मध्यप्रदेश में विकास से भटकता चुनाव…

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बाख़बर/
राघवेंद्र सिंह
चुनाव के पहले पार्टियां एजेंडा तय करती हैं कि इस बार वे विकास के मुद्दे पर ही वोट मांगेंगी। चुनाव के पहले इसके खूब ढोल पीटे जाते हैं, प्रवक्ता, मीडिया पैनलिस्ट, स्टार प्रचारक, सीएम, पीएम, पार्टियों के अध्यक्ष लंबी फेहरिस्त है इन सबकी। मगर चुनाव के आते-आते हिन्दू-मुसलमान, मंदिर-मस्जिद, जातिवाद पर भाषण टिक जाते हैं। मध्यप्रदेश को ही देख लें, कर्ज में डूबा है, लेकिन भाजपा-कांग्रेस बातें कर रही है कर्जमाफी की, मुफ्त में उपहार देने की, हमने पहले भी लिखा है, कोई नहीं कह रहा है कि विकास कहां से आएगा और धन का इंतजाम कैसे होगा?
Election wandering in Madhya Pradesh …
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मध्यप्रदेश की यात्रा पर हैं। नरेंद्र मोदी कहते हैं कि कांग्रेस के नेता कन्फ्यूज हैं और पार्टी फ्यूज है। अब प्रदेश के मतदाताओं की इस बात में कोई दिलचस्पी नहीं है कि कांग्रेस फ्यूज है या उसके नेता कन्फ्यूज हैं। वे तो ये जानना चाहते हैं कि कर्ज में डूबे मध्यप्रदेश को बचाने के लिए मोदी सरकार का क्या एक्शन प्लान है। चुनाव के पहले भी मोदी कई बार राज्य के दौरे पर आए मगर आत्महत्या करते किसानों के लिए उन्होंने मलहम लगाने वाली कोई घोषणा नहीं की।

जबकि भाजपा की सरकार और तीन बार से उनके शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री हैं, इसके बावजूद प्रदेश को विकास का न तो कोई तोहफा मिला और न ही अस्पताल, शिक्षा और किसानों को लेकर कोई बड़ी योजना। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जरूर यहां शुरू हुई थी लेकिन मुआवजे को लेकर उसमें मिली धनराशि जिसके चेक 5-5 रुपए तक के आए, सरकार के लिए यश की बजाय अपयश का कारण ज्यादा बनी।

भाजपा शासित राज्य को मोदी चुनाव के पहले भी कुछ नहीं दे पाए और चुनाव के दौरान भी ऐसी कोई नीतिगत बात नहीं कर रहे हैं जो शिवराज और मध्यप्रदेश भाजपा के लिए चुनाव में लाभकारी हो। इसी तरह अमित शाह संगठन की दृष्टि से जब आते हैं तो पार्टी नेताओं और उनके मैनेजरों में प्रसन्नता की बजाय दबाव और डर ज्यादा महसूस होता है। शाह कहते हैं कि कांग्रेस प्रायवेट लिमिटेड पार्टी है, वे यह भी कहते हैं कि कांग्रेस ने सीताराम केसरी जैसे बुजुर्ग अध्यक्ष को धक्के देकर निकाल दिया था।

इन सब बातों का चुनाव में विकास के मुद्दे से क्या लेना-देना। इसी तरह भाजपा अपने बुजुर्ग नेताओं के साथ राष्ट्रीय नेताओं के साथ क्या कर रही है, ये सबको पता है। कुल मिलाकर इन हालातों में पार्टी का परफॉर्मेंस उम्मीद के मुताबिक नहीं हो पा रहा है। अकेले पड़े शिवराज अपनी सरकार की उपलब्धियों का जितना प्रचार कर पा रहे हैं, जुटे हुए हैं।

दूसरी तरफ राहुल गांधी चुनावी भाषणों में किसानों के कर्जमाफी की बात तो करते हैं लेकिन वे यह नहीं बता पाते कि राज्य की आय और कर्ज जब बराबर पर आ रहे हों, तब उनकी पार्टी के पास कर्जमाफी और विकास कार्य के लिए प्लान किया है। स्कूल-अस्पतालों का स्तर कैसे सुधरेगा, इसे लेकर कांग्रेस वोटर को कुछ नहीं बता रही है। किसानों के लिए फूड प्रोसेसिंग की बात कर्जमाफी के वचन पत्र में जरूर थोड़ा सा लुभाने वाली है। लेकिन बजट के बिना ये सारी बातें शेखचिल्ली के सपने जैसी हैं।

दोनों ही पार्टियां सरकार में आने के लिए ख्याली पुलाव की बातें कर रही हैं। जनता को आत्मनिर्भर बनाने की बजाय उनको आलसी और आश्रित बना रही है। जन्म से लेकर मृत्यु तक सारे इंतजाम सरकार कर रही है। इससे एक-दो बार वोट मिल सकते हैं लेकिन न तो हर बार कोई चुनाव जीत सकता है और न ही राज्य की जनता को कामचोर बनाकर कोई प्रदेश को समृद्ध और स्वर्णिम बना सकता है।

फिलहाल तो हर पार्टी ऐसे ही नुस्खों को अपना रही है िजसमें उसे आज वोट मिले और कल वो सत्ता में आ जाए इसके बाद मतदाता विकास और सुशासन को ढंूढते रह जाएं… फिलहाल तो नारे, वादे और जुमलों की जय-जय है… किसी को विकास की बातें करते हुए कोई लीडर िमले तो इस अच्छी खबर को जरूर आपस में शेयर करें।