भोपाल। मध्यप्रदेश विधान सभा की तीन दशक पुरानी परंपरा आज खत्म हो गयी। उपाध्यक्ष का पद सत्ता पक्ष के खाते में चला गया। विपक्ष के भारी हंगामे और आपत्ति के बीच कांग्रेस की हिना कांवरे उपाध्यक्ष चुन ली गयीं। परंपरा के मुताबिक विधानसभा अध्यक्ष सत्ता पक्ष और उपाध्यक्ष विपक्ष का होता है। लेकिन स्पीकर पद के लिए भाजपा ने अपना प्रत्याशी उतारकर इस परंपरा को तोड़ दिया था। इसलिए कांग्रेस ने उसे आगे बढ़ाते हुए उपाध्यक्ष के लिए हिना कांवरे को उतार दिया।
The three-decade-old tradition ended in MP VISH, Vice President, Heena Kannwar, BJP did not get any post
सदन की चौथे दिन की कार्यवाही शुरू होते ही विपक्ष ने हंगामा कर दिया था। आज सदन के लिए उपाध्यक्ष चुना जाना था। कांग्रेस ने हिना कांवरे और बीजेपी ने जगदीश देवड़ा को मैदान में उतारा था। सदन की परंपरा के विपरीत इस बार अध्यक्ष पद के बाद उपाध्यक्ष पद के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष में टकराव हुआ। सदन की कार्यवाही हंगामे के साथ शुरू हुई तो फौरन ही अध्यक्ष ने 10 मिनट के लिए स्थगित कर दी। विपक्ष ने आसंदी पर पक्षपात करने का आरोप लगाया।
सदन की कार्यवाही शुरू होते ही विपक्ष ने कांग्रेस की हिना कावरे को विधानसभा उपाध्यक्ष बनाने के प्रस्ताव के विरोध में जोरदार हंगामा शुरू कर दिया। बीजेपी विधायकों ने आसंदी के नजदीक पहुंचकर हंगामा शुरू कर दिया। हिना कांवरे का अकेले नाम पढ़े जाने पर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सीता शरण शर्मा ने आपत्ति जताई। विपक्ष डिप्टी स्पीकर के पद को लेकर वोटिंग न कराए जाने से खफा था। उसने स्पीकर पर पक्षपात के आरोप लगाए।
नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने भी विधानसभा अध्यक्ष एन पी प्रजापति पर पक्षपात करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा अध्यक्ष ने विपक्ष की आवाज दबाने का काम किया है। आपत्ति के बाद फिर स्पीकर ने पांचों प्रस्ताव पढ़े, 4 प्रस्ताव हिना के थे और 5वां जगदीश देवड़ा का। हंगामा इस पर हुआ कि अध्यक्ष वोटिंग कराने के लिए सीताशरण शर्मा की बात सुनने को तैयार नहीं थे। सीताशरण शर्मा पॉइंट आॅफ आर्डर देना चाह रहे थे।
पूर्व सीएम और विधायक शिवराज सिंह चौहान ने भी सदन में कहा कि पहले दिन से ही विपक्ष को नजरअंदाज किया जा रहा है। चौहान और गोपाल भार्गव ने आसंदी की भूमिका पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा पहले ही दिन अध्यक्ष ने अपनी निष्पक्षता खो दी है। विपक्ष के शोर-शराबे औ? हंगामे के बीच अध्यक्ष एन पी प्रजापति ने सदस्यों को शांत कराने का प्रयास किया लेकिन जब सदस्य नहीं मानें तो उन्होंने सदन की कार्यवाही 10 मिनट के लिए स्थगित कर दी।
10 मिनट बाद जैसे ही सदन फिर समवेत हुआ विपक्ष फिर हंगामे पर उतर आया। इस दौरान पक्ष और विपक्ष के सदस्यों के बीच तीखी नोंक-झोंक होने लगी हुई। इसे देखते हुए अध्यक्ष ने दोबारा सदन की कार्यवाही 10 मिनट के लिए स्थगित कर दी। लेकिन तीसरी बार कार्यवाही शुरू होने पर भी विपक्ष का वही रवैया रहा। और उसी हंगामे के बीच उपाध्यक्ष का चुनाव हो गया।