ज्योतिरादित्य सिंधिया को क्यों बनाएं मप्र कांग्रेस का अध्यक्ष

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पंकज शुक्ला
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है

लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद जहां कांग्रेस में राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राहुल गांधी के त्‍यागपत्र पर असमंजस बना हुआ है वहीं मप्र कांग्रेस में हार के कारणों की समीक्षा और सुधार के अवसर तलाशने की जगह अपने आका नेता को अध्‍यक्ष बनाने जैसी मांग की जा रही है। यह कुछ कुछ ‘कुत्‍ते की पूंछ टेढ़ी की टेढ़ी’ कहावत की तरह है जहां कांग्रेस की एक सीट रह जाने जितने गंभीर परिणाम पर चिंतन करने की जगह नेता अपने-अपने खेमों को मजबूत करने में जुटे हैं। एकजुट होने के समय में खेमों में बंटने के ऐसे उदाहरणों को देखते हुए कांग्रेस की फिर से उठ खड़ा होने की डगर आसान नहीं लगती है।
लोकसभा की 29 में से सिर्फ 1 सीट जीतने वाली कांग्रेस में हार के कारणों का गंभीर आकलन करने की जगह पार्टी में हास्‍यास्‍पद स्थितियां बन रही हैं। राष्‍ट्रीय महासचिव और प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया कमलनाथ के प्रदेश अध्‍यक्ष पद से इस्‍तीफे की बात करते हैं तो मीडिया विभाग की अध्‍यक्ष शोभा ओझा ऐसी खबरों को खारिज कर देती हैं। दूसरी ओर,कैबिनेट मंत्री इमरती देवी अपने नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष बनाने की मांग करती हैं। कांग्रेस के प्रदेश सचिव विकास यादव ने तो राष्‍ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को पत्र लिख दिया कि सिंधिया को अध्यक्ष बनाया जाए। वे कह रहे हैं कि सरकार में पार्टी कार्यकर्ताओं की नहीं चल रही है।

इसलिए लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। सिंधिया खेमे में इस बात की चिंता नहीं है कि वे सिंधिया घराने की परंपरागत सीट गुना-शिवपुरी भी क्‍यों नहीं बचा पाए? वे इस तथ्‍य से भी अनजान बने रहना चाहते हैं कि आम कार्यकर्ताओं के लिए सिंधिया से मिलना उतना आसान नहीं है। आम कार्यकर्ता सिंधिया से तभी मिल सकते हैं जब सिंधिया खुद चाहें। प्रचार के दौरान आम कार्यकर्ताओं के बीच रोटी बनाते, समोसे तलते दिखाई दिए सिंधिया के विरुद्ध भाजपा से उसी व्‍यक्ति ने चुनाव जीता जो कभी उनका सहायक हुआ करता था। यह तथ्‍य भी आम है कि सिंधिया के साथ सेल्‍फी न लेने देने से केपी यादव को ठेस लगी। फिर मुंगावली से टिकट देने का वादा पूरा न होने से नाराज यादव ने भाजपा से चुनाव लड़ लिया। यह कार्यकर्ताओं की अनदेखी का एक उदाहरण हो सकता है।

गुना-शिवपुरी क्षेत्र सिंधिया का गढ़ रहा है मगर बीते दो दशक में ज्‍योतिरादित्‍य क्षेत्र में कार्यकर्ताओं का कोई कैडर नहीं बना सके। सभी जानते हैं कि ‘जी हुजूरी’ कर ‘महाराज’ के करीब रहा जा सकता है। इस तरह उनके आसपास ‘मंडली’ तो रही मगर कड़वा लेकिन सटीक आकलन करने वाले समर्थकों का संकट होता गया। सिंधिया की ‘श्रीमंत’ वाली छवि टूटी ही नहीं अब तक। यहां तक कि विधानसभा चुनाव के पूर्व किसान आत्‍महत्‍या के बाद सक्रियता और फिर अचानक निष्क्रियता पर भी सवाल उठे। माना गया कि उनकी राजनीतिक आक्रामकता में निरंतरता नहीं है। वे पार्ट टाइम आक्रामक होते हैं और बाकी के समय दिल्‍ली में व्‍यस्‍त रहते हैं।
मप्र कांग्रेस को विषद संकट के दौर में ऐसा अध्‍यक्ष चाहिए जो कार्यकर्ताओं को पूरे समय यानि वर्ष भर 24 घंटे उपलब्‍ध हो। जिससे मिलने के लिए समय न लेना पड़े। जिससे मुलाकात के लिए नेताओं को भी इंतजार न करना पड़े। जो प्रदेश कार्यालय में लंबी बैठकें करे, जो भेदभाव से परे पूरे प्रदेश में दौरे करे। जो दायरे तोड़ कर हर गुट के कार्यकर्ताओं और नेताओं का सम्‍मान करे, उनकी बात सुने। जो विभिन्‍न धड़ों के प्रति समदृष्टि रखे। जिसकी चिंता कोई समीकरण नहीं बल्कि कांग्रेस को संजीवनी देना हो।