नई दिल्ली। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को विदेशी उत्पादों और ब्रैंड्स से परहेज करने को कहा है। उसका कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल की शुरूआत से ही महत्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ प्रोग्राम से लोकल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में विदेशी उत्पादों और ब्रैंड्स के इस्तेमाल से बचना चाहिए।
sarakaaree vibhaagon ke mek in indiya ko tarajeeh na dene se peeemo naaraaj
प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्रा ने 3 जनवरी को सभी सचिवों को लिखे पत्र में कहा, ‘इस तरह की शिकायतें मिल रही हैं कि सरकारी संस्थाएं अपने टेंडरों में विदेशी उत्पाद या ब्रैंड को तरजीह दे रही हैं या फिर ऐसी शर्तें रख रही हैं, जिनसे लोकल मैन्युफैक्चरर्स बिडिंग प्रोसेस से बाहर हो गए हैं।’ उन्होंने लिखा कि ऐसे स्पेसिफिकेशन गवर्नमेंट प्रोक्योरमेंट और फाइनैंशल रूल्स के खिलाफ हैं, जिन्हें मई 2017 में गवर्नमेंट परचेज में लोकल कॉन्टेंट को बढ़ावा देने के लिए खासतौर पर संशोधित किया गया था।
मिश्रा ने बताया की ‘हमारी फिक्र मेक इन इंडिया को लेकर है। हम स्वदेशी खरीद को बढ़ावा देना चाहते हैं।’ सभी सरकारी विभागों और मंत्रालयों के वरिष्ठ नौकरशाहों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि ऐसी कोई भी शर्त टेंडर का हिस्सा न रहे, जिसमें लोकल मैन्युफैक्चरर्स और प्रवाइडर्स के शामिल होने की मनाही हो। यह दूसरी बार है, जब मिश्रा ने सरकारी विभागों से नियमों का पालन करने के लिए कहा है। उन्होंने दिसंबर 2017 में भी डिपार्टमेंट आॅफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी ऐंड प्रमोशन (डीआईपीपी) को इसी तरह का पत्र लिखा था। उसमें मिश्रा ने मेक इन इंडिया को तरजीह देने वाली पब्लिक प्रोक्योरमेंट पॉलिसी को सख्ती से लागू करने के लिए कहा था, जिसे कैबिनेट ने उसी साल मई में लागू किया था।
मिश्रा ने 10 दिसंबर 2017 को डीआईपीपी के सेक्रटरी रमेश अभिषेक को पत्र में लिखा था, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कई विभाग मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने वाले नियमों का पालन नहीं कर रहे। हरेक विभाग के आला अधिकारियों की यह जिम्मेदारी होगी कि वे टेंडर की शर्तों को पब्लिक प्रोक्योरमेंट आॅर्डर के हिसाब से तैयार करें। हर टेंडर की इंडियन मैन्युफैक्चरर्स को ध्यान में रखकर समीक्षा होनी चाहिए।’ मिश्रा के पत्र से कुछ दिन पहले डीआईपीपी की एक स्टैंडिंग कमिटी बीईएमएल, भारत फोर्ज, फिक्की और एलऐंडटी जैसी देसी संस्थाओं की शिकायतें सुनी थीं। उन्होंने आरोप लगाया था कि उन्हें कुछ शर्तों के जरिये कई टेंडर्स से बाहर रखा जा रहा है।