नई दिल्ली। 2जी से संबंधित एक और मामले में सीबीआई दिल्ली हाइकोर्ट कोर्ट पहुंच गई है। 2जीस्पेक्ट्रम आवंटन मामले में एस्सार-लूप के प्रमोटरों को निचली अदालत द्वारा दोष मुक्त करार दिए जाने के फैसले को चुनौती देते हुए सीबीआई ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। यह जानकारी बुधवार को सीबीआई के एक अधिकारी ने दी। सीबीआई ने मंगलवार को अपनी एक याचिका में कहा कि निचली अदालत उन साक्ष्यों की अहमियत की सराहना करने में विफल रही, जिसके आधार पर यह साबित होता है कि आरोपियों ने स्पेक्ट्रम का लाइसेंस प्राप्त करने में दूरसंचार विभाग को धोखा देने के लिए साजिश रची है।
‘आरोपियों ने अपराध किया’
एजेंसी ने यह भी कहा कि विशेष न्यायाधीश ने 2जी के मामलों पर सुनवाई करते हुए सही परिप्रेक्ष्य में कानूनी पक्षों को नहीं देखा। सीबीआई ने कहा, “साक्ष्य से स्पष्ट होता है कि आरोपियों ने अपराध किया है।” एजेंसी ने कहा, “अभ्यावेदन की असत्यता से एस्सार समूह के निदेशक विकास सर्राफ ही नहीं, बल्कि सभी आरोपी जानते थे और गलत इरादे से जानबूझकर आवेदक कंपनी (लूप टेलीकॉम लिमिटेड) के सही स्वामित्व और नियंत्रण की बात गुप्त रखते हुए दूरसंचार विभाग को धोखे में रखकर लेटर्स आॅफ इंटेट जारी करवाया गया। इसके बाद लाइंसेस लेकर कंपनी को स्पेक्ट्रम आवंटित करवाया गया।”
निचली अदालत ने किया था दोषमुक्त
विशेष न्यायाधीश ने 21 दिसंबर, 2017 को एस्सार के प्रमोटर अंशुमान रुईया, रवि रुईया, एस्सार समूह के निदेशक विकास सर्राफ, लूप टेलीकॉम के प्रमोटर किरण खेतान और उनके पति आई। पी। खेतान को बरी कर दिया था। अदालत ने तीन कंपनियों (लूप टेलीकॉम प्राइवेट लिमिटेड, लूप मोबाइल इंडिया लिमिटेड और एस्सार टेली होल्डिंग) को भी दोषमुक्त कर दिया था।
‘दूरसंचार विभाग को दिया धोखा’
सीबीआई ने मामले में 12 दिसंबर, 2011 को अपना तीसरा आरोप-पत्र दाखिल किया था, जिसमें एस्सार व लूप के प्रमोटरों के अलावा सर्राफ और तीनों कंपनियों को नामजद किया था। जांच एजेंसी का कहना था कि आरोपियों ने यूनाइटेड एक्सेस सर्विस लाइसेंस के दिशानिदेर्शों के अनुबंध-8 का उल्लंघन करते हुए 2008 में लूप टेलीकॉम को आगे रखकर 2जी का लाइसेंस लेने में दूरसंचार विभाग को धोखा दिया था।