साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर : सन्यास और राजनीति का विस्फोटक मेल…

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ब्रजेश राजपूत,
एबीपी न्यूज,
भोपा
संडे शख्सियत..
छोटा कद, पैर से कंधे तक भगवा रंग के वस्त्र और सर पर सरदारों की तरह की भगवा पगडी। चलती धीरे हैं मगर बोलती हैं तो आग सी लगाती है। उमर होगी कोई पैंतालीस पचास के आसपास। अपने आपको साध्वी कहती हैं और जिस गाडी पर चलती हैं उसका नंबर ही एक हजार आठ है।

नाम के आगे श्रीश्री एक हजार आठ लगाने की जरूरत ही नहीं है। वैसे तो भिंड के लहार कस्बे की रहने वाली हैं मगर अब ठिकाना भोपाल है। यहां भी पहले खुशीलाल शर्मा आयुर्वेदिक अस्पताल के एक खास कमरे में उनका डेरा था तो अब सांसद विधायकों की कालोनी रिवेरा टाउन के बंगला नंबर 128 में है। इस पाश कालोनी में उनका घर तलाशना बेहद आसान है क्योंकि सुरक्षाकर्मियों का तंबू घर के बाहर लगा है। यूं पिछले कुछ सालों से ये सुरक्षा कर्मियों से घिरे रहना उनकी नियति हो गयी है।

बचपन से लेकर लडकपन तक उनका समय लहार में बीता जहां आयुर्वेदिक डाक्टर चंद्रपाल सिंह की कटे बाल वाली बेटी के तौर पर उनको जानते थे। तौर तरीके ऐसे कि लहार जैसे छोटे कस्बे में लोग उनके लडकों जैसे कटे बाल, पैंट शर्ट पहनने और उस पर मोटरसाइकिल की सवारी करने पर हैरानी जताते थे। मगर प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने कभी किसी की परवाह नहीं की। लहार की गलियों में उनकी दनदनाती मोटरसाइकिल फर्राटे से गुजरती थी तो लोग कहते थे कि डाक साब की बेटी तूफान है। और ये तूफान लहार में ज्यादा दिन रूका भी नहीं। लहार से ग्रेजुयेशन फिर भिंड से पोस्ट ग्रेजुयेशन कर प्रज्ञा भोपाल आ गयी। इस बीच में वो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, हिंदू जागरण मंच और बजरंग दल की महिला शाखा दुर्गा वाहिनी में भी बडे पद संभाल चुकी थी। विद्यार्थी परिषद के प्रदेश सचिव बनने पर प्रज्ञा ने भोपाल में काम संभाला ओर बीजेपी के बडे नेताओं की नजर में आ गयी।

भोपाल से बीजेपी के टिकट पाने के बाद प्रज्ञा ने पत्रकारों को बताया था कि उनकी और दिग्विजय सिंह की दुश्मनी बडी पुरानी है। जब वो एबीव्हीपी के आंदोलन करतीं थीं तभी से तत्कालीन सीएम दिग्विजय सिंह की नजरों में चढ गयीं थीं। और उन्हीं दिनों के कारण वो भोपाल को बेहतर जानती और समझती हैं इसलिये वो दिग्विजय से अच्छा विकास करेंगी। खैर भोपाल में एबीव्हीपी का आंदोलन करते करते कब कहां कैसी चोट लगी कि प्रज्ञा सांसरिक मोह छोडकर साध्वी बन गयी और सन्यास ले लिया इसकी कहानी बहुत कम लोग ही जानते हैं। प्रज्ञा ने कभी इस पर कुछ कहा नहीं इसलिये यहां लिख नहीं रहा हूं मगर साध्वी का शिखा काटकर संन्यासी बनाते हुये स्वामी अवधेशानंद का वीडियो सभी ने देखा है। साध्वी की राष्ट्रीय परिदृश्य में दोबारा एंट्री होती है मालेगांव ब्लास्ट के बाद। 28 सितंबर 2008 में मालेगांव की मसजिद में धमाके की जांच कर रही महाराष्ट एटीएस उस मोटरसाइकिल के आधार पर प्रज्ञा को पकडती है जिसमें बांधकर विस्फोट किये गये थे वो मोटरसाइकिल प्रज्ञा के नाम से रजिस्टर्ड थी।

