जल का अधिकार : डूबते और बे-पानी होते समाज को पानी देने की कवायद पर न फिरे पानी

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पंकज शुक्‍ला
दृश्‍य 1 : बीती गर्मी में भारत के छठे सबसे बड़े शहर चेन्नई के लोगों ने पहली बार एक ट्रेन को अपने लिए पानी लाते हुए देखा। नीति आयोग के मुताबिक चेन्नई भारत के उन 21 शहरों में से एक है जहां 2021 तक पानी ख़त्म हो जाएगा। इस वक्‍त देश में करीब 60 करोड़ लोग पानी की गंभीर किल्लत का सामना कर रहे हैं। हर साल करीब दो लाख लोग स्वच्छ पानी न मिलने के चलते हर साल जान गंवा देते हैं।
दृश्‍य 2 : बिहार, केरल और असम में भारी बारिश-बाढ़ के चलते स्थिति गंभीर बनी हुई है। तीनों राज्यों में अगल-अलग घटनाओं में शनिवार तक 159 लोगों की मौत हुई।
दृश्‍य 3 : गर्मियों में मध्‍य प्रदेश के कई हिस्सों में कुंए और नलकूप सूखने की कगार पर थे। जहां कहीं थोड़ा बहुत पानी था वहां लंबी कतारें तनाव की आशंका बढ़ा रही थी। जनता को पानी देने के लिए जलस्रोतों की पहरेदारी करने की नौबत आ गई थी।
पानी की कमी, उसके अपव्‍यय और जल संरक्षण को लेकर जो चिंताएं कुछ बरस पहले तक ‘कागजी’ मानी जा रही थीं, वे अब हकीकत में सामने आ रही हैं। क्‍या विडंबना है कि एक तरफ अत्‍यधिक पानी से जान जा रही है तो दूसरी तरफ पानी का न होना जानलेवा साबित हो रहा है! पानी के इसी संकट को देखते हुए मप्र सरकार ने जल का अधिकार देने की योजना बनाई है। इस अधिनियम को लागू करने के लिए 1 हजार करोड़ का प्रावधान किया गया है। इस वर्ष के ही बजट में पेयजल व्यवस्था के लिए 4 हजार 366 करोड़ रूपए की राशि रखी गई है जो गुजरे साल की तुलना में 47 प्रतिशत अधिक है। राज्‍य सरकार की यह चिंता वाजिब है क्‍योंकि प्रदेश में गर्मी ने इस वर्ष दशकों का रिकॉर्ड तोड़ा है। भोपाल में 40 साल का रिकॉर्ड तोड़ते हुए पारा 45.9 डिग्री तक पहुंच गया मगर बारिश के हाल चिंताजनक ही हैं।
नीति आयोग भी चेता चुका है कि 2030 तक देश में पानी की मांग उपलब्ध जल वितरण की दोगुनी हो जाएगी। इसका मतलब है कि करोड़ों लोगों के लिए पानी का गंभीर संकट पैदा हो जाएगा। रिपोर्ट में जल संसाधनों और उनके उपयोग की समझ को गहरा बनाने पर जोर दिया गया है। अनुभव यह है कि जल संकट भोगने वाले लोग पानी मिलते हैं अपनी परेशानी भूल उसे बहाने में संकोच नहीं करते। जनता की आदतों में बदलाव लाने का काम तो समय ही कर सकता मगर फिलहाल जल के अधिकार के प्रति सरकार और तंत्र को अधिक संवेदनशील होने की जरूरत है।
भोपाल में मंथन अध्ययन केन्द्र और जिंदगी बचाओ अभियान द्वारा आयोजित जन परामर्श में इस बात की चिंता जताई गई कि कहीं पानी केवल सक्षम और धनी समुदाय के अधिकार में ही न चला जाए। सभी को पानी उपलब्‍ध करवाने के नाम पर जल वितरण और तमाम कार्यों को निजी हाथों में न दे दिया जाए। अगर ऐसा हुआ तो साफ पेयजल के दाम बाजार के हिसाब से तय होंगे और आम जनता की पानी तक पहुंच ही नहीं होगा। जिसके पास पैसा होगा पानी उसका होगा।
प्रदेश में पेयजल के निजीकरण का ऐसा ही पहला प्रयास खण्डवा में किया गया था जो बुरी तरह विफल हुआ है। इसलिए, नए कानून में पानी  का तंत्र स्थानीय निकाय, जल संसाधन विभाग, जन स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग आदि के ही हाथ में होना चाहिए। सरकारों को जलस्रोतों की सुरक्षा तथा उसमें संचित पानी के उपयोग को परिभाषित करना होगा। अब तक भोपाल में यह तय ही नहीं किया जा सका है कि बड़ा तालाब पेयजल स्रोत है, जलक्रीड़ा केंद्र, पर्यटन स्‍थल या धरोहर? यह लापरवाही ही है। अब भी तंत्र पानी के हर पहलू के प्रति गंभीर नहीं हुआ तो जल अधिकार देने जैसी कवायदों पर पानी फिरना तय है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है