मैं बहती नदी हूं, अपना रास्ता खुद बनाती हूं……..

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मधुबाला

मैं बहती नदी हूं,
अपना रास्ता खुद बनाती हूं।
क्योंकि मैं कोशिश करने से,
कहां घबराती हूं।
मैं हवा हूं,
अपनी मर्ज़ी से चलती हूं।
क्योंकि मैं किसी से,
इज़ाजत कहां मांगती हूं।
मैं बादल हूं,
दिल भर आया हो,
तो आंखों से,
बरस भी लेती हूं,
क्योंकि होंसला पहाड़ों सा,
पर दिल मोम सा जो रखती हूं।
मैं धरा हूं,
क्या कुछ नहीं सहती हूं।
क्योंकि चाहे करले ज़माना,
लाख रुसवाई।
पर हमने सब से,
वफ़ा ही निभाई।
हमनें तो अपनी सोच,
यही है बनाई,
जहां काम आए सच्चाई
वहा क्या करेंगे ,
करके चतुराई।