नई दिल्ली। राजस्थान विधानसभा चुनावों में जीत के बाद कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती सीएम चुनने की थी। अशोक गहलोत और सचिन पायलट में से कोई भी इस पद के लिए अपनी दावेदारी छोड़ते नहीं दिख रहे थे। ऐसे में कांग्रेस ने एक बीच का रास्ता निकाला। गहलोत सीएम बने और सचिन पायलट को डेप्युटी सीएम बना दिया गया। सत्ता के संतुलन और पार्टी की आंतरिक लड़ाई को साधने के लिए अक्सर नई सरकारों में डेप्युटी सीएम का पद बनाया जाता है। आखिर ये डेप्युटी सीएम किसे रिपोर्ट करते हैं? इनके हाथों में क्या शक्ति होती है? क्या होता है जब सीएम और डेप्युटी सीएम, दोनों ही मास अपील वाले नेता होते हैं?
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गठबंधन से लेकर जाति को साधने तक की कवायद
डेप्युटी सीएम बनाने में गठबंधन से लेकर जाति तक को साधने की भी कवायद छिपी रही है। यह गठबंधन की ही राजनीति थी कि बिहार में बीजेपी के सुशील मोदी नीतीश सरकार में डेप्युटी सीएम बने। इसी तरह जाति की राजनीति को सेट करने के लिए यूपी में दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य को डेप्युटी सीएम बनाया गया।
नेता पर डिपेंड करता है डेप्युटी सीएम पद का जलवा
डेप्युटी सीएम का पद जरूरत के मुताबिक बनाया जाता है। ऐसे में यह बात इस पद पर बैठने वाले नेता पर डिपेंड करती है कि जलवा कितना होगा। महाराष्ट्र में गोपीनाथ मुंडे 1995-1999 तक डेप्युटी सीएम रहे। पहले मनोहर जोशी की सरकार फिर नारायण राणे की सरकार में। तब महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी का गठबंधन था और बतौर डेप्युटी सीएम गोपीनाथ मुंडे की सरकार में अच्छी-खासी हैसियत थी। ओबीसी नेता मुंडे को तब महत्वपूर्ण गृह विभाग मिला था जो कि सामान्य स्थिति में सीएम के पास होता है।
बिहार में आपको इसके उलट स्थिति देखने को मिलती है। बिहार बीजेपी का ताकतवर नेता होने के बावजूद उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी माइल्ड पर्सनैलिटी के लिए जाने जाते हैं। इस वजह से सीएम नीतीश कुमार जेडीयू-बीजेपी गठबंधन में डॉमिनेट करते हुए देखे जा सकते हैं। यूपी की बात करें तो डेप्युटी सीएम दिनेश शर्मा की तुलना में दूसरे डेप्युटी केशव प्रसाद मौर्य ज्यादा ताकतवर समझे जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि मौर्य प्रदेश में बीजेपी के ओबीसी चेहरा हैं और उन्हें केंद्रीय नेतृत्व का मजबूत समर्थन हासिल है।
यहां तो पीएम के भी होते रहे हैं डेप्युटी
भारत में केवल डेप्युटी सीएम ही नहीं होते बल्कि पीएम के भी डेप्युटी हुए हैं। 1989 में जब देवीलाल ने वीपी सिंह सरकार में डेप्युटी पीएम पद की शपथ ली तो विवाद खड़ा हो गया था क्योंकि यह कोई संवैधानिक पद नहीं था। देवीलाल के मामले को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई थी। हालांकि सर्वोच्च अदालत ने देवीलाल के पक्ष में फैसला सुनाया था। इसी तरह वाजपेयी सरकार में लाल कृष्ण आडवाणी भी डेप्युटी पीएम के पद पर रह चुके हैं।