कांग्रेस की ताकत ही बन जाती है कमजोरी, इस बार फिर यह चेहरे पार्टी को पड़ जाएं भारी

0
370

भोपाल। दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमलनाथ, अजय सिंह, अरुण यादव, ये वो चेहरे हैं जो मध्यप्रदेश कांग्रेस की ताकत हैं. ये दिग्गज अपने-अपने गढ़ों में बड़े से बड़े धुरंधर नेता को मात देने की ताकत रखते हैं. लेकिन, ये ताकतवर चेहरे ही कई बार पार्टी के लिए मुश्किल भी बन जाते हैं, जिसका उसे खामियाजा उठाना पड़ता है.
Congress’s strength becomes weakness, this time again this face will fall to the party.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो कांग्रेस के पास जितने बड़े चेहरे मध्यप्रदेश में हैं, उतने किसी भी प्रदेश में नहीं. लेकिन, उसकी यही ताकत कमजोरी बन जाती है, जब यही दिग्गज गुटबाजी के चलते पार्टी हितों को तिलांजलि दे देते हैं. प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनावों के साथ ही वर्तमान चुनावों में भी इसका असर दिखाई दे रहा है.

कांग्रेस के टिकट वितरण के दौरान सिंधिया और दिग्विजय के बीच हुई उठापटक की खबरें किसी से छिपी नहीं हैं. इसके साथ ही दिग्विजय सिंह का वो वीडियो तो जमकर वायरल हुआ था, जिसमें वे कहते नजर आ रहे थे कि मेरे भाषण देने से कांग्रेस के वोट कट जाते हैं. दिग्गी-सिंधिया-कमलनाथ की तिकड़ी के अलावा अरुण यादव, अजय सिंह और कांतिलाल भूरिया भी अपने-अपने क्षेत्रों में अपनी ताकत दिखाने से कोई गुरेज नहीं करते.

अरुण यादव तो हाल ही में इसका मुजाहिरा उस समय दिखा चुके हैं, जब उन्हें मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटाया गया था, जिसके बाद उनकी नाराजगी दूर करने के लिए पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी में विशेष आमंत्रित सदस्य बनाया. इसी तरह चुनावी साल में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का नाम तय करना भी पार्टी के लिए टेढ़ी खीर बन गया था. इस दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के समर्थक लगातार अपने नेताओं के पक्ष में माहौल बनाते रहे.

हालांकि बाद में अध्यक्ष पद कमलनाथ के हाथ लगा, जबकि पार्टी में समन्वय बनाने के लिए दिग्विजय सिंह को समन्वय समिति का तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बना दिया गया. यहां तक कि कई बार तो कांग्रेस के इन दिग्गज नेताओं के गढ़ों में उनके नाम से सरकार बनाने के नारे भी लगे.

ग्वालियर-चंबल में सिंधिया सरकार की गूंज उठी तो विंध्य में अजय सिंह सरकार के नारे लगने लगे जबकि छिंदवाड़ा में कमलनाथ के पक्ष में इसी तरह के नारे लगते रहे हैं, जिस पर सूबे के मुखिया शिवराज सिंह अक्सर अपने भाषणों में तंज भी कसते हैं कि कांग्रेस के लोग साथ बैठे हों तब कोई मुख्यमंत्री बोलकर आवाज लगा दे तो एक साथ 20-25 लोग पलट कर देखने लग जाएंगे. राजनीतिक जानकार भी मानते हैं कि कांग्रेस के पास मध्यप्रदेश में एक से बढ़कर एक नेता हैं, लेकिन आपसी गुटबाजी की वजह से वे खुद एक-दूसरे टांग खींचने की कोशिश में पार्टी को ही कमजोर कर देते हैं.