प्रदेश में दलित पॉलिटिक्स: भाजपा का ओबीसी महाकुंभ तो कांग्रेस की ओबीसी रैली

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भोपाल। आरोप-प्रत्यारोप, रैली-जनसभा, जातिगत सम्मेलन-प्रदर्शन प्रदेश में लगातार जारी ये सारी चीजें खुद ही बता देती हैं कि ये चुनावी साल है और सियासत अपने पूरे शबाब पर आ चुकी है। तमाम तरह के सम्मेलनों के बाद अब सियासी दल जिस ओर सबसे ज्यादा ध्यान दे रहे हैं वो है पिछड़ा प्रबंधन पॉलिटिक्स यानी चुनाव के लिए पिछड़ा वर्ग के वोटरों को साधने की कवायद।
Dalit Politics in the State: OBC Mahakumbh of BJP, OBC Rally of Congress
प्रदेश में 50 फीसदी से ज्यादा वोटर पिछड़ा वर्ग से आते हैं। अगर सत्ताधारी दल की बात की जाए तो सीएम शिवराज, भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार चौहान, उमा भारती, बाबूलाल गौर तो वहीं कांग्रेस में अरुण यादव, जीतू पटवारी जैसे दिग्गज पिछड़ा वर्ग से संबंध रखते हैं। यही वजह है कि दोनों पार्टियां पिछड़ा वर्ग को साध कर एक बड़े वोट बैंक को कब्जाने की कोशिशों में लगी हैं।

बीजेपी जहां इसकी शुरूआत 6 मई से सागर में ओबीसी महाकुंभ के जरिये करने वाली है तो इसके ठीक एक दिन बाद ही यानी 7 मई से कांग्रेस ने भी ओबीसी रैली निकालने की योजना बनाई है। दोनों पार्टियों के ये कदम बताते हैं कि बात चाहे रैली की हो या महाकुंभ की, लेकिन दोनों पार्टियों का लक्ष्य ओबीसी वोट बैंक है।

हालांकि कुछ मायनों में बीजेपी पिछड़े वर्ग की पॉलिटिक्स के मुद्दे पर कांग्रेस को घेरने की कोशिश में है। बीजेपी के पास सबसे बड़ा मुद्दा है चुनावी साल में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के पद से अरुण यादव को हटाना, जो कि पिछड़ा वर्ग से आते हैं। इसके साथ ही जिस तरह से बीजेपी 70 साल के शासन की दुहाई देकर तमाम अव्यवस्थाओं के लिए कांग्रेस को

बीजेपी ऐसा कोई भी मौका नहीं छोड़ना चाहेगी जो प्रदेश के सबसे बड़े वोटवर्ग को उसके करीब ला सके। इससे पहले सीएम की पत्नी साधना सिंह का किरार समाज का अध्यक्ष बनने के बाद समाज को एकजुट करने की बात कहना भी, किरार वोट बैंक को बीजेपी के लिए लामबंद करने की योजना का हिस्सा हो सकता है।

बीजेपी की तरह कांग्रेस भी इस तरह की कवायदों में लगी हुई है जो उसे प्रदेश के बड़े वोटबैंक के करीब ला सकें। अब तक किसानों के मुद्दे पर ड्रॉइंगरूम पॉलिटिक्स कर रही कांग्रेस भी जातियों को आधार बनाकर जमीन पर जाने की तैयारी में है। ओबीसी महाकुंभ के एक दिन बाद शुरू होने वाली ओबीसी रैली इसका प्रमाण है कि कांग्रेस किसी भी क्षेत्र में बीजेपी को वॉकओवर नहीं देना चाहती। यही वजह है कि चुनावी साल में बड़े चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की कवायद में अरुण यादव को दरकिनार करने के बाद भी जीतू पटवारी को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर उसने पिछड़ा वर्ग को खुश करने का प्रयास किया।

कांग्रेस खुद भी जातियों की राजनीति कर रही है, लेकिन कांग्रेस नेता ये आरोप लगाने से भी नहीं चूक रहे कि बीजेपी के पास जातियों की राजनीति करने के सिवा कुछ भी नहीं है। देखने वाली बात ये है कि दोनों ही पार्टियों के नेता जब मंच से भाषण देते हैं तो विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य की बात करते हैं, लेकिन जिस मंच से ये भाषण दिया जा रहा होता है वो मंच कभी किरार समाज का होता है तो कभी ओबीसी समाज का तो दलित संगठनों का।