भाजपा का गढ़ रहा है बस्तर, 2008 में कांग्रेस को 12 में से मिली थी मात्र एक सीट

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रायपुर। छत्तीसगढ़ का नक्सल प्रभावित आदिवासी बाहुल बस्तर संभाग भगवा का गढ़ रहा है। राज्य स्थापना के बाद हुए पहले दो चुनावों में वहां के वोटरों ने भाजपा का भरपूर साथ दिया। 2008 में तो वहां की 12 में से कांग्रेस बमुश्किल एक सीट बचा पाई। भाजपा की पहली और दूसरी सरकार बस्तर के दम पर ही बनी।
The BJP has been the stronghold of Bastar, in 2008, the Congress had got only 12 seats but only one seat
कहा गया कि बस्तर ने भी भाजपा को सत्ता की चॉबी दी। 2013 में माहौल अचानक पलट गया। 2008 की तुलना में 18 फीसद अधिक मतदान हुआ और यह पूरा वोट एक तरफा कांग्रेस के खाते में गया। इससे भगवा के कई मजबूत किले ध्वस्त हो गए। इस बार भाजपा केवल चार ही सीट बचा पाई।

झीरम का असर
पिछली बार विधानसभा चुनाव के ठीक छह महीने पहले 25 मई को बस्तर की झीरमघाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस के काफिले पर हमला किया। इस हमले में तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और बस्तर टाइगर के नाम से प्रसिद्ध महेन्द्र कर्मा समेत कई कांग्रेसी नेता मारे गए। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार वोटरों पर इसका असर पड़ा, इसी वजह से वहां कांग्रेस को बड़ी जीत मिली।

भाजपा का गिर रहा वोट शेयर
बस्तर संभाग में भाजपा का वोट शेयर लगातार गिर रहा है। 2003 में संभाग की 12 में से 9 सीटे भाजपा के खाते में आईं। पार्टी को करीब 43 फीसद वोट मिले। 2008 में पार्टी के 11 सीटों पर जीती, लेकिन वोट शेयर घटकर 42 फीसद पर आ गया। वहीं, 2013 में वोट प्रतिशत सवा फीसद और कम होकर 40.79 पर आ गया।

सीधे 11 फीसद बढ़ा कांग्रेस का वोट शेयर
कांग्रेस के वोट शेयर में पिछले चुनाव में जबरदस्त उछाल आया। पार्टी के खाते में 8 सीटे आईं, लेकिन वोट करीब 43 फीसद मिले। यह 2008 में मिले करीब 32 फीसद वोट से 11 फीसद अधिक था। वहीं, 2003 में पार्टी को संभाग की तीन सटों पर कांग्रेस जीती थी और पार्टी हिस्से में लगभग 33 फीसद आया था। 2013 में पार्टी के वोट शेयर में हुई वृद्धि को बचाए रखना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगी।

जो चार बचे, वे परंपरागत
भाजपा की जो चार सीटे बचीं है, वे पार्टी की परंपरागत सीट है। अंतागढ़ में भाजपा दो चुनाव व एक चुनाव जीत चुकी है। इसी तरह केदार कश्यप तीसरी, महेश गागड़ा व संतोष बाफना लगातार दूसरी बार जीते हैं। हालांकि दो बार विधायक रहे बैदूराम, सुभाउ कश्यप और तला उसेंडी पिछला चुनाव हार गईं।