किस्सा-ए-अच्छे ख़ां उर्फ़ दास्तान-ए-मोहब्बत

0
348

श्रुति कुशवाहा

अच्छे मियां के रंग-ढंग बदले से हैं कुछ दिनों से…
बेगम खूब ग़ौर फरमा रही हैं कुछ दिनों से…
दिन-दिन भर मुए मोबाइल में घुसे रहते हैं..छग्गन मियां के पोते जाने क्या सिखा गए हैं पिछले दिनों कि मोबाइल में जो खोजो वो मिल जाता है, बस तबसे दिन भर आंखें मोबाइल में गड़ी रहती हैं उनकी। लेकिन ये दिक्क़त वाली बात नहीं, नई बात ये कि पिछले कुछ दिनों से देख रही हैं बेगम.. अचानक शेरो-शायरी का शौक़ फिर से सिर चढ़ गया है उनके। जाने कहां-कहां से इश्क़-मोहब्बत वाले रिसाले ले आते और देर रात तक पढ़ा करते। इतना ही नहीं, आजकल बनठन भी कुछ अलग ही है उनकी। कभी जो नहाकर गुसलखाने से साढ़े सात मिनिट में बाहर आ जाया करते थे, अब आईने के सामने बीस-बीस मिनिट तक खुद को निहारा करते। इतना ही नहीं, आजकल नए इत्र-फुलेल भी आने लगे हैं घर में..और तो और कल देर रात तो टीवी के सामने बैठकर नई फिल्मों के छिछोरे इश्कियां नग़मे तक देख रहे थे। उसी दौरान बेगम ने चुपके से उनके मोबाइल में झांका तो सारी नींद उड़ गयी उनकी..गुगल वाले पन्ने पर खोजी गई पिछली तहरीर सामने आ गई जिसमें लिखा था – लड़की को इम्प्रेस कैसे करें…
बस..बेगम के दिमाग का फ्यूज़ उड़ा हुआ है कल से। ज़हन में सौ तरह के ख़याल आ रहे हैं..आख़िर ये हो क्या रहा है, ये मियांजी किस पेंचोखम में उलझे हैं, कोई नाज़ुक मसला तो नहीं जिसमें पड़ गए हों, कहीं सामने से किसी मुसीबत को दावत तो नहीं दे रहे ?
इतना सब होने पर बेगम में मन में पहला ख़याल आना था  “कहीं मियां का कोई चक्कर तो नहीं चल रहा”… लेकिन ये ख़याल नहीं आया। बेगम सौ फीसद यक़ीन में हैं कि मियांजी कुछ ऐसा-वैसा कर ही नहीं सकते। अपने शौहर की इस सिफ़त से तो वाकिफ़ हैं कि किसी ग़ैर औरत को देखना तो दूर..वो इस बारे में सोच भी नहीं सकते हैं। मियांजी तो उनके मैके में हंसी-मज़ाक वाले रिश्तों में भी हमेशा संजीदगी ओढ़े रहे..शुरू में कभी जो बेगम की सहेलियों ने थोड़ी छेड़छाड़ की तो उनसे दो हाथ की दूरी बना ली। इसके बाद भी कभी किसी मोहतरमा से ताल्लुक हुआ तो झट उसकी उम्र के मुताबिक़ बेटी या बहन का रिश्ता जोड़े लेते। इसलिये मियां के किरदार को लेकर एक पल के लिये भी उनके मन में कोई शक़ न उपजा…
तो इस फिक़्र से मुतमईन हैं बेगम कि कहीं कुछ गड़बड़ है। लेकिन ये तो अब उससे भी बड़ी फिक़्र की बात हो गई। जो बात ‘कुछ और’ वाली होती तो डांट-डपटकर, लड़-झगड़कर, रोकर या गुस्सा कर संभाल लेती। लेकिन ये जो नया मामला आ ठहरा है, उससे कैसे निपटे ? बेगम जानती हैं कि सीधे-सीधे पूछना बेकार है क्योंकि मियां सीधे-सीधे बताएंगे नहीं। उल्टे उनको सौ तरह की दूसरी बातों में और उलझा देंगे। तो क्या ये जासूसी जारी रखी जाए या मियांजी के दोस्तों से पूछा जाए घूमा-फिराकर ? लेकिन ये तो और ख़राब बात होगी, भला ये भी किसी ग़ैर से करने वाला ज़िक़्र है…और उन्हें भले हो, किसी और को थोड़े मियांजी की सीरत पर इतना भरोसा होगा। तो जो न होना है वो बखेड़ा और खड़ा हो जाएगा। आख़िर बेगम ने खुद ही मामले से निपटने का फ़ैसला किया। धीरे-धीरे टोह लेने लगी मियांजी की, देखती रहीं उनके मिज़ाज में आई तब्दीलियों को…
चार आवाज़ पर भी बिस्तर न छोड़ने वाले मियां आजकल अलार्म लगाकर सुबह पांच बजे उठ जाते हैं, साढ़े पांच तक तो सैर को निकल जाते हैं वो। दिन में दालान में दोस्तों संग गप लगाने के शौक़ीन मियां अब पूरी दुपहरी नई-नई किताबों में सिर खपाया करते। शाम होते ही छत पर चढ़ जाने किसे वो ग़ज़ले सुनाया करते मोबाइल पर। यहां तक भी बर्दाश्त किया बेगम ने..लेकिन ये क्या, आज सुबह-सुबह मुंह अंधेरे उन्होने बक्से से वो सफारी सूट निकाला जो उनके साले साहब ने चार साल पहले दिया था। कितना तो इसरार किया सबने कि एक दफ़ा पहन लें इसे, लेकिन मजाल है जो अच्छे मियां ने किसी की सुनी हो। और तो और उन्होने इस मामले में बेगम तक की बात न मानी…लेकिन आज उस सूट को बाकायदा प्रेस कर एक थैले में डाला और निकलने लगे सैर को…
बस..इससे ज़्यादा सब्र नहीं कर सकती बेगम। सीधे अच्छे मियां के सामने आ खड़ी हुई और बस गिरेबान ही नहीं पकड़ा उनका, बाक़ी तो ऐसे फट पड़ी कि पूछो मत। भरोसा चाहे जितना हो लेकिन आज तो न मन काबू में है न ज़बान। सारा गुस्सा बह निकला..“ ये बुढ़ापे में क्या चोंचलेबाज़ी सूझी है तुम्हे, ख़ूब देख रही हूं आजकल नए ही रंग में रंगे हुए हो, जाने क्या क्या इत्र फुलेल किताबें नग़में आ रहे तुम्हारी ज़िंदगी में, ये क्या नयी बला है जिसने इतना रंगीन बना दिया है तुम्हें, और थैले में ये सूट रखकर किससे मिलने जा रहे हो आख़िर…”
अच्छे मियां को काटो तो खून नहीं…जैसे किसी ने रंगे हाथ पकड़ लिया हो। वो तो पूरी कोशिश कर रहे थे बेगम की नज़रों से छिपने की, लेकिन अपनी मौज में भूल गए कि बेगम को भुलावे में रखना नामुमकिन है। अब कोई चारा नहीं है सिवा इसके कि सारा सच बयां कर दिया जाए, बेगम को बता दिया जाए जो है असल बात…
बेगम..बात तो लंबी है लेकिन मैं मुख़्तसर सा बता देता हूं…वो छग्गन मियां के पोते हैं न सलीम साहब, उन्हें अपने दफ़्तर में काम करने वाली एक ख़ातून से इश्क़ हो गया है। और पिछले दिनों वो आकर यही कह गए कि चचा आपके और चची के बीच जो मोहब्बत है उसका मैं कायल हूं, तो थोड़ी ट्यूशन मुझे भी दे दीजिये। मैं तो बस सलीम मियां को कुछ बातें समझा रहा था मोहब्बत के मुताल्लिक़। और ये सूट भी उनपर खूब जंचता, सो उन्हीं को दे दूं सोचा, यहां तो पड़ा-पड़ा ख़राब हो रहा। न हो तो आप भी चलिये सैर पर, रोज़ सुबह वो मुझे सामने वाली गली में मिलते हैं आजकल…सिर पीट लिया है बेगम ने, समझ नहीं आ रहा ज़ार-ज़ार रोये कि भर-भर खुशी मनाएं। बस रास्ता छोड़ दिया है मियांजी का सैर पर जाने के लिये…
जानी मानी लेखिका