चाय से ज्यादा केतली गर्म है…

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बाख़बर/
राघवेंद्र सिंह

भाजपा सरकार को 15 साल पूरे होने में कुछ ही दिन बाकी हैं। लगातार जीत ही हैट्रिक बनाने वाली शिवराज सरकार और भाजपा अब तक के सबसे कठिन दौर में है। पार्टी का दावा है कि विकास नहीं करते तो फिर तीन बार चुनाव कैसे जीतते। दूसरी तरफ अगर विकास हुआ है तो फिर विरोध नजर क्यों आ रहा है? इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की एक नसीहत पर मंत्री, विधायक और संगठन अमल करता तो शायद मुकाबला एकतरफा भले ही न होता मगर कांटे का भी नजर नहीं आता।
The kettle is more hot than tea …
शिवराज सिंह ने कहा था कि अहंकार न करें, लोप्रोफाइल में रहें, विनम्रता से बात सुनें, महंगी गाड़ी और बड़े मकान न लें। कुल मिलाकर एश्वर्यशाली जीवन दिखाने की बजाय आम आदमी की तरह रहें। पैसे कमाना भी है तो उसका भौंडा प्रदर्शन न करें। ये लब्बोलुआब था एक बार पचमढ़ी में हुई भाजपा की महत्वपूर्ण बैठक का, जिसमें मुख्यमंत्री समेत मंत्री, विधायक और दिग्गज नेता मौजूद थे।

इसी तरह की बात एक बार छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी भाजपा नेताओं के बीच कही थी। उन्होंने कहा था कि 2 साल पैसे कमाना अर्थात भ्रष्टाचार बंद कर दो तो अगले 10-15 साल हमें कोई नहीं हरा पाएगा। छत्तीसगढ़ में मतदान हो चुका है और मध्यप्रदेश में 28 नवंबर को नेताओं का भाग्य ईवीएम में बंद हो जाएगा। हमने कहा था कि विकास हुआ है तो विरोध नजर क्यों आ रहा है। दरअसल मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक भले ही थोड़ा विनम्र दिखते हों मगर उनके अधिनस्थ अधिकारी, कर्मचारी और पीए साब का अहंकारपूर्ण व्यवहार नेताजी और सरकार की साख पर बट्टा लगा रहा है।

किसी के आवेदन और समस्या पर जितना मंत्रीजी नाराज नहीं होते उससे ज्यादा उनके चंगू-मंगू अर्थात जिन पर मंत्रीजी पूरे महकमे का जिम्मा सौंप देते हैं उनकी मनमानी से जनता और कार्यकर्ता परेशान हो गए। इसे कह सकते हैं, चाय से ज्यादा केतली गर्म हो रही है इसीलिए सड़क, बिजली के बावजूद लोगों में नाराजगी है। ऐसी पहले कभी नहीं देखी गई।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बुधनी क्षेत्र ही देख लें। यहां पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा काम हुए हैं। एक अनुमान के मुताबिक विकास कार्यों पर करीब 20 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। इसके बावजूद अगर विरोध की घटनाएं हो रही हैं तो यह चौंकाने वाली हैं। इसके पीछे वजह कोई और नहीं, चाय से ज्यादा केतली गर्म होना माना जा रहा है, मसलन मुख्यमंत्री का व्यवहार गरीब से गरीब आदमी के लिए भी बहुत सहज है। लेकिन यहां उनके समर्थक गांव-गांव में गुटबाजी और एक-दूसरे को लड़ाने का काम कर रहे हैं।

उनके गुट के लोगों को लाभ पहुंचाना और दूसरों की अनदेखी करना यह सब विरोध की वजह बन रहा है। लोगों का मानना है िक इस बार भी भारी बहुमत मिला तो जो लोग मुख्यमंत्री के नाम पर मनमानी करते हैं वह ताकतवर होंगे और अंगद की तरह जमे रहेंगे। अलग बात है कि शिवराज सिंह के कहने पर लोग पिछली बार की तरह फिर मान जाएं। लेकिन अभी तो जीत का अंतर बढ़ाने में स्थानीय भाजपा नेताओं को पसीना आ रहा है।

विकास कार्यों के बाद भी दतिया से नरोत्तम मिश्रा, दमोह से जयंत मलैया, खुरई से भूपेंद्र सिंह, रीवा से राजेंद्र शुक्ला की ऐसी स्थिति है जो शुरुआत में मजबूत नजर आई, फिर कमजोर हुई और अब फिर बेहतरी की तरफ जा रही है। यह ऐसे मंत्री हैं जिन्होंने अपने क्षेत्र में विकास कार्यों के कीर्तिमान रच दिए। बावजूद इनके विरोध का अर्थ है कि क्षेत्र में इनके नाम पर राजनीति करने वालों का अहंकारपूर्ण व्यवहार। किसानों को अपने उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिलना, स्कूलों में शिक्षकों का पर्याप्त मात्रा में नहीं होना, अस्पतालों में डॉक्टर और दवाओं की कमी विकास के बाद भी विरोध की बड़ी वजह बनी हुई है।