जम्मू-कश्मीर सरकार ने घाटी के 18 अलगाववादी और 160 राजनीतिज्ञों से छीना सुरक्षा कवच

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श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर सरकार ने घाटी के 18 हुर्रियत नेताओं और 160 राजनीतिज्ञों को दी गई सुरक्षा वापस ले ली है। इसके साथ ही 160 से ज्यादा राजनीतिज्ञों का सुरक्षा कवच भी छीन लिया गया है। इससे पहले भी सरकार ने पुलवामा हमले के बाद सख्त कदम उठाते हुए चार अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस ली थी। बुधवार की कार्रवाई की बाद सभी 22 अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस हो गई है। जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू है।
Jammu and Kashmir government has 18 security guards from the Valley and 160 from the politicians
पुलवामा में सीआरपीएफ काफिले पर हमले में चालीस जवान शहीद हो गए थे। इस घटना के बाद कश्मीर घाटी में अलगाववादी नेताओं पर केंद्र सरकार लगातार कड़ी कार्रवाई कर रही है। जिन प्रमुख हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा वापस ली गई है उनमें एसएएस गिलानी, अगा सैयद मौसवी, मौलवी अब्बास अंसारी, यासीन मलिक, सलीम गिलानी, शाहिद उल इस्लाम, जफर अकबर भट, नईम अहमद खान, फारुख अहमद किचलू, मसरूर अब्बास अंसारी, अगा सैयद अब्दुल हुसैन, अब्दुल गनी शाह, मोहम्मद मुसादिक भट और मुख्तार अहमद वजा शामिल हैं।

सौ गाड़ियां और एक हजार पुलिसकर्मी हुए फ्री
इन अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा में सौ से ज्यादा गाड़ियां लगी थीं। इसके अलावा 1000 पुलिसकर्मी इन नेताओं की सुरक्षा में लगे थे। इससे पहले 17 फरवरी को भी राज्य सरकार ने अलगाववादी नेताओं मीरवाइज उमर फारूक, प्रफेसर अब्दुल गनी भट, बिलाल लोन, हाशिम कुरैशी और शबीर अहमद शाह की सुरक्षा वापस लेने का फैसला किया था।

सुरक्षा वापस होने पर दी थी सफाई
जम्मू-कश्मीर सरकार ने चार अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस ली थी। इसके बाद हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की प्रतिक्रिया सामने आई थी। एक बयान में हुर्रियत की ओर से कहा गया कि उन्होंने कभी सुरक्षा नहीं मांगी थी। मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व वाले हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने कहा, ह्यसरकार ने खुद ही अलगाववादी नेताओं को सुरक्षा मुहैया कराने का फैसला किया था, जिसकी कभी मांग नहीं की गई।

मीरवाइज उमर फारूक, उन चार अलगाववादी नेताओं में शामिल थे, जिनकी सुरक्षा वापस ली गई थी। बयान में आगे कहा गया, मीरवाइज उमर फारूक ने वास्तव में कई बार कहा कि वह चाहते हैं कि सुरक्षा वापस ले ली जाए। बयान के मुताबिक, ह्यसुरक्षा वापस लेने के फैसले से न तो अलगाववादी नेताओं के रुख में बदलाव आएगा और न ही इससे जमीनी हालात पर कोई असर पड़ेगा।