बाद मे जब देश की दूसरी जगहों पर भी धमाके हुये तो एनआईए ने जिस गैंग को पकडा उसमें स्वामी असीमानंद जेसे भगवाधारी तो कर्नल प्रसाद पुरोहित जैसे सेना के लोग निकले और इन्हीं से संपर्क में थीं प्रज्ञा भी। एटीएस और एनआईए जैसी जांच एजेंसियों के बीच घूमते घूमते जब इस केस की करीब चार हजार पेज की चार्जशीट कोर्ट में दी गयी तो उसमें लिखा था इन सभी ने अपने कुछ साथियों से मिलकर मालेगांव, अजमेर दरगाह और समझौता एक्सप्रेस में धमाके किये जो मुंबई में हुये सीरियल ट्रेन ब्लास्ट का जबाव था। जब प्रज्ञा मालेगांव ब्लास्ट में पुलिस हिरासत में थीं तभी देवास में दिसंबर 2007 में हुये सुनील जोशी मर्डर केस का खुलासा हुआ और उसमें भी प्रज्ञा का रोल पाया गया तो मध्यप्रदेश की पुलिस ने प्रज्ञा को रिमांड पर फिर गिरफतार किया। मगर सरकारें बदलने से जांच एजेसिंयों की जांच की दिशा बदलती हैं ये इन मामलों में हुआ और कई सालों तक कोर्ट कचहरी और जेल में रहने कारण प्रज्ञा को बहुत सारी शारीरिक बीमारियां भी हुयीं, रीढ की हड्डी में तकलीफ के कारण लंबा नहीं चल पातीं, उनके मुताबिक कैंसर भी है जिसे उन्होंने गौमूत्र और आयुर्वेद से नियंत्रित किया है।

स्वास्थ्य संबंधी वजह से जब उन्होंने जमानत मांगी थी तो महिला जज ने हैरानी जतायी थी कि आयुर्वेद अस्पताल में कैसे कैंसर का इलाज होगा मगर प्रज्ञा बिगडी सेहत के आधार पर ही दो साल से जमानत पर हैं हांलाकि इसके पहले हिरासत के दौरान भी लंबा वक्त उन्होंने भोपाल के खुशीलाल आयुर्वेद अस्पताल में गुजारा हैं।

लोकसभा चुनाव उनके लिये वरदान बन कर आया और लंबे विचार विमर्श और गुणा भाग के बाद बीजेपी ने उनको उस भोपाल से प्रत्याशी बना दिया जहां से कांग्रेस ने बडे नेता दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारा हैं। वंदे मातरम कल्याण समिति चलाने वाली साध्वी प्रज्ञा को भोपाल के बीजेपी के नेताओं ने बडे बेमन से स्वीकारा मगर प्रज्ञा के धुंआधार सुर्खियां बटोरने वाले बयानों ने प्रचार की दिशा ही बदल दी और पूरे देश को पता चल गया कि भोपाल में दिग्विजय सिंह के खिलाफ प्रज्ञा सिंह मैदान मे हैं। अपने आपत्तिजनक बयानों के चलते साध्वी पर दो दिन तक प्रचार पर पाबंदी भी लगी मगर जब वोट पड गये तब जाकर बीजेपी के नेता राहत की सांस ले ही रहे थे कि बीजेपी के दूसरे प्रत्याशियों के प्रचार पर निकली साध्वी ने फिर गोडसे को देशभक्त बता कर पूरे देश में बीजेपी को कटघरे में खडा कर दिया।

ऐसा लग रहा है कि भोपाल की एक फंसी हुयी सीट निकालने के लिये साध्वी को लडाकर बीजेपी ऐसे जाल में फंस गयी है जिससे निकलने की कोशिश में वो बार बार उलझती जा रही है। उधर बैखौफ बिंदास साध्वी इस सबसे बेपरवाह होकर कह रही हैं हम तो ऐसे ही थे क्या आपको मालुम नहीं था ?