डूब रहे नर्मदा बांध प्रभावित : फिक्र है तो कुछ कीजिए

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पंकज शुक्‍ला

प्रदेश में बारिश का दौर जारी है। गुजरात में बने सरदार सरोवर बांध के गेट न खोलने से नर्मदा का जल स्‍तर बढ़ रहा है। मालवा-निमाड़ के हजारों लोग, उनकी आजीविका के साधन डूब रहे हैं। मेधा पाटकर के नेतृत्‍व में आंदोलन करते-करते बांध पीडि़त हताशा की कगार तक जा पहुंचे हैं।

बिना पुनर्वास और मुआवजे के डूबते निमाड़ और मालवा के लिए किसे दोषी माना जाए? उस कांग्रेस को जो अभी और 15 साल पहले सरकार में थी या उस भाजपा को जो 15 सालों तक सरकार में रही और अब कह रही है कि विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस ने बांध प्रभावितों के साथ झूठा वाद कर छल किया है? हमारी संवेदना का स्‍तर इतना ही है कि हम अपने घर की सीलन भरी दीवारों से परेशान हैं और दूसरी तरफ वहां नर्मदा किनारे जिंदगियां डूब रही हैं।

रविवार को ही बड़वानी में जिला भाजपा की बैठक को संबोधित करते हुए भाजपा के प्रदेश अध्‍यक्ष राकेश सिंह ने कहा कि सरदार सरोवर बांध के डूब प्रभावितों को भाजपा सरकार ने 200 करोड़ का पैकेज दिया और प्रत्येक प्रभावित को 5 लाख 80 हजार रूपए देने का तय किया था। जबकि कांग्रेस सरकार ने चुनाव के पूर्व डूब प्रभावितों को लेकर यह घोषणा की थी कि उन्हें 8 लाख 80 हजार रूपए देंगे। लेकिन आज कांग्रेस सरकार को 9 माह होने को हैं, लेकिन डूब प्रभावित आज भी चक्कर लगा रहे हैं। इन्हें 8 लाख 80 हजार तो दूर की बात है 80 हजार भी सरकार ने नहीं दिए हैं। यह सरकार झूठी घोषणाओं पर टिकी हुई सरकार है। इसलिए हमें जनता की आवाज बनकर उनकी लड़ाई लड़नी है।
दूसरी तरफ, मुख्‍यमंत्री कमलनाथ और उनके मंत्री केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को पत्र लिख कर मप्र के हक को नजरअंदाज करने पर नाराजगी जता चुके हैं। 13 सितंबर को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री नाथ ने कहा कि पानी संविधान के अनुच्छेद सात में समवर्ती सूची का विषय है। संविधान की संघीय व्यवस्था में जो निर्णय महत्वपूर्ण हैं, उनमें एजेंसी ने निष्पक्षता के सिद्धांत पर अमल नहीं किया। मध्यप्रदेश सरकार का मत है कि नर्मदा कन्ट्रोल अथॉरिटी, जिसका गठन अवार्ड का अमल करवाने के लिए हुआ था, वह अपने कर्तव्यों का पालन करने और सहभागी राज्यों के हितों की रक्षा करने में असफल साबित हुई है। उसने ऐसे निर्णय लिए हैं, जिनसे प्रदेश के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

नाथ ने इसके उदाहरण भी दिये हैं। पिछले दो दशकों में ट्रिब्यूनल द्वारा तय राहत और पुनर्वास की लागत देने में गुजरात सरकार असफल साबित हुई है। गुजरात सरकार और नर्मदा कन्‍ट्रोल अथॉरिटी को तत्काल प्रभाव से इन मुद्दों पर विचार करना चाहिए और राहत एवं पुनर्वास  के लिए मध्यप्रदेश को पर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराना चाहिए ताकि मध्यप्रदेश को अनावश्यक रूप से वित्तीय भार नहीं उठाना पड़े। नाथ ने स्‍वयं माना कि वर्ष 2017 और 2018 में कम बारिश हुई थी। सरदार सरोवर जलाशय पूर्ण क्षमता तक नहीं भरा, परिणाम स्वरूप 2,679 लोग अभी भी डूब क्षेत्र में रहे हैं। उन्हें अभी अन्य स्थान पर स्थापित किया जाना है। इसके लिए समय और संसाधन की जरूरत होगी।

इस मामले का तीसरा पक्ष है नर्मदा डूब पीडि़तों का दर्द। गुजरात की अनसुनी के कारण वे डूब रहे हैं। उनका कहना है कि पन्‍द्रह साल मध्‍यप्रदेश की सत्‍ता संभालने वाली भाजपा की सरकार ने लिख कर झूठ कहा था और भरे-पूरे डूब क्षेत्र को पूर्ण विस्‍थापित और मानव-रहित बता दिया था। तत्‍कालीन सरकार ने कहा था कि क्षेत्र में पुनर्वास पूरी तरह हो गया है जबकि वर्तमान सरकार मान रही है कि पुनर्वास नहीं हुआ है। भाजपा सरकार के कहने पर बांध को पूरा भरे जाने का फैसला हो गया और अब लोग डूब रहे हैं। सरकार सक्रिय हैं, राजनेता सक्रिय हैं। वे आरोप-प्रत्‍यारोप लगा रहे हैं। मगर न केन्‍द्र और न ही गुजरात सरकार इन नेताओं की और समाज की एक भी बात सुन रही है। इस तरह  इन गांवों को बिना किसी पुनर्वास-पैकेज के ही डूब से निपटना पड़ेगा। क्‍या इस लापरवाही पर हम यही कहेंगे कि विकास के लिए किसी को तो बलि देनी होगी?
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है