सरकार के खिलाफ साधु-संत, मंत्री का दर्जा देकर बाबाओं को मनाया शिवराज ने

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भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार ने आदेश जारी कर पांच संतों को राज्यमंत्री का दर्जा दिया है। वैसे भी चुनावी साल में इस फैसले को लेकर तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं। अब इस फैसले की परतें भी खुलने लगी हैं क्योंकि ये वही संत हैं जो किसी न किसी मामले को लेकर राज्य सरकार के खिलाफ लामबंद थे, ऐसे में सरकार ने उन्हें मंत्री बनाकर खामोश कर दिया है।

दरअसल, जिन पांच संतों को राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है, उनमें से दो संत नर्मदा किनारे हुए वृक्षारोपण को घोटाला बताते हुए एक अप्रैल से 15 मई तक नर्मदा घोटाला रथ यात्रा निकालने की तैयारी में थे। एक अप्रैल से इन दोनों संतों ने यात्रा शुरू भी कर दी थी। चुनावी साल और नर्मदा के मामलों को लेकर कई आरोपों से घिरे शिवराज ने किसी भी तरह का हंगामा होने से पहले ही बाबाओं को मना लिया।

सीएम की नर्मदा यात्रा पर हुए भारी भरकम खर्च और प्रचार-प्रसार में पानी की तरह बहाए गए पैसे को लेकर सरकार पहले से ही बैकफुट पर थी। वहीं जुलाई 2017 में नर्मदा किनारे किए गए वृक्षारोपण के दौरान 6.67 करोड़ पौधे लगाने के दावे पर भी सवाल उठ रहे हैं, जबकि दूसरी तरफ दिग्विजय सिंह की पैदल नर्मदा परिक्रमा समापन की ओर है। जिससे साफ है कि दिग्विजय अपने अंदाज में परिक्रमा के बाद नर्मदा को लेकर शिवराज सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

वहीं इंदौर में 28 मार्च को गोम्मटगिरी स्थित मां कालिका मंदिर में संतों की बैठक हुई थी, जहां एक अप्रैल से 15 मई तक नर्मदा घोटाला यात्रा निकालने का एलान किया गया था। यात्रा की अगुवाई कम्प्यूटर बाबा और आयोजन का जिम्मा पंडित योगेन्द्र महंत ने संभाला था। संत समाज द्वारा घोटाले के आरोप को लगते देख आनन-फानन में सरकार ने केवल दो ही नहीं बल्कि पांच बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा देकर मामले को शांत करा दिया।

संत जीवन जीते हुए राजसी सुविधाएं पाकर बाबाओं के बोल भी बदलने लगे हैं। सरकार के इस फैसले पर कम्प्यूटर बाबा ने कहा कि अब घोटाले का कोई सवाल नहीं है। हमने अपनी बात रख दी है और अब हम नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए जनजागरूकता का काम कर नर्मदा के प्रति लोगों को संवेदनशील बनाएंगे।