सिर्फ आरोपों के लिए वंशवाद, चुनाव लड़ाने से किसी को परहेज नहीं

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भोपाल। भाजपा और कांग्रेस को वंशवाद से परहेज है। दोनों पार्टियां इसे मुद्दा बनाकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाती हैं, लेकिन जब नेताओं के परिजनों को टिकट देने की बात आती है, तो दोनों ही पार्टी अपने विचारों से समझौता कर लेती हैं। इस बार भी दोनों पार्टियों ने दशकों से सक्रिय तीन दर्जन से ज्यादा नेताओं के परिजनों को टिकट देकर विरोध से बचने की कोशिश की है।
Dynasty for just allegations, no one avoids contesting elections
राजनीतिक पार्टियों में वंशवाद का मुद्दा सिर्फ आरोपों तक ही सीमित है। चुनाव से पहले हर बार यह मुद्दा उठता है। पार्टियां एक-दूसरे पर वंशवाद का आरोप भी लगाती हैं, लेकिन जब टिकट देने की बारी आती है तो कोई भी पार्टी इस पर कायम नहीं रहती है।

भाजपा-तीन दर्जन सीटों पर वंशवाद का असर
भाजपा की परंपरागत तीन दर्जन सीटों पर वंशवाद का असर दिखाई दे रहा है। पार्टी ने सांची विधानसभा क्षेत्र से सात बार विधायक रहे डॉ. गौरीशंकर शेजवार के बेटे मुदित शेजवार को प्रत्याशी बनाया है। डॉ. शेजवार ने करीब छह महीने पहले ही घोषणा कर दी थी कि वे इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे। इंदौर-तीन से पार्टी के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय को टिकट दिया गया है।

ऐसे ही पार्टी ने राजधानी की गोविंदपुरा सीट से 10 बार विधायक बने और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की बहू कृष्णा गौर को टिकट दिया है। इस टिकट को लेकर पार्टी में भारी विरोध था। इन सीटों से नए दावेदार मैदान में थे और सभी वंशवाद का खुलकर विरोध कर रहे थे, लेकिन सीट बचाने के लिए पार्टी को आखिर में इन नेताओं की बात माननी पड़ी। कांग्रेस में भी ऐसे ही हालात हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के परिवार से तो तीन सदस्य मैदान में हैं। उनके बेटे जयवर्द्धन सिंह राघौगढ़ और छोटे भाई लक्ष्मण सिंह चांचौड़ा से प्रत्याशी बनाए गए हैं। जबकि उनके रिश्तेदार प्रियवृत सिंह खींची खिलचीपुर से कांग्रेस प्रत्याशी हैं। पार्टी ने झाबुआ सीट से पार्टी के कद्दावर नेता कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रांत भूरिया को टिकट दिया है।