किस्सा ए अच्छे ख़ां-उर्फ़ मियां जी का मिज़ाज

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श्रुति कुशवाहा

अच्छे मियां की सेहत का हाल ऐसा है मानो रेशम में टाट का पैबन्द…
कभी उनकी सेहत रेशम सी हुई जाती…मिज़ाज नर्म नवाबी, रंगत खिली-खिली खुली-खुली, ज़बान में मुलायमियत और छुअन में नाज़ुकी। यूं पाए जाते अपने दालान में जैसे सूती चादरों के बीच कोई रेशमी रंग खिला हो। सभी से हंस-हंसकर बोलना, मिसरी सी मिठास से आसपास के बच्चों को लुभा लेना, मोहल्ले भर की नई बहुओं के सबसे प्यारे चचाजान के तौर पर तो यूं भी मशहूर हैं और कभी किसी घर की बेटी अपने सिर पर टुपट्टा नहीं संभालती जो इनके सामने से गुज़रे तो। सभी को मालूम है कि चचा किस कदर आंखों से शर्मदार और दिल से साफ़ हैं। जब ऐसे होते तो रेशम का फूल होते हैं अच्छे मियां…
लेकिन जब टाट के पैबन्द सी फितरत में आते तो बड़े से बड़े फकीर को भी मात दे जाती उनकी हरक़तें। रूखी खुरदुरी बोली के साथ राजकुमार और सायरा बानो को आवाज़ देते तो वो दोनों भी मारे डर के दुबक जाते कोने में। आवाज़ की लज्ज़त सारी जैसे बड़े बाज़ार में छोड़ आए हों। मिज़ाज से अनमने, अंदाज़ में बेरूखी, आवाज़ में तीखे और चिढ़चिढ़ेपन की दुकान हो जाते। इस रूप में तो मोहल्ले के आवारा जानवर तक उनसे डरे-डरे दूर-दूर रहते। मजाल जो कोई ऐसे में उनसे एक कप चाय की फरमाईश कर बैठे या बगल की बिट्टो ही गोद में आ चाकलेट को मचल जाए। इस दौरान पूरी तरह टाट के पर्दे से बंद-बंद होते अच्छे मियां…
बेगम कुछ दिनों से महसूस कर रही हैं अच्छे मियां में आई इन तब्दिलियों को। जाने कैसे तो होते जा रहे हैं, पता ही न चलता कि मियां का मूड कब गुलाब है और कब नागफ़नी। बेगम ने पहले तो इन बातों को नज़रअंदाज़ किया, लेकिन धीरे-धीरे देख रही हैं कि उनके मिज़ाज में इस तरह के उतार-चढ़ाव बढ़ते जा रहे हैं। एक दम तो उन्होने पूछ भी लिया मियांजी से कि ये आजकल तुम्हें हो क्या गया है, कभी तो पानी की तरह रहते हो और कभी ज़हर हो जाते। लेकिन इसके जवाब में अच्छे मियां ने बस एक नज़र देखा बेगम को और बाहेर चले गए। उन नज़र में जाने कैसा खालीपन था कि बेगम के दिल में हौल उठ गए। वो समझ गई कि मामला कुछ संजीदा है। ऐसे तो न थे उनके अच्छे मियां जो पल में तोला पल में माशा हो जाएं, उनके मियां तो पूरी बिरादरी में अपनी खुशमिज़ाजी और मीठी बातों के लिये जाने जाते हैं…
तो बेगम साहिबा ने ग़ौर करना शुरू किया..आखिर ऐसा क्या होता है कि बैठे-बिठाए अच्छे मियां का मूड गर्म रेत की आंधियों से घिरा रेगिस्तान हो जाता। सुबह-सुबह जब वो उठते तब तो नल के पानी की तरह बिल्कुल एक ही धार में बह रहे होते, न ज़्यादा ठंडे न ज़्यादा गर्म, बिल्कुल ठीकठाक औसत। इसके बाद वो चाय की प्याली के साथ अखबार लेकर बैठ जाते…
हां..बस यही है वो पल जब अच्छे मियां के मिज़ाज में रेशम या टाट का उगना शुरू होता है। बेगम कई दिनों तक ग़ौर से देखने के बाद इस नतीजे पर पहुंची है कि अखबार पढ़ते-पढ़ते ही मियांजी के मूड में ठंडी बयार का बहना शुरू होता या फिर आंधी आ जाती। अखबार ख़तम करते-करते उनके चेहरे पर सुकून या बेचैनी के आलम को पढ़ना कोई मुश्किल काम न था। बेगम ने ठीकठीक समझ लिया है कि ये मुआ अखबार की उनके मियां की परेशानी का सबब है…
तो अगले दिन यूं किया बेगम ने कि मुंह अंधेरे उठ गई और दरवाज़े पर आ खड़ी हुईं। जैसे ही अखबार डालने वाला आया उन्होने उसे रोक दिया, कह दिया कि आज से अखबार नहीं चाहिये। अब जब तक वो खुद न बोलें तब तक यहां अखबर न डाले। ये ताकीद कर वो भीतर आ अपने काम में जुट गईं। कुछ देर बाद अच्छे मियां उठे और दालान में आ अखबार तलाशने लगे। लेकिन अखबार तो…
अखबार आया नहीं, रेडियो खराब पड़ा है और टीवी में केबल लगवाया नहीं है। तो अच्छे मियां को आज दुनिया की कोई ख़बर नहीं लग पाई है। चाय की प्याली ले वो एकबारगी उठे कि पड़ोस से अखबार मांग लाएं, लेकिन फिर वापस मुड़ गए। आखिर सुबह-सुबह सभी अखबार पढ़ते हैं, ऐसे में इस वक्त मांगना कोई ठीक लगता है क्या। ख़ैर, आज अखबार बिना सही, लेकिन उसके बिना तो चाय में भी कोई स्वाद नहीं आता…
एक दिन, दो दिन, तीन दिन…अच्छे मियां समझ नहीं पा रहे कि अखबार आखिर आ क्यों नहीं रहा। और सिर्फ उन्हीं के घर नहीं आ रहा, मोहल्ले भर में तो लड़का रोज़ ही डाल रहा अखबार। अब जो भी दिक्कत हो मियां जी को, हल तो बेगम के ही पास होता है। सो उन्होने आवाज़ दी बेगम को…
सवाल सुनकर बेगम ने साफ़ बता दिया कि अखबार बंद करा दिया गया है। ये बैरी बारह पन्नों का अखबार उनके मियां की ज़िंदगी में अज़ाब बन गया है। सुबह-सुबह हाथ में लेते ही जैसे कोई जादू कर देता, कभी अच्छा जादू कभी काला जादू। बेगम ने बताया कि किस तरह उनके मिज़ाज में ज्वार-भाटे आने लगे थे पिछले दिनों, और इस बात की शिकायत उनके दोस्तों से लेकर चार साल की बिट्टो तक कर चुकी है। बस इसीलिये बंद करा दिया अखबार…
अच्छे मियां खामोश हो गए एकदम। बेगम को तो लगा था कि थोड़ा चिढ़चिढ़ाएंगे, कुछ खरीखोटी कहेंगे, न हुआ तो दुबारा अखबार लगाने को ही बोलेंगे, लेकिन..मियांजी तो जैसे काठ के हो गए उनकी बात सुनकर…
बेगम वाक़ई फ़िक्रज़दा हो गई हैं, कुछ कहने को हुई ही थी कि अच्छे मियां बोल पड़े- “सही कह रही हैं आप, पिछले कुछ वक्त से वाकई हम अजीब से होते जा रहे हैं, हमारे मिज़ाज से आप और बाकी सब भी परेशान हुए ये सुन हमें बहुत ख़राब लग रहा है। लेकिन आप ही बताइये कि जिस तरह के हालात हो गए हैं इन दिनों, उन्हें पढ़कर जानकर कोई भी शख्स बेअसर कैसे रह सकता है? चोरी, डाका, लूटपाट, छेड़खानी जैसे जुर्म तो हमेशा से होते रहे  हैं, लेकिन आज के हालात तो इतने खौफ़नाक हो गए हैं कि सहना मुश्किल हो गया है। कहीं बच्चियों के साथ हैवानियत हो रही है तो कहीं जवान लड़के कामकाज न मिलने पर खुद की जान ले रहे हैं। और तो और जिस मज़हब ने हम सबको आज तक बांधकर रखा है, संभाले रखा है, उसी के नाम पर अब ज़िंदगियां ली जा रही है, मज़हब अगर जिंदगी देने की बजाय लेने लगे तो किस काम का। मज़हब के नाम पर हमें बांटने का जो सिलसिला शुरू हुआ है अब, उसमें आप, हम, शकीर मियां, ठाकुर साहब, शर्माजी, निगम साहब जैसे आम लोग आखिर जाएं कहां? यही सब पढ़ते पढ़ते शायद अब हम खुद पर काबू खो बैठते और इन खबरों की तल्खी हमारे मिज़ाज में झलकने लगती ।”…
खामोशी पसरी है दोनों के बीच, कोई कुछ न कह पा रहा  है, बेगम जानती हैं कि इस मसले का हल अखबार बंद कर देना नहीं है, ये अखबार की ग़लती नहीं है.. लेकिन जाने किसकी ग़लती है जो माहौल यूं खौफ़ज़दा होता जा रहा है, इन बातों ने तो उन्हें भी परेशान किया हुआ है…
बेगम ने अच्छे मियां का हाथ पकड़ कहा..कल से अखबार शुरू कर देती हूं, तुम्हें ख़बरों से दूर रखना इस बात का हल नहीं है, लेकिन वादा करो कि अबसे अगर किसी ख़बर को पढ़ बेचैन होओगे तो बात करोगे उसपर, यूं अनमने न हो जाओगे। और जिन हालात पर फ़िक्र से घुले जा रहे हो, हम अपनी तरफ से हर मुमक़िन कोशिश करेंगे कि जितना हो उसमें सुधार कर सकें, अपनी तरफ से बित्ते भर की इतनी कोशिश तो कर ही सकते हैं हम…
अच्छे मियां ने भी बेगम का हाथ थाम लिया है, वो समझते है कि जो सभी लोग बित्ते-बित्ते भर की इन अच्छी कोशिशों को अंजाम देने में लग जाएं तो हालात बदलते देर नहीं लगेगी। रेशम के फूल खिलाने की ज़िम्मेदारी भी तो आख़िर हम सबपर ही है….
जानी मानी लेखिका