एक तरफ दिग्विजय सिंह जैसे तपे हुये राजनेता तो दूसरी तरफ भगवाधारी प्रज्ञा सिंह ठाकुर। पिछले तीस साल से बीजेपी के गढ वाली भोपाल सीट से पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह की दावेदारी ने उतना नहीं चौंकाया जितना मालेगांव बम ब्लास्ट में आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने हिला दिया। वैसे भी प्रज्ञा सिंह का नाम आखिर में उन अमित शाह ने फाइनल किया जो हमेशा सरप्राइज देने के लिये जाने जाते हैं। नर्मदा परकम्मा के बाद बदली हुयी छवि के साथ राजनीति के धुरंधर दिग्विजय सिंह ने भोपाल को चुनावी राजनीति की नयी पारी शुरू करने के लिये चुनौती के रूप में चुना। ये चुनौती उनको कमलनाथ और राहुल गांधी की ओर से मिली बीजेपी की गढ वाली सीट को जीतने के लिये। अन्यथा वो राजगढ सीट से लडने की तैयारी कर रहे थे जो उनके लिये ज्यादा मुफीद होती। टिकट का ऐलान होने के बाद से बडे व्यवस्थित तरीके से चुनाव लडने जा रहे दिग्विजय सिंह को घेरने के लिये बीजेपी की ओर से शिवराज सिंह से लेकर उमा भारती तक के नाम चले और अमित शाह ने आखिरी मौके पर उतार दी भगवाधारी प्रज्ञा जो जांच एजेंसियों की ओर से लगाये गये बेहद गंभीर जघन्य आरोपों के बाद भी अपनी दुदर्शा के लिये दिग्विजय सिंह से ही व्यक्तिगत खुन्नस पाले हुये थीं।
हांलाकि दिग्गी राजा ने अपनी प्रतिद्वंदी का स्वागत स्नेह से किया मगर प्रज्ञा ने टिकट मिलते ही कार्यकर्ताओं की पहली बैठक में अपनी प्रताडना के लिये दिग्विजय सिंह को जिम्मेदार ठहराकर साफ कर दिया कि वो तो दिग्गी राजा से दो दो हाथ करने आयीं हैं इसलिये किसी विनम्रता और सौहाद्र की उम्मीद वो ना करें। अपनी जबान से घायल करने निकली प्रज्ञा ठाकुर ने दिग्विजय के बाद जब शहीद पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे को भी भला बुरा कहा तब बीजेपी की आंख खुली और साध्वी को मीडिया के कैमरों से दूर रखने के जतन होने लगे। भोपाल के रिवेरा टाउन में गुमनामी से उठाकर अचानक बीजेपी की उम्मीदवार बना दी गयीं प्रज्ञा को बीजेपी के लोगों ने प्रचार में शुरूआत में असहयोग किया उधर दिग्विजय सिंह के बहुत संतुलित और व्यवस्थित चुनाव प्रचार के सामने जब साध्वी निपट अकेली पडी तो अमित शाह ने बीजेपी के बडे नेताओं विनय सहस्त्रबुदधे, रामलाल और ओम माथुर की यहां डयूटी लगा दी जो रोज बीजेपी के विधायक और पार्षदों के बैठकें लेकर उनसे प्रज्ञा ठाकुर के प्रचार की कवायद कराने लगे। ओर प्रचार के आखिर दिनों में उतरा संघ जो अपने कई संगठनो के साथ घर घर जाने लगा और प्रज्ञा सिंह ठाकुर को साध्वी जी बताकर वोट देने की अपील करने लगा।
टीवी मीडिया में प्रज्ञा ठाकुर को मिल रहे अति प्रचार के सामने दिग्विजय सिंह बहुत संतुलित गति से चले। मीडिया कवरेज उन्होंने नहीं चाहा मगर बहुत बेसिक तरीके से चुनाव लडते हुये अपनी बात सोशल मीडिया की मदद से जनता के सामने रखी। काल सेंटर बनाकर युवाओं तक अपनी बात पहुंचायी मगर ज्यादा जोर उन्होंने पदयात्राओं और कांग्रेस की कमजोर सीटों पर वोट बढाने के लिये लगाया। भोपाल का विजन डाक्यूमेंट की पहल की मगर जब कांग्रेस के रणनीतिकारों ने देखा कि साध्वी के भगवा एजेंडे के आगे विकास की बात यहां कोई सुनने को तैयार नहीं है तो मदद ली गयी कंप्यूटर बाबा की। जिन्होंने कांग्रेस के प्रचार में भगवा रंग घोला बस फिर क्या था जनता असली और नकली भगवे रंग में खो गयी।
साध्वी के लिये रोड शो करने अमित शाह आये जिनके स्वागत के लिये चौक बाजार की दुकानों पर अजमेर से आयीं गुलाब के फूलों की थैलियां रखवायीं गयी और प्रज्ञा के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की गयी। मगर इसी रोड शो के दौरान चौक बाजार के दुकानदार कहते मिले कि जीएसटी नोटबंदी ने धंधा चौपट कर दिया मगर मोदी को एक मौका तो ओर देगे वोट साध्वी को नहीं मोदी को ही जायेगा ऐसे रोड शो से कुछ नहीं होता। कांग्रेस का प्रचार जहां दिग्विजय के इर्द गिर्द ही सिमटा रहा तो बीजेपी ने चुनाव जीतने के लिये सब कुछ किया। महिला प्रत्याशी के आंसुओं का इमोशनल कार्ड चला तो वोटरो को हिंदू मुसलमान में बांटने की कोशिश भी हुयी। दिग्विजय सिंह की पंद्रह साल पुरानी मिस्टर बंटाधार की छवि को भी बार बार जनता के सामने लाकर वोटर को डराया गया।
भोपाल सीट पर अच्छा मतदान हुआ है करीब पैंसठ फीसदी से ज्यादा। मगर जिन दो विधानसभा सीट बैरसिया और सिहोर में पचहत्तर फीसदी से ज्यादा वोट पडे हैं वो बीजेपी के विधायक वाली सीट हैं मगर कांग्रेस का दावा है कि इन सीटों पर कांग्रेस ने काम ज्यादा किया था।
इसलिये बीजेपी इससे खुश ना हो। बीजेपी इस बात से फूली नहीं समा रही कि कांग्रेस विधायकों वाली तीनों सीटों भोपाल उत्तर, भोपाल मध्य और भोपाल दक्षिण पश्चिम में वोट सामान्य ही गिरे। उधर कांग्रेस खेमा इस बात से भी कम उत्साहित नहीं है कि बीजेपी का सबसे बडा गढ गोविंदपुरा में सामान्य मतदान ही हुआ। हां ग्रामीण सीट वाली हुजूर में अच्छा वोट गिरा जो बीजेपी वालों का खून बढाने के लिये काफी है। नरेला सीट पर मिली जुली आबादी में दोनों पार्टियां बराबरी पर खडी दिख रहीं है।