Bharat movie review and rating

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शशी कुमार केसवानी

सलमान खान ने एक और ईद अपने नाम करने की कोशिश की है और अपने फैन्स के लिए फिल्म भी लेकर आए हैं. सलमान खान अपनी पिछली कुछ फिल्मों में कुछ हटकर करने की कोशिश कर रहे हैं जो ‘भारत में नजर आती हैं. सलमान खान और अली अब्बास जफर की जोड़ी जब भी साथ आई है दोनों ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा खासा रंग जमाया है, और इस बार फिर कुछ मामलों को छोड़ दिया जाए तो दोनों का साथ रंग लाता दिख रहा है. सलमान खान की ‘भारत न सिर्फ एक शख्स की कहानी है बल्कि इसके जरिये देश के बदलते स्वरूप और इसकी आत्मा की बात भी कही गई है. लेकिन फिल्म की लंबाई और बेवजह बढ़ी है . भरे गए गाने जरूर तंग करते हैं.

 

 

कहानी का प्रिमाइसेज बहुत ही विस्तृत है। फिल्म फ्लैशबैक से शुरू होती है, जहां 70 साल का भारत (सलमान खान) अपने खुशनुमा परिवार के साथ अपना अटूट बंधन बांधे हुए है। परिवार के साथ अपने जन्मदिन को मनाने के दौरान कहानी फ्लैशबैक में जाती है। यह 1947 के विभाजन की त्रासदी का दौर है और उस आग में भारत अपने स्टेशन मास्टर पिता (जैकी श्रॉफ) और बहन से बिछड़ चुका है, मगर बिछड़ने से पहले भारत ने अपने पिता को वचन दिया था कि जब तक उसके पिता वापस नहीं लौटते वह अपनी मां (सोनाली कुलकर्णी) , अपनी छोटी बहन और छोटे भाई का खयाल रखेगा। उसके बाद 1947 से लेकर 2010 तक अपने परिवार की जरूरतों के लिए वह चोरी, मौत का कुंआ में मोटरसाइकिल चलाना, किराने की दुकान चलाना, अरब जाकर तेल निकालने का काम और समंदर में जाकर जान जोखिम में डालने जैसे हर तरह के काम करता है।  हालांकि कुछ दूसरे काम भी दिखाए जा सकते थे जिसमे जान का जोखिम न होता।

उसे नौकरी दिलाने वाली बोल्ड ऐंड ब्यूटिफुल मैडम सर जी (कटरीना कैफ) उससे प्यार का इजहार कर शादी की पेशकश करती है, मगर परिवार के फर्ज में बंधा भारत उसे जता देता है कि वह शादी नहीं कर सकता। तब बिंदास मैडम सर जी भारत के घर में आकर लिव इन रिलेशन में रहने की इजाजत मांगती है। भारत की जिंदगी के इस लंबे सफर में विलायती खान (सुनील ग्रोवर) बचपन से लेकर बुढ़ापे तक उसके सुख-दुख का साथी बनता है।

कहानी में बंटवारे के समय इंडिया-पाकिस्तान के बिछड़े हुए लोगों को मिलाने की पहल और शहरीकरण तथा तरक्की के नाम पर दुकानों को तोड़कर मॉल बनाने का ट्रैक भी है। इसे निर्देशक अली अब्बास जफ़र की समझदारी कहनी होगी कि उन्होंने सालों से बनी हुई भाई की परिवार प्रेमी और हीरोइक इमेज के साथ छेड़-छाड़ करने की कोशिश नहीं की। फिल्म कुछ हिस्सों में बहुत ज्यादा मजेदार है, मगर कई चरित्र और ट्रैक्स होने के कारण बीच-बीच में अपनी पकड़ खो देती है। फिल्म में वर्तमान और अतीत के कई टाइम लीप हैं, जो कहानी के प्रवाह को रोकते हैं, इसके बावजूद इमोशंस की पकड़ छूटने नहीं पाती। मगर जाहिर है 65-70 साल के लंबे दौर को दिखाने के लिए निर्देशक को इतना समय लेना पड़ा है। एडिटिंग और शार्प और कसी हुई हो सकती थी। मार्सिन लास्काविस की सिनेमटॉग्रफी कमाल की है।  सभी जानते हैं कि सलमान खान अपने परिवार से बहुत प्यार करते हैं और उनकी निजी जिंदगी का यह पहलू परदे पर उन्हें भारत के किरदार को पुख्ता करने में बहुत ही मददगार साबित हुआ है।

20 साल के युवा से लेकर 70 साल के बूढ़े के रूप में वे किरदार के हर रंग को जी गए हैं, हां 70 साल के बुजुर्ग के रूप में उनका बॉडी लैंग्वेज उतना ढीला-ढाला नहीं है,  एक्टिंग पूरी बनावटी लग रही है. हालाँकि यह भी एक सच्चाई है सलमान की एक्टिंग हमेशा एक जैसी ही रहती है. जोकि सलमान की एक मजबूरी है क्यूंकि, उसकी बॉडी की कसावट इस तरह से बन गई है के उससे हट कर कुछ किया नहीं जा सकता। तभी अपने देखा होगा सलमान डांस में भी हमेशा एक ही स्टेप करते हैं.

मगर सलमान की इस अदा को स्टाइल समझकर नजरअंदाज किया जा सकता है। सलमान ने इमोशन, कॉमिडी और हलके-फुलके ऐक्शन से अपने किरदार को दर्शनीय बनाया है। मैडम सर जी के रूप में कटरीना की परफॉर्मेंस दाद देने योग्य है। वह जितनी खूबसूरत लगी हैं, उतना ही उन्होंने अपने रोल को विश्वसनीय बनाया है। अभिनय के मामले में विलायती के रूप में सुनील ग्रोवर की जितनी भी तारीफ की जाए कम है, शानदार काम किया है. सुनील ने जता दिया कि वे हर तरह के इमोशंस को खेलने में माहिर हैं। पर्दे पर उनकी और सलमान की केमिस्ट्री फिल्म का प्लस पॉइंट है। अन्य किरदारों में सोनाली कुलकर्णी, जैकी श्रॉफ, सतीश कौशिक, आसिफ शेख का अभिनय याद रह जाता है। कुमुद मिश्रा, दिशा पाटनी और शशांक अरोड़ा को वेस्ट कर दिया गया है। क्लाइमैक्स में तब्बू की एंट्री अच्छी है ।

विशाल-शेखर के संगीत में फिल्म का गाना ‘स्लो मोशन’ रेडिओ मिर्ची के टॉप ट्वेंटी चार्ट में नंबर वन के पायदान पर है। इसी फिल्म का गाना ‘चाशनी’ नंबर आठ पर अपनी जगह बनाने में कामयाब रहा है।  क्यों देखें-पारिवारिक मूल्यों वाली और इमोशन से भरपूर इस फिल्म को सलमान के फैन ईद का तोहफा समझकर देख सकते हैं। हालांकि फिल्म में छोटी छोटी बहुत सी कमियां हैं जो क्रिटिक को नज़र आती हैं पर जनता आजकल सब चीज़े हज़म कर जाती है. सलमान की फिल्म है तो बिसनेस अच्छा करेगी ही नहीं तो आंकड़ों में हेर फेर तो ऐसे होता है कोई समझ ही नहीं पाता। अगर आप सलमान के जबरदस्त फैन हैं तो फिल्म जरूर देखें अगर नहीं हैं तो फिल्म नहीं देखने का कोई अफ़सोस नहीं होगा।

रेटिंगः 3/5