दांव पर पूर्व प्रदेशध्यक्षों की साख, खंडवा सीट पर होगा रोचक मुकाबला

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भोपाल। मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं। बीजेपी हो या फिर कांग्रेस, दोनों ही पार्टियों के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और नंदकुमार सिंह चौहान की इस चुनाव में दांव साख पर लगी है। दोनों ही नेता खंडवा सीट पर एक-दूसरे को एक-एक बार मात दे चुके हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर दोनों का जमकर विरोध भी है।

लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान पर भरोसा जताया है, तो बुधनी विधानसभा सीट से चुनाव हारने वाले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव को फिर मौका मिला है। सांसद नंदकुमारसिंह पहली बार 11 वीं लोकसभा के लिए वर्ष 1996 मे खंडवा से सांसद बने। 1998 में दूसरी बार, 1999 में तीसरी बार, 2004 में चौथी बार बने, लेकिन 2009 में हार गए और 2014 में फिर मोदी लहर में उन्होंने अरुण यादव को हराकर पांचवी बार जीत दर्ज की।

खंडवा की डगर नहीं है आसान?
-स्थानीय स्तर पर नंदकुमार सिंह चौहान और अरुण यादव का विरोध है।
-पूर्व मंत्री अर्चना चिटनिस ने नंदकुमार सिंह चौहान का विरोध कर टिकट की दावेदारी की थी।
-दोनों ही पूर्व प्रदेश अध्यक्षों को भितरघात का खतरा है।
-बीजेपी और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने चेहरा बदलने की मांग करते हुए पार्टी नेताओं को पत्र भी लिखा था।
-मंच पर प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह की मौजूदगी में नंदकुमार सिंह चौहान का विरोध हुआ था।
-सांसद रहने के दौरान नंदकुमार सिंह चौहान के कई विवादित मामले सामने आये थे।
-कांग्रेस से बगावत करके निर्दलीय बुरहानपुर विधायक बने ठाकुर सुरेंद्र सिंह खुलकर बगावत कर रहे।
-खंडवा में दोनों ही नेताओं को लेकर गुटबाजी हमेशा हावी रही है।

इसलिए दिया गया टिकट?
-राहुल गांधी के करीबी होने के चलते अरुण यादव निमाड़ के पहले केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं
-हाईकमान के कहने पर अरुण यादव ने शिवराज सिंह चौहान के सामने विधानसभा चुनाव लड़ा था।
-अरुण यादव को पिता सुभाष यादव की छवि का फायदा भी मिल रहा है।
-केंद्रीय मंत्री रहते हुए अरुण यादव ने नेपा मिल को 1200 करोड़ का रिवाइवल पैकेज दिलवाया था
-पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और संगठन में मजबूत पकड़ की वजह से दोबारा टिकट मिला।
-स्थानीय स्तर पर विरोध के बावजूद कोई भी बड़ा नेता नहीं था।
भले ही दोनों पूर्व प्रदेश अध्यक्षों का स्थानीय स्तर पर विरोध हो, लेकिन संगठन में पकड़ और प्रदेश की कमान संभालने की वजह से पार्टी ने फिर भरोसा जताया है। खंडवा संसदीय में तीन विधानसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा है, जबकि कांग्रेस के चार विधायक और एक निर्दलीय विधायक है। ऐसे में मुकाबाल इस सीट पर रोचक होने वाला है।