लखनऊ वालों की शुभकामनाओं के लिए साइंटिस्ट रितु चंद्रयान-2 की मिशन डायरेक्टर ने शुक्रिया अदा किया

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लखनऊ

चंद्रयान-2 चांद छूने को तैयार है। इस खबर के आने के बाद पूरी दुनिया की निगाहें भारत की तरफ हैं। देश तैयार है, अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक और उपलब्धि का जश्न मनाने के लिए। लखनऊ के पास तो इतराने की एक और भी वजह है…। यहां के आंगन में पली-बढ़ी और पढ़ी बेटी इसरो की सीनियर साइंटिस्ट रितु करिधाल श्रीवास्तव चंद्रयान-2 की मिशन डायरेक्टर हैं।

उनकी पहचान एक रॉकेट विमेन के रूप में है। लखनऊ वालों की खुशियों और शुभकामनाओं के लिए रितु ने शुक्रिया अदा किया है। रितु ने कहा है, मिशन के बारे में 15 के बाद बात करेंगे, फिलहाल हमारा फोकस सफल लॉन्चिंग पर है। हम आपको रूबरू करा रहे हैं रितु से…

तारों ने मुझे हमेशा अपनी ओर खींचा…
लखनऊ में एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मीं रितु के मुताबिक, मम्मी-पापा का पूरा फोकस पढ़ाई पर रहा। मम्मी मेरे साथ रात-रात भर जागतीं, ताकि मुझे डर न लगे। तारों ने मुझे हमेशा अपनी ओर खींचा। मैं हमेशा सोचती कि अंतरिक्ष के अंधेरे के उस पार क्या है। विज्ञान मेरे लिए सिर्फ एक विषय नहीं, जुनून था।

1997 में मुझे इसरो से चिट्ठी मिली कि बंगलूरू में हमारी एजेंसी जॉइन करें। 2000 किमी. दूर भेजने में माता-पता को डर लग रहा था। हालांकि, उन्होंने मुझ पर भरोसा किया। मुझे भेजा और यहीं से मेरा अंतरिक्ष की दुनिया का सफर शुरू हुआ। उनके लिए ‘मॉम’ शब्द बेहद अहम है। मॉम यानी दो प्यारे और जिम्मेदार बच्चों की मां और ‘मार्स आर्बिटरी मिशन’ के सफलता की गवाह….और डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर। पति अविनाश, बेटा आदित्य और बेटी अनीषा मेरे हर प्रोजेक्ट की अहमियत को समझते हैं और यही वजह है कि मुझे उनकी चिंता नहीं करनी पड़ती।

लखनऊ विश्वविद्यालय से इसरो तक का सफर
लखनऊ विश्वविद्यालय से फिजिक्स में ग्रेजुएशन किया। गेट पास करने के बाद मास्टर्स डिग्री के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज को ज्वाइन किया। यहां से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में डिग्री ली। 1997 से इसरो से जुड़ी हैं। मंगलयान में डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर रहीं।
अब चंद्रयान 2 में मिशन डायरेक्टर हैं।

हमें नाज है ऐसी बहन पर
रितु लखनऊ में राजाजीपुरम की रहने वाली हैं। माता-पिता का निधन हो चुका है। बहन वर्षा और भाई रोहित कहते हैं, हमें अपनी बहन पर नाज है। वर्षा बताती हैं, दीदी सबसे बड़ी हैं और जब हमें उनकी जरूरत होती है, वे हमेशा हमारे साथ होती हैं। वह भी तब जबकि जिस मिशन से वे जुड़ी हैं, वहां कभी-कभी सांस लेने तक की फुर्सत नहीं होती। रोहित कहते हैं, मम्मी-पापा के जाने के बाद दीदी ने ही हमारी सारी जिम्मेदारियां उठाईं।

बरगदाही की पूजा हो या तीज का व्रत, दीदी पूरे रीति-रिवाज से करती हैं। फेमिली लाइफ में जितना परंपराओं को वह मानती हैं, उतना ही प्रोफेशनल लाइफ में अपने काम से प्यार करती हैं।