पंकज शुक्ला
मप्र के स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधी बीते दिनों कोरिया यात्रा पर गए थे। यह यात्रा मप्र में शैक्षणिक सुधार लागू करने की दृष्टि से की गई थी। इस यात्रा का क्या हासिल होगा यह तो भविष्य बताएगा मगर फिलहाल तो यह जरूरी है कि बतौर मंत्री डॉ. चौधरी अपने विभाग की समस्याओं का समझें। वे वही न देखें जो अधिकारी दिखा रहे हैं या विदेशों की नकल में ही मप्र की लचर शिक्षा व्यवस्था का इलाज न खोजें।
एमबीबीएस डॉक्टर चौधरी राजनीति के नए खिलाड़ नहीं हैं। वे रायसेन क्षेत्र के अलावा कांग्रेस में अपनी पहचान रखते हैं मगर गुजरे एक हफ्ते में उनके साथ दो विवाद जुड़े। पहला तो यह कि जब पूरा देश 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मना कर अपने शिक्षकों का सम्मान कर रहा था मप्र में यह दिन सूना गुजरा। स्कूल शिक्षा विभाग ने राज्य स्तरीय सम्मान समारोह अगले दिन आयोजित किया क्योंकि स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. चौधरी सहित विभाग के कई बड़े अधिकारी दक्षिण कोरिया दौरे पर गए थे। वे 5 सितंबर को देर रात भोपाल लौटे इसलिए कार्यक्रम 6 सितंबर को रखा गया। यह तो एक तकनीकी कारण हो सकता है मगर 6 सितंबर को ही कांग्रेस के शिक्षकों के संगठन शिक्षक कांग्रेस में मंत्री डॉ. चौधरी ने जो कहा उससे पता चलता है कि वे अपने विभाग की मूल समस्याओं से सरकार बनने के 9 माह भी अब तक दो-चार नहीं हुए हैं।
मध्यप्रदेश शिक्षक कांग्रेस के प्रांतीय आभार सम्मेलन में राज्य सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए मंत्री डॉ. चौधरी ने कहा कि प्रदेश के स्कूलों एनसीईआरटी की किताबों को स्कूलों में पढ़ाना शुरू किया गया है। शिक्षकों की दक्षता वृद्धि के विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। उन तक यह बात पहुंची ही नहीं है कि शिक्षक संगठन प्रदेश की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों को पढ़ाने के निर्णय का विरोध कर रहे हैं। मप्र के ग्रामीण तो ठीक शहरी इलाकों में भी कई शिक्षक ऐसे हैं जिनके लिए एनसीईआरटी की गणित और विज्ञान की किताबों को पढ़ाना पहाड़ काटने जितना ही दुरूह है।
चार साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जब प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों को पढ़ाने का निर्णय लिया था तब भी तर्क दिया गया था कि मप्र के शिक्षकों के लिए इन किताबों को पढ़ाना आसान नहीं होगा। दिल्ली के स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली विज्ञान और गणित की किताबों को मंडला, झाबुआ या किसी अन्य इलाके का शिक्षक कैसे पढ़ा पाएगा? जबकि सरकार ने उसके प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था भी नहीं की है। नतीजा सामने है। अधिकांश स्कूलों में रट्टा मार पढ़ाई चल रहे है। करो और सीखो का मंत्र तो कहीं पीछे छूट गया है। डॉ. चौधरी वही कह गए जो अफसरों ने उन्हें बताया। यकीनन, अफसरों ने उन्हें यह नहीं बताया होगा कि 1993 व उसके बाद 1998 में बनी प्रो. यशपाल कमेटी ने अनुशंसा की है कि हर राज्य को अपने यहां अलग शिक्षा आयोग बना कर राज्य की जरूरत के अनुसार शिक्षा नीति बनानी चाहिए। उसे दूसरे राज्यों की नकल करने की जगह अपने राज्य की जरूरत के अनुसार किताबें बनानी चाहिए।
सरकारों की समस्या ही यही है कि वे विदेशी ढंग को देख कर यहां उसकी नकल की कोशिश करती हैं जबकि हमारे देश की प्रकृति वैसी नहीं है और न ही कौशल ही इतना विकसित है कि विदेशी सिस्टम को लागू कर पाए। 30 साल तक सफलता से चले होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम को अचानक बंद कर देने वाला तंत्र स्कूली शिक्षा का मर्ज समझे बगैर इलाज करने का आदी हो गया है। डॉ. चौधरी इस नब्ज को पकड़ सकें तो कुछ ठोस परिवर्तन संभव हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है