सुभाष यादव: दावे से बदली स्कू्लों की तस्वीेर प्रशिक्षु आईएएस को बताएंगे नवाचार

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पंकज शुक्ला

धार जिले के नालछा विकासखंड के ग्राम कागदीपुरा के प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक सुभाष यादव को मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्रीस राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी में संबोधित करने के लिए बुलाया गया है। वे 19 नवंबर को आईएएस, आईपीएस, आईआरएस सहित 94 वें फाउंडेशन कोर्स के प्रशिक्षु प्रशासनिक अधिकारियों को प्राथमिक शिक्षा में किए गए अपने नवाचारों के बारे में बताएंगे। यादव को अकादमी में बुलाया जाना प्राथमिक शिक्षा में किए जा रहे उनके कामों को विस्तार देने का एक प्रयास माना जाना चाहिए। इस बहाने मप्र में प्राथमिक शिक्षा के स्तर और उसमें सुधार के उपायों पर भी बात की जा सकती है।

प्रदेश के शिक्षा जगत में सुभाष यादव का नाम तब चर्चा में आया था जब उन्हें अध्यापन के क्षेत्र में नवाचार के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए चुना गया। उनका योगदान इस मायने में अहम था कि यादव ने ग्राम आली में अपनी तरह से पढ़ाई करवाते हुए गांव के 52 बच्चों का नवोदय विद्यालय के लिए चयन करवाया। यह तो एक पैमाना था जिनके कारण उन्हें सम्मान मिला। इसके अलावा भी उनके नवाचार शिक्षा जगत में चर्चा के केन्द्र रहे हैं। मानव संसाधन विकास विभाग ने कुछ साल पहले शाला सिद्धी योजना के जरिए शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने की पहल की जबकि यादव तो 20 साल पहले से यह पद्धति अपने स्तर पर अपनाए हुए हैं। वे प्रदेश के उन गिनेचुने शिक्षकों में शामिल हैं जिन्होंने खुद टीचिंग एड यानी सहायक सामग्री बना कर बच्चों की पढ़ाई को रुचिकर बनाया है।

मसलन, उनकी कक्षा में कोई बच्चा उपस्थिति पर ‘यस सर’ या ‘उपस्थित गुरुजी’ नहीं कहता। बच्चों को एक दिन पहले बता दिया जाता है फिर उसी के अनुसार अगले दिन बच्चे दो या तीन अंकों की संख्या, किसी फल या सब्जी का नाम, कोई अक्षर और उससे बना शब्द, गणित के किसी सवाल को हल करते हुए अपनी उपस्थित दर्ज करवाते हैं। उपस्थिति कक्षा का कोई बच्चा लेता है। अध्यापक यादव बच्चों के बीच में बैठते हैं। इसी तरह, पांच-पांच बच्चों का समूह बना कर उन्हें साथ पढ़ने को प्रेरित किया गया।

यादव ने बताया कि ग्रामीण स्कूलों में अधिकांश बच्चे गणित और भाषा के कारण पढ़ाई छोड़ देते हैं। उन्होंने मजदूर परिवारों के गांव में बच्चों को सरल तरीकों से गणित और हिन्दी सिखाई। इसी का नतीजा है पहले जब गांव आली के 52 बच्चों का अलग-अलग सालों में