हे लोकतंत्र के मालिको: राम जैसा एक भी गुण हो तो ही मरेगा रावण

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राघवेंद्र सिंह
फिर एक पुरानी कहावत याद आई। अच्छी बातें तो बुरे लोग भी करते हैं। आदमी हमेशा कर्मों से जाना जाता है। राम जैसी बातें तो बहुत करते हैं मगर हर साल विजयादशमीं पर रावण वध करने वालों में शायद एक भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम के गुणों में से एक भी अच्छाई होती तो रावण भले ही नहीं मरता मगर हर साल वह बढ़ता भी नहीं। रावण तो राम से ही मरेगा और त्रेता युग के बाद पूरी मानवता को राम की तलाश है जो रावण को सच में मारे। देवी शक्ति की पूजा के नौ दिन सोमवार को पूरे हो रहे हैं। यह संयोग ही है कि इस मौके पर न काहू से बैर भी आपके सामने हाजिर होगा। इसलिए आपना भी बाल मन देवी शक्ति, राम और रावण पर छटांक भर बातें करने की बालहठ पर उतारू है। सियासत से लेकर समाज और मीडिया में उपदेश क्विंटलों से है और आचरण में तोलामाशा भी नहीं है। यानि पाखंड की पराकाष्ठा।
शक्ति की उपासना के नौ दिन सबसे ज्यादा साधु संत फिर राजनेता और उसके बाद गृहस्थी के बोझ तले दबे कुचले परिवारों की नारी शक्ति सबसे ज्यादा साधना और उपासना करती है। देश और समाज को दिशा देने वाले सत्ताधीशों को आमतौर पर दशहरे पर रावण दहन का सौभाग्य प्राप्त होता है। हैरत की बात है लोकतंत्र की तंगगलियों से गुजरकर सत्ता के राजमार्ग पर विचरण करने वाले मंत्री संतरी हर साल दस सिर वाले रावण को मारते हैं। मगर वह मरने के बजाए हर साल अपने साथ लाखों करोड़ों रावण पैदा कर फिर चुनौती देता है कोई राम आए और उसे मारे। ये रावण सड़क बांध,पुल,अस्पताल,स्कूल से लेकर तहसील,कलेक्टर आफिस और पुलिस मुख्यालय से होता हुआ राज्य मंत्रालय तक बेखौफ विचरण करता है। तभी तो कभी व्यापमं होता है और कभी बहुचर्चित सैक्स स्केंडल हनी जाल सामने आता है। राम और रावण के इस युध्द में अब रावण नहीं मरता। यही वजह है कि हर बार भ्रष्टाचार और व्याभिचार के मामले पहले से ज्यादा विकराल रूप धारण करते हैं। ठीक वैसे ही जैसे विजयादशमीं पर रावण के पुतले विगत वर्षों की तुलना में ज्यादा सुरसा के मुंह की तरह बढ़ते जा रहे हैं। अब यहां राम होना तो दूर हनुमान की तरह कोई रामभक्त नहीं है जो सुरसा से बढ़ रहे पापियों को मार सके। सब जगह रावणों की भरमार है। वे वेष बदलकर सबको भरमाए हुए हैं। कहीं साधु संत,मुल्ला मौलवी,पादरी और राजनेता के साथ अफसर और कुछ मीडिया कर्मी भी मौके मौके पर रावण के रूप में बेनकाब हो रहे हैं। असल में इन रावणों का दहन कर विजयादशमीं मनाने की जरूरत है। इससे उलट हो ये रहा है कि इन जैसे ही रावण हर साल रावण को मारते हैं।
अब भला बताईये इन लुच्चे और टुच्चे रावणों से क्या महाज्ञानी महापंडित और महा बलशाली शिवभक्त रावण मर सकता है। जाहिर है इसलिए वह हर साल बड़ा हो रहा है और टुच्चे रावणों की संख्या पहले नगर गांव में इक्का दुक्का होती थी वह अब मुहल्ले मुहल्ले से लेकर घर घर तक पहुंच गई है। रावण न होकर समझने के हिसाब से वह रक्त बीज की तरह हो गया है। जैसे रक्त बीज के मरने पर उसकी जितनी बूंदे पृथ्वी पर गिरती थी उतने रक्त बीज पैदा हो जाते थे। नवरात्रि में खप्पर वाली माईं ने रक्त बीज का रहस्य जानने के बाद उसका सिर काटते ही बहते खून को धरती पर गिरने से पहले अपने खप्पर में भर लेती थीं। हर दिन बलात्कार की शिकार हो रहीं नन्हीं बेटियों से लेकर बेबस महिलाओं को भी अब चंडी बनने की जरूरत है। दरअसल सीता का हरण तो रावण कर लेता है और उन्हें लेने राम भी आते हैं। युध्द भी करते हैं।रावण को मारते भी हैं। यह सब तब होता है जब उनके साथ हुनमान, सुग्रीव,अंगद,जामवंत के साथ विभीषण भी होता है। इसी तरह चीरहरण की शिकार होती द्रोपदी को भी केशव बचाने आते हैं। मगर अब न तो राम हैं न कृष्ण। अगर हैं तो रावण ही रावण। ये सब कहीं समाज और सियासत में राम बने बैठे हैं।
वैसे तो कल विजयादशमीं है लेकिन सत्य ये है कि रावण मरेगा नहीं। पहले से ज्यादा बड़ा भी होगा। संख्या बल में भी और अब उसके दस मुख नहीं होंगे अब वह हजार और लाखों मुंह वाला रावण हो रहा है। हर साल इनके पाप कर्म के साथ एक नई पाखंडियों की फौज तैयार हो रही है।ये रावण कभी यह टू जी फोर जी घोटाला करते हैं तो कभी हजारों करोड़ के बैंक घोटाले कर विदेश भाग जाते हैं।  देश के शासक वनवासी राम बन उन्हें पैदल पैदल यहां वहां खोजते फिर भारत लाने का दावा करते हैं।
सुबह-शाम राम का नाम लेने वाले अन्नदाता फसलों के बर्बाद होने पर राम बने शासकों से जब मदद की गुहार करते हैं तो ये राम के बजाए आश्वासन देकर रावण के रूप में नजर आते हैं। ऐसे ही बेटियों को बचाने और पढ़ाने की बात करने वाले राम बने शासक उनकी इज्जत बचाना तो दूर शिक्षण संस्थानों में पीने के पानी और शौचालय तक की व्यवस्था नहीं कर पाते हैं। ढिंढोरा इनसे चाह जितना पिटवा लो लेकिन ये अपने कर्मों से सत्य कम असत्य ज्यादा नजर आते हैं। दशहरा सत्य पर असत्य की जीत का उत्सव है। इस बार उम्मीद करनी चाहिए कि थोड़ी बहुत सच की भी जीत होगी। वैसे भी उम्मीद पर आसमान टिका है। राम और कृष्ण भी कई वर्षों तक धर्म की हानि हुई तब उन्होंने जन्म लिया था।
राघवेंद्र सिंह
लेखक IND24 के प्रबंध संपादक