ब्रजेश राजपूत की ग्राउंड रिपोर्ट
दृश्य एक । भोपाल के बोर्ड आफिस चौराहे पर चारों तरफ से गाडियों का आवागमन रोका गया है। बीच चौराहे पर लगी डा भीमराव आंबेडकर की आदमकद प्रतिमा मालाओं से लदी है। हर थोडी देर में नीला झंडा लगाये जत्थे आते हैं ओर बाबा साहब को फूल हार चढाकर चले जाते हैं। बीजेपी कांग्रेस और बीएसपी के नेताओं के अलावा सामान्य जनता भी अच्छी खासी संख्या में आयी है। आंबेडकर के जन्म को 127 साल हुये हैं इसलिये मूर्ति से थोडी दूर पर 127 किलो का केक काटने की तैयारी चल रही है। जय भीम के नारे गूंज रहे हैं।
दृश्य दो। बोर्ड आफिस से दो किलोमीटर दूरी पर दो नंबर स्टाप पर बने आंबेडकर पार्क पर बनी डा आंबेडकर की मूर्ति पिछले एक हफते से पुलिस जवानो के पहरे में हैं। छोटी सी मूर्ति के दायी और बायीं तरफ छोटी एलएमजी लेकर जवान खडे हैं जिसकी फोटो लगातार अखबार छाप रहे हैं। ये अलग बात है कि 13 अप्रेल को सीएम शिवराज सिंह मूर्ति पर मोमबत्ती जला गये तो अब आंबेडकर जयंती के लिये मूर्ति को सजाया गया है। लोगों की भीड यहां आ तो रही है मगर कैमरा देखकर ही।
दृश्य 03। भोपाल से पांच सौ किलोमीटर दूर भिंड जिले का मेहगांव कस्बे में कफयू की आहट है। सडक पर दो चार लोग अकेले चलते ही दिखते हैंं दो तारीख को हुयी आगजनी और हिंसा में यहां आकाश नाम का लड़का मारा गया था। उसके घर के पास ही बनी अनाज मंडी के पिछवाडे बने बौद्ध विहार में आंबेडकर की प्रतिमा तीन मंजिल उपर छतपर तालों में बंद हैं। सुबह कुछ लोग आकर मूर्ति पर माला चढा कर आंबेडकर को याद कर गये थे। यदि धारा 144 नहीं होती तो अच्छी भीड जुटती। लोग बुदबुदा रहे हैं कि ऐसा कैसा प्रशासन कि हम आंबेडकर जयंती ही नहीं मना पा रहे।
दृश्य 04। भोपाल से ढाई सौ किलोमीटर दूर महू के कालीपलटन मोहल्ले में बनी आंबेडकर जन्मस्थली पर सुबह से ही लगातार कार्यक्रम चल रहे हैं। प्रभातफेरी से लेकर छोटे छोटे उदबोधन जारी है। दोपहर में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और सीएम शिवराज िंसह को आना है इसलिये स्मारक के दो तलों में जमा लोगों को जल्दी जल्दी निकलने को कहा जा रहा है। इस स्मारक में आंबेडकर की जन्मस्थली पर बने इस स्मारक को देखने लोग दूर दूर से आये हैं खासकर महाराष्ट्र के लोग जो नाराज हो रहे हैं कि एक दिन जयंती का आता है उसमें भी ये नेता नगरी चली आती है। प्यार दिखाने। हमारे बाबा साहब से जितना किया है उसका दस प्रतिशत भी ये कोई सरकार कर देती तो हमारे दिन फिर जाते।
यहीं महू में हमको मिलते हैं 22 साल के सुरेश कुमार जो झांसी के पास के गांव के रहने वाले हैं। पहले आंबेडकर की मूर्ति को शीश नवाते हैं फिर सेल्फी खींचकर जाने लगते हैं तो हम पूछते हैं, कैसा लगा यहां आकर, सर हम जहां रहते हैं वहां गांवों में भेदभाव बहुत होता है तो हमको नीचा देखना पडता है तब बाबा साहेब के शब्द ही याद आते हैं शिक्षित बनो संगठित होओ और संघर्प करो। तो सर यहां आकर संघर्प करने की उर्जा लेकर जा रहा हूं मगर हालत ठीक नहीं हो रहे देश में। जातिगत बंटवारा फिर बढ गया है। ढेर सारे दलित संगठन खडे हो गये हैं जो हमको भडकाते ही रहते हैं दूसरी जातियों के खिलाफ जबकि मैं जानता हूं कि आंबेडकर जाति व्यवस्था के खिलाफ थे इसलिये बौद्ध बनकर अलग हो गये थे। हम तो समझते हैं मगर हमारी जाति के लोग उनकी बातों में आ जाते हैं अब देखिये दो अप्रेल को बंद में रैली निकाल कर तोडफोड करने वाले जानते ही नहीं थे कि वो किस चीज का विरोध कर रहे थे। अधिकतर लोग समझ रहे थे कि आंरक्षण खत्म हो गया है इसलिये अब नौकरी नहीं मिलेगी और सडक पर उतर कर अपनी ताकत दिखा दो।
सच है दो तारीख को दलित वर्ग का अनियंत्रित होकर सडकों पर उतर कर ताकत दिखाना भारी पड गया। ग्वालियर चंबल इलाके में जो हिंसा हुयी है उसके बाद उन इलाकों के जनप्रतिनिधि ही मानने लगे हैं कि बडी मुश्किल से जातिगत बंटवारे की खाई में सदभाव के सीमेंट से मेलजोल का पुल बन पाया था कि हिंसा ने हालत फिर कई साल पीछे कर दिये। शहर और कस्बों में तो किसी तरह हालत फिर सुधर जायेगें गांवों में क्या होगा जहां का सामाजिक ताना बाना जाति के करघे पर ही कसा जाता था। बडी मुश्किल से ताने बाने की गठानों की छिपाया गया था मगर हिंसा में दोनों वर्ग के लोगों की जान जाने के बाद समाज के नेता अपने लोगों को चैन से नहीं बैठने देंगे क्योंकि इस आक्रोश ओर बंटवारे की आग को चुनाव तक जिन्दा रखना है तभी तो वोटों की रोटी सिकेगी।
हर साल चौदह अप्रेल को आंबेडकर जयंती आकर चली जाती है। हम सब संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर को याद कर लेते हैं मगर इस साल की आंबेडकर जयंती पर बाबा साहेब के नाम पर राजनीतिक और सामाजिक संगठनों में जो होड और आम्बेडकर को अपना बताने की रस्साकशी चल रही है वो पहले कभी नहीं देखी। इसके मायने आने वाले दिनों में और समझ में आयेंगे।
ब्रजेश राजपूत,
एबीपी न्यूज