भोपाल। 42 साल पहले राजस्व विभाग को हस्तांतरित किए गए 486 वनग्राम के लोगों को वन कानून से अब मुक्ति मिलेगी। राज्य सरकार इन ग्रामों को डि-नोटिफाई कराने के लिए तैयारी कर रही है। इसके लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेगी। डि-नोटिफाई होने के बाद इन ग्रामों के लोग कृषि और आवासीय जमीन खरीद और बेच सकेंगे। अभी कानूनन इस पर रोक है, लेकिन ग्रामों में चोरी-छिपे जमीन खरीदी व बेची जाती है। इसके अलावा 925 वनग्रामों को राजस्व ग्राम घोषित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
MP: 486 people of forest villages will get freedom from forest law, now they will be able to buy land and buy benches.
भोपाल सहित प्रदेश के लगभग सभी जिलों में वर्ष 1977 में 486 वनग्रामों को राजस्व विभाग को हस्तांतरित कर दिया गया था। इसके बाद इन ग्रामों का रिकॉर्ड राजस्व विभाग संधारित (रखरखाव) करने लगा, लेकिन राज्य सरकार ने इन ग्रामों की भूमि को वन से राजस्व में परिवर्तित नहीं कराया था।
इसलिए अब तक इन ग्रामों की जमीन पर वन संरक्षण अधिनियम लागू है। इस कानून के हिसाब से ग्रामों में रहने वाला कोई भी व्यक्ति जमीन बेच और खरीद नहीं सकता है। इससे ग्रामीण परेशान हैं और लगातार वन विभाग को शिकायतें कर रहे हैं। इस स्थिति को देखते हुए सरकार ने इन ग्रामों की जमीन को डि-नोटिफाई कराने का फैसला लिया है। वन विभाग इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में जुटा है। जानकार बताते हैं कि कोर्ट में याचिका लगाकर पूरे तथ्य रखे जाएंगे। इस स्थिति में कोर्ट से जमीन को डि-नोटिफाई की कार्रवाईकी जाती है।
भोपाल जिले में ये गांव
अगरा, हरीपुरा, खेड़ाली, कालापानी, अमोनी, झिरियाखेड़ा, काकड़िया, रसूलिया, प्रेमपुरा, समरधा आदि ग्राम भोपाल में हैं। जिन्हें 1977 में राजस्व घोषित कर दिया गया था, लेकिन अब तक जमीन डि-नोटिफाई नहीं की गई है।