And changed in the state of Madhya Pradesh,
जहां कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया राहुल गांधी से मिल रहे थे और वहां सीएम का नाम तय हो रहा था। नाम भले ही दिल्ली में तय हो रहा हो मगर कांग्रेस दफतर के बाहर तो कार्यकर्ता नाम तय करने के लिये गला फाडे जा रहे थे। एक तरफ “जय जय कमलनाथ” तो दूसरी तरफ “हर दिल पर नाम लिख दिया सिंधिया सिंधिया”। नारेबाजी के साथ ही जमकर बैनर, पोस्टर और फलेक्स लहरा रहे थे।
पीसीसी दफतर के बाहर लाल रंग का डायस बनाया गया था टीवी कैमरों के लिये और वहां लगे कैमरो के लिये इससे अच्छे विजुअल्स नहीं हो सकते थे इसलिये लगातार लोकल और रीजनल चैनलों पर ये मारामारी लगातार लाइव चल रही थी। उधर पीसीसी में अंदर के कमरे में दिग्विजय सिंह खाना खाते हुये ये नारे सुन रहे थे जब उनसे वहां बैठे किसी ने कहा कि ये सब बंद करवाइये तो उन्होने हाथ हिलाकर मुस्कुराकर कहा भाई कार्यकर्ताओं का जोश है थोडी देर बाद ठंडा हो जायेगा। मगर ये जोश जाकर ठंडा हुआ रात दस बजे जब ये तय हो गया कि कमलनाथ विधायक दल के नेता यानिकी मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार के सीएम होगें।
रात ग्यारह बजे पहले कमलनाथ और उसके करीब बीस मिनिट बाद सिंधिया पार्टी दफतर पहुंचे। तब तक दिसंबर की ठंड में पार्टी दफतर के बाहर राजनीतिक माहौल की गर्मी आ चुकी थी। सिंधिया के नारे ठंडे हो गये थे और एमपी के नाथ कमलनाथ कमलनाथ के नारे होर्डिग पोस्टर लहराने लगे थे। थोडी देर बाद ही अंदर से खबर आ गयी कि कमलनाथ विधायक दल के नेता चुन लिये गये और नारेबाजी तब तक चरम पर जा पहुंची।
इससे पहले की कमलनाथ बाहर अपने कार्यकर्ताओं के सामने आते आ पहुंचे सिंधिया जिनका चेहरा तमतमाया हुआ था मगर अपने समर्थकों की भीड देख मुस्कुरा कर मराठी में पूछा तुम सब ऐसा क्यों कर रहे हो भाई और गाडी में बैठकर चलते बने। और फिर थोडी देर बाद मुस्कुराते हुये निकले कमलनाथ। विधायक दल का नेता चुने जाने की खुशी कमलनाथ के चेहरे पर दिख रही थी आमतौर पर आते ही गाडी में आगे की सीट पर बैठकर चल देने वाले कमलनाथ पंद्रह मिनिट तक समर्थकों की ओर देख हाथ हिलाते रहे और इस क्षण को जीते हुये दिखे जिसके लिये वो पिछले आठ महीने से मेहनत कर रहे थे और इस दिन का सपना सालों से मन में संजोये हुये थे। और रात करीब साढे बारह तक कांग्रेस दफतर पर दोपहर से बिखरी रौनक धीरे धीरे ढलने लगी।
पत्रकार होने का यही फायदा होता है कि आप बहुत सारी घटनाओं को करीब से देखते और महसूस करते हैं। बाद में यही घटनाएं इतिहास बन जाती हैं। वैसे भी कहा जाता है कि पत्रकारिता जल्दबाजी में लिखा गया इतिहास होता है। मुझे याद आ रहा था 2003 का वो चुनाव जब भरोसा नहीं होता था कि दिग्विजय सिंह की दस साल पुरानी सरकार कैसे गिरेगी। मगर चुनाव हुआ ओर उमा भारती के जोश को जनता के वोटों ने हवा दी और दस साल से जमी कांग्रेस भरभराकर गिर पडी। ठीक यही सोचा जा रहा था शिवराज सरकार के बारे में।
लोग हैरान होते थे कि शिवराज की पंद्रह साल पुरानी और घनघोर लोकप्रिय नेता की सरकार कैसे गिरेगी। जब हमारे चैनल का सर्वे कांग्रेस की सरकार बनते दिखाते थे तो लोग सवाल उठाते थे और उनका पहला सवाल होता था कि पिछले चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच वोट प्रतिशत में दस फीसदी का फर्क था तो इस अंतर को कांग्रेस कैसे पाट पायेगी। कांग्रेस ने ऐसा क्या कर दिया कि जनता उसको हाथोंहाथ लेगी और एमपी का राजपाट पाट देगी।
मगर सवाल उठाने वाले लोग भूल जाते थे कि जनता जब चुनती है तो पुराना इतिहास नहीं देखती जो पसंद आता है उसे चुनती है और जो नापसंद है उसे उठाकर अगले पांच साल तक कूडे में फेंक देती है अपनी गलतियों का प्रायश्चित करने के लिये। और इस बार तो और गजब हुआ है बीजेपी को कांग्रेस के मुकाबले कुल वोट ज्यादा मिले हैं वोट प्रतिशत भी ज्यादा पाया है मगर कांग्रेस वोट और प्रतिशत में पिछड कर सीटें ज्यादा पा गयीं। यही लोकतंत्र की पहेली है जिसे समझना मुश्किल है। मगर कांग्रेस के नारे का असर हुआ है और अब मध्यप्रदेश में वक्त बदल गया है। महसूस करिये..