पंकज शुक्ला
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को कांग्रेस का उम्मीदवार बनाने की घोषणा के साथ ही भोपाल लोकसभा सीट देशभर में चर्चित हो गई थी। भाजपा द्वारा प्रज्ञा ठाकुर को मैदान में उतारने और तीन दिनों के दौरान उनके बयानों से उछले राजनीतिक पारे के बाद भोपाल का चुनाव देश का ‘प्रतीक’ चुनाव हो गया है। ऐसे में जब चुनाव अभियान बुनियादी मुद्दों से अलग एक खास किस्म की राह पर चल पड़ा है, कांग्रेस के प्रत्याशी दिग्विजय सिंह ने ‘विजन डाक्यूमेंट’ पेश कर चुनावी संघर्ष को पटरी पर लाने का जतन किया है। वे विकास के एजेंडे को रख चुके हैं। अब प्रतिक्रिया स्वरूप ही सही भाजपा भी यदि इस राह पर चलती है तो कम से कम यह चुनाव फिजूल मुद्दों को किनारे कर बुनियादी मुद्दों पर बात करने का सकारात्मक जतन होगा।
हम अपने से जुड़ी हर चीज को उसकी कमियां भुलाते हुए उसकी खूबियों के साथ याद रखते हैं। फिर चाहे वह अपना शहर ही क्यों न हो। मगर जैसा कि भोपाल के ही शायर फजल ताबिश ने कहा था-‘रेशा-रेशा उधेड़कर देखो, रोशनी कहां से काली है।‘ यह वक्त है कि हम भोपाल के पिछड़ेपन को जानें और उसके विकास की बात करें। हम यहां की विरासत के खत्म होने, प्रकृति के साथ निरंतर हो रहे खिलवाड़ पर फिक्र करें। यहां के बेतरतीब नियोजन पर चर्चा करें। अपने हित के लिए विकास की धारा अपने आंगन की ओर मोड़ देने तथा दूसरों को वंचित रखने के षड्यंत्रों को उजागर करें। हम बेरोजगारी, रोज पानी न मिलने, कॉलोनियों के विकास न होने, आवागमन के साधन न होने की बात करें। अपने जन प्रतिनिधियों से जानें कि वे मुफ्त की योजनाओं के अलावा शहर के विकास की किस दिशा को पेश कर रहे हैं।
ऐसे नाज़ुक वक़्त में जब शहरों के विकास की कोई दिशा ही तय नहीं है दिग्विजय ने ‘आसमानी’ विकास को नकारने का प्रयास किया है। वे अपनी धरोहर, अपनी प्रकृति, अपनी विशिष्टता को छोड़ विदेशों की ‘नकल’ मारने को विकास नहीं कहना चाहते। अपने विजन में वे कह रहे हैं कि भोपाल अपनी विशिष्टता को बरकरार रख विकास की सीढ़ियां चढें। यहाँ आने पर अतिथियों को ताल, पहाड़ और प्राकृतिक सौंदर्य और आधुनिकता की छाप एक साथ दिखाई दे। विकास ऐसा, जैसा जनता चाहती है। निर्माण वहां, जहां जरूरत है। लोक परिवहन उतना, जितना शहर का विस्तार है। सुविधाएं वे, जो भोपाल के बाशिंदों की दरकार है। सिंह बीते तीन दिनों से अपनी राजनीति को इसी एजेंडे के इर्दगिर्द संचालित कर रहे हैं। उनके इस प्रयास पर भाजपा की ओर से पूर्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने सवाल उठाए हैं। भाजपा की यह प्रतिक्रिया उम्मीद जगाती है कि उस ओर से भी विकास की अपनी दृष्टि का खुलासा किया जाएगा। पार्टी के घोषणा पत्र से अलग प्रत्याशी भी अपने काम की कोई दिशा, कोई पैमाना, कोई स्तर तय करेगा।
रविवार को सिंह ने जब अपना विजन डाक्यूमेंट मीडिया के समक्ष पेश किया तो कक्ष में मौजूद पत्रकारों के जेहन में यह सवाल उठा कि ‘विजन’ तो अच्छा है मगर इसका क्रियान्वयन कैसे होगा? इसमें से अधिकांश बातें समय-समय पर की जाती रही हैं मगर शहर के विकास की कोई दिशा ही तय नहीं है। हम अब तक यह तय नहीं कर पाए कि बड़ा तालाब हमारे लिए क्या है? क्या वह धरोहर है? विदेशी पंछियों को पसंद आने वाली और विविध जलचर, जलीय वनस्पतियों वाली रामसार साइट है? पुराने भोपाल की प्यास बुझाने वाला जलस्रोत है? पर्यटन स्थल है? वॉटर स्पोर्ट्स का सेंटर है? या अतिक्रमण कर रहे धनपतियों की जेब भरने का कमर्शियल पाइंट है? जब दिग्विजय कह रहे हैं कि वे भोपाल की पहचान अक्षुण्ण बनाए रखते हुए विकास करना चाहते हैं तो उम्मीद जागती है कि वे भोपाल की पहचान बड़े तालाब की सीमा रेखा को लील जाने वाले प्रयत्नों के प्रति सख्त होंगे। मप्र में उनकी पार्टी की सरकार है और जीत के बाद अपने विजन को पूरा करने की जिम्मेदारी वे स्वयं ले रहे हैं तो यह आस तो की ही जा सकती है कि यहां की हरियाली, यहां का पानी, यहां की आबोहवा, यहां की खूबसूरती ‘विनाशी’ विकास की भेंट नहीं चढ़ेगी।