लोकायुक्त में फंसे भ्रष्ट अफसरों पर मेहरबान है सरकार, अभियोजन की स्वीकृति नहीं दे रहे विभाग

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भोपाल। शिवराज सरकार के भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉयरेंस के दावे की सच्चाई तब उजागर होती है, जब लोकायुक्त संगठन के आंकड़ों पर नजर डालते हैं। लोकायुक्त के आंकड़ों के अनुसार राज्य सरकार भ्रष्ट अधिकारियों पर जबर्दस्त मेहरबान है।
Government is not happy with the corrupt officials trapped in the Lokayukta, not approve of prosecution
यही कारण है कि सरकार भ्रष्टाचार में फंसे दो सैकड़ा से ज्यादा भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश करने की अनुमति नहीं दे रही है। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भ्रष्टों के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी के लिए विधि विभाग की अनिवार्यता खत्म कर सीधे विभागों को ही अधिकृत कर दिया था। इसके बाद से विभागों ने अभियोजन की मंजूरी देना ही बंद कर दिया है।

लोकायुक्त संगठन ने दो सैकड़ा से ज्यादा भ्रष्ट अफसरों की कुं डली तैयारी की है, जिनके यहां अनुपातहीन संपत्ति का पता चला है। जांच पूरी हो चुकी है, लेकिन चालान पेश करने की अनुमति सरकार नहीं दे रही है। मजेदार बात यह है कि लोकायुक्त की ओर से इस संंबंध में विभाग प्रमुखों से लेकर मुख्य सचिव तक को पत्र लिखा जा चुका है। जानकारी के अनुसार लोकायुक्त को राजस्व विभाग के 71 हैं।

सामान्य प्रशासन विभाग और पंचायत व ग्रामीण विकास विभाग के 26, सहकारिता के 25, वन विभाग के 11 अफसरों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति का इंतजार है। सामान्य प्रशासन विभाग ने आईएएस रमेश थेटे के खिलाफ भी अभियोजन की मंजूरी नहीं दी है। जबकि लोकायुक्त पुलिस ने जांच पूरी कर ली है अभियोजन स्वीकृति के इन मामलों में सबसे ज्यादा पुराना मामला बालाघाट के सहायक आदिवासी आयुक्त आनंद मिश्रा का है जिसमें उनके खिलाफ पद के दुरुपयोग का अपराध दर्ज था।

2013 में दमोह के एक मुख्य कार्यपालन अधिकारी आरके मिश्रा के खिलाफ भी लोकायुक्त पुलिस जांच पूरी कर चुकी है जिसकी अभियोजन स्वीकृति उस समय भेज दी गई थी। लोकायुक्त सचिव राजेन्द्र सिंह के अनुसार सरकार से अभियोजन की स्वीकृति की प्रतीक्षा है। ऐसे में चालान पेश नहीं हो पा रहा है।