन मेनिफेस्टो पार्टियों के लिए सत्ता में आने का जरिया नहीं, बल्कि एक तरह से प्रोडक्ट हो गया है। जैसे कंपनियां अपने सामान बेचती हैं, बिल्डर अपने बंगले और फ्लैट बेचता है वैसे ही राजनीतिक दल घोषणा पत्रों के आधार पर झूठे-सच्चे सपने बेचकर सरकार पाने के लिए एक किस्म की ठगी करते हैं।

घटिया माल बेचने से निपटने के लिए उपभोक्ता के पास उपभोक्ता फोरम के रूप में संवैधानिक प्लेटफॉर्म है। लेकिन जिन घोषणाओं से, वचन पत्रों से, संकल्प पत्रों से और विजन डॉक्यूमेंट के नए-नए नामों से वोट लेने और सरकार में आने के टोने-टोटके और धोखाधड़ी हो रही है। धोखाधड़ी शब्द हम बहुत जिम्मेदारी से लिख रहे हैं। मध्यप्रदेश के संदर्भ में ही देखें तो राज्य का बजट दो लाख करोड़ के आसपास है और उस पर कर्जा करीब पौने दो लाख करोड़ है। गांव का आदमी तो इस कर्जे पर लगने वाले ब्याज के जीरो भी शायद नहीं गिन पाएगा।

आर्थिक जानकार कहते हैं कि प्रदेश पर जितना कर्ज है उसका सालाना ब्याज ही 12 हजार करोड़ के लगभग अदा करना होता है। कुल मिलाकर सूबे की माली हालत दिवालिया हो रही है। वेतन और विकास कार्यों का भुगतान कर्ज लेकर या संपत्ति बेचकर किया जा रहा है। कांग्रेस के वचन पत्र में किसान कर्जा माफी पर 75 हजार करोड़ का बोझ सरकार पर आएगा। अब ऐसे में भला बताइए इतनी बड़ी रकम कांग्रेस कहां से लाएगी। इसी तरह बेरोजगारों को रोजगार की तलाश करने के लिए 4 हजार रुपए प्रतिमाह दिए जाने का भी कांग्रेस ने वचन दिया है। हमने यह दो चीजें जनता से किए गए वादों की हांडी से चावल के दाने के रूप में निकाली है।

सरकार में आने के लिए पार्टियां झूठे-सच्चे कोई भी वादे करेंगी इसे रोकने के लिए कोई संवैधानिक व्यवस्था तो नहीं है, लेकिन देश में बहुत सारी बातें नैतिकता के आधार पर भी चलती हैं। राजनीति करने वालों से नैतिकता की अपेक्षा करना वोटर के अत्यधिक सीधेपन का सबूत हो सकता है। लेकिन इसके बिना लीडर और पार्टियां खोया हुआ विश्वास शायद हासिल न कर पाएं। यह छोटा दिखने वाला लेकिन भारतीय राजनीति और लोकतंत्र को दिशा देने वाला सवाल भी है। गांव की एक कहावत है कि चोर और डकैत भी अपने साथ बेईमान नहीं बल्कि ईमानदार साथी चाहते हैं ताकि लूट की रकम उसे सुरक्षित मिल जाए।

मेनिफेस्टो को लेकर सोशल मीडिया में पिछले दिनों एक चुटकुला खूब चला। एक फिल्म रिलीज हुई जिसका नाम ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान और इसे किसी न समझ व्यक्ति ने नेताओं के बंगलों के सामने चिपका दिया। यह एक इत्तेफाक हो सकता है लेकिन सरकार बनाने के लिए राज्य दिवालिया है लेकिन वचन देने के मामले में कोई भी पार्टी गरीब नहीं है। इसे रोकने के लिए कोई संवैधानिक व्यवस्था नहीं है लेकिन नैतिक दबाव की दरकार पहले से ज्यादा शिद्दत से महसूस की जा रही है। कांग्रेस के बाद भाजपा के संकल्प पत्र का इंतजार है.. अभी तो नेताओं और पार्टियों की जय-जय…