फारेस्ट की नौकरी में युवाओं की नहीं दिलचस्पी, एक साल में 15 गार्डों ने छोड़ी नौकरी

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श्योपुर। फॉरेस्ट की नौकरी के प्रति अब युवाओं में दिलचस्पी नहीं दिख रही। फॉरेस्ट गार्ड बनकर आए युवा कुछ वक्त गुजारने के बाद नौकरी से लगातार इस्तीफा दे रहे हैं। एक साल में अभी तक जिलेभर के वनक्षेत्रों में तैनात किए गए फॉरेस्ट गार्डों में 15 से ज्यादा नौकरी छोड़कर चले गए हैं। लगातार रिजाइन होते रहने से वन विभाग में फिर से कर्मचारियों का टोटा होने लगा है। जैसे-तैसे रेंजर मिले तो अब बीटें खाली हो गई हैं।
Not interested in forest job, 15 guards left job in a year
जिला वनक्षेत्र में 20 से ज्यादा बीटें खाली पड़ी हैं। जहां जंगल की सुरक्षा सिर्फ कागजी बनकर रह गई है। इस कमी के चलते कई जगहों पर फॉरेस्ट की जमीन पर अतिक्रमण हो रहा है और उत्खनन से जंगल को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। चिंतनीय बात ये है कि जहां विभागीय अधिकारियों का सबसे ज्यादा फोकस रहता है वहीं पर जंगल असुरक्षति है।

यह दे गए रिजाइन, लौटा गए एक-एक माह का वेतन
जो फॉरेस्ट गार्ड नौकरी छोड़कर गए हैं उनके लौटने की उम्मीद अब नहीं है। क्योंकि वे तय गाइडलाइन के हिसाब से रिजाइन देकर गए हैं और एक-एक महीने का वेतन लौटा गए हैं। नौकरी छोड़ने वाले नाकेदारों में आशीष बंसल, आशीष तिवारी, योगेश, श्याम बिहारी शर्मा, रामबाबू बैरवा, अभय सिंह तोमर, राघवेंद्र सेंगर, शैलेंद्र सिंह सिकरवार, लवकुश दांगी, अरविंद लोधी, आशीष शर्मा, जितेंद्र कुशवाह, सोमदत्त शर्मा, मधुर खुर्द, अंकित चौरसिया आदि शामिल हैं।

कई बीटें प्रभार पर, पूरे क्षेत्र का नहीं होता निरीक्षण
फॉरेस्ट गार्ड की कमी के चलते कई बीटों का प्रभार अन्य वनकर्मी संभाल रहे हैं। यह जिम्मेदारी कागजी रूप से तो बेहतर निभाई जा रही है लेकिन हकीकत ये है कि अधिकतर बीटों का पूरा निरीक्षण नहीं होता। देखा जाए तो एक बीट का करीब 2000 से 2500 हेक्टेयर वनक्षेत्र का दायरा होता है। इधर, प्रभार होने के कारण यह दायरा दोगुना हो गया है। यानी एक वनकर्मी के भरोसे 5000 से 6000 हेक्टेयर वनक्षेत्र हो गया है। जिला वनक्षेत्र में करीब 19 बीटों खाली पड़ी हुई हैं।

इनका कहना है
ये सही बात है कि कुछ फॉरेस्ट गार्ड नौकरी छोड़कर चले गए हैं। नई नौकरी मिल जाती है तो छोड़कर चले जाते हैं। बड़ी जगहों पर सभी जाना चाहते हैं- एचएस मोहंता, सीसीएफ, ग्वालियर वनमंडल