TIO भोपाल
शशी कुमार केसवानी
विश्व शरणार्थी दिवस (World Refugee Day) हर साल बीस जून को मनाया जाता है। यह दिवस उन लोगों के साहस, शक्ति और संकल्प के प्रति सम्मान जताने के लिए माना जाता है जो हिंसा, संघर्ष, युद्ध और प्रताड़ना के चलते अपना घर छोड़ने को मजबूर हो गए हैं या यूं कहें जो लोग अपना देश छोड़कर बाहर भागने को मजबूर हो गए हैं।
शरणार्थियों की परिस्थितियों पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है ताकि इस समस्या का हल निकाला जा सके।
शरणार्थी होने का दर्द सिंधियों ने भी खूब झेला है। 1947 से भारत के बँटवारे के समय भारत का ही हिस्सा जो अलग होकर पाकिस्तान बन गया। वह के सिंधियों को अपने धर्म की रक्षा के लिए अपना घर, जमीन, जायदाद, रिश्ते-नाते सब चीजे छोड़कर अलग शहर में या जिसे कहे अलग देश में जो अपना ही था। उसमें आना पड़ा। जान जोखिम में डालकर हालांकि कई सिंधियों का कत्ल भी हुआ। बंटवारे के बाद लगभग 14 लाख सिंधी भारत के अलग हुए हिस्से से (पाकिस्तान) से भारत आए। अलग-अलग शहरों में बसे अपना सब कुछ न्यौछावर करने के बाद जीरो से गिनती शुरू करना ऊपर से ये तंज भी झेलना कि तुम पाकिस्तान से आए हो। उस विपरीत परिस्थितियों में अपने आप को विस्थापित करना बहुत ही एक संघर्ष पूर्ण जीवन होता है। ये अहसास केवल उसे ही हो सकता है जिसने ये झेला हो। हालांकि यह बात अलग है कि आज भी लाखों लोग एक देश से दूसरे देश में शरण लेते है।
उनका भी संघर्ष कम नहीं होता पर सिंधी समाज एक जुझारू संघर्षशील और संयमित राष्टभक्त समाज है, जिसकी वजह से आज वह भारत में लगभग एक करोड़ दस लाख की जनसंख्या में है। सबने अपना नाम कारोबार बहुत ऊपर तक ले गए, लेकिन देश में स्थापित होने में 40 साल लग गए। जबकि देश में आए हुए उन्हें 70 साल हो गए है। उसके बावजूद भी एक दर्द तो नजर आता है। हमारी बात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री लक्ष्मनदास केसवानी से हुई। जो कराची में सिंधी, पंजाबी कैंप के कमांडेट थे। जिन्होंने लगभग एक लाख माइग्रेशन सर्टिफिकेट हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने बताया कि वो दर्द शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। तरह-तरह की बीमारियां, भूख, प्यास अपनों को खोने का दर्द, जो मैंने देखा है। भगवान किसी और को न दिखाए। वह नाजूक समय था हर आदमी को अपना दर्द बड़ा नजर आ रहा था तो सबकी बात सुननी भी पड़ती थी। उसी समय कई ट्रेनों में कत्लेआम भी हुआ था तो नैतिक रूप से मेरी जिम्मेदारी थी कि उन लोगों को हालात ठीक होने के बाद ही भारत भेज सकता था पर ऐसी स्थिति में लोगों का सब्र टूटने लगता है। हर आदमी को अपनी सुरक्षा की चिंता रहती है। मैंने अपने आप को इतना मजबूर और बेबस कभी महसूस नहीं किया।
उसके बावजूद मैं फौलाद की तरह सारे लोगों के साथ खड़ा रहा। थोड़े-थोड़े करके सुरक्षा के साथ लोगों को भारत भेजता रहा। हालात बहुत बदले हुए थे। भारत सरकार ने मुझे भी भारत आने का आदेश दे दिया। मैंने अपना चार्ज स्वामी कृष्णानंद को दिया और कहा ये मेरा परिवार है पर आज से ये तुम्हारा परिवार है। बचे हुए लोगों को सुरक्षित भारत भेजना अब तुम्हारी जिम्मेदारी है और मैं अपना सब कुछ छोड़कर भारत चला आया और भारत में जो शरणार्थी थे उनको स्थापित करने में लग गया।
संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने इस दिवस की घोषणा 4 जून 2000 में की थी। तब से प्रत्येक वर्ष 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य कारण लोगों में जागरुकता फैलानी है कि कोई भी इंसान अमान्य नहीं होता फिर चाहे वह किसी भी देश का हो। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनएचसीआर (United Nations High Commissioner for Refugees) शरणार्थी लोगों की सहायता करती है।
यूएनएचसीआर शरणार्थियों के लिए कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है और उनकी समस्याओं का लंबे समय से स्थायी समाधान तलाशता है, जिससे उन्हें या तो स्वेच्छा से अपने घरों में लौटने या अन्य देशों में बसने में मदद मिलती है। इसका उद्देश्य शरणार्थियों और अन्य जबरन विस्थापितों की मदद करना है जो शांति और गरिमा के साथ अपने जीवन का पुनर्निर्माण करते हैं।
इस एजेंसी का उद्देश्य सभी विस्थापित लोगों के अधिकारों को बरकरार रखना है, जिनमें महिलाएं, बच्चे, बूढ़े और लोग शामिल हैं। यह शरणार्थियों को उनके परिवारों के साथ पुनर्मिलन, यौन शोषण, दुर्व्यवहार, हिंसा और सैन्य भर्ती से बचाता है, और शिक्षा और प्रशिक्षण, स्वास्थ्य सेवाएं आदि प्रदान करता है।
जब किसी क्षेत्र में शरणार्थियों या आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों (आईडीपी) की भारी संख्या होती है, तो UNHCR 72 घंटे से भी कम समय में 300 कुशल कर्मियों को भेज सकता है।
म्यांमार, लीबिया, सीरिया, अफ़ग़ानिस्तान, मलेशिया, यूनान और अधिकांश अफ़्रीकी देशों से हर साल लाखों नागरिक दूसरे देशों में शरणार्थी के रूप में शरण लेते हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017 में रिकॉर्ड 6.85 करोड़ (68.5 मिलियन) लोग विस्थापन के लिए मजबूर हुए जो कि साल 2016 से 29 लाख ज्यादा थे। साल 2018 में विश्व शरणार्थी दिवस का विषय ‘Now More Than Ever, We Need to Stand with Refugees” था।’ साल 2019 में आर्थिक संकट के बाद बड़ी संख्या में वेनेजुएला के नागरिक दूसरे देशों में रह रहे हैं।
विश्व शरणार्थी दिवस के दिन शरणार्थी स्थलों की हालातों का जायजा लिया जाता है। उनकी समस्याओं से संबंधित फिल्मों का प्रदर्शन किया जाता है। किसी देश में शरणार्थी किसी कारणवश गिरफ्तार किए गए हों तो उनकी रिहाई के लिए विरोध प्रदर्शन किये जाते हैं। जेल में बंद शरणार्थियों के लिए सही स्वास्थ्य सुविधा और नैतिक समर्थन देने के लिए रैलियां निकाली जाती हैं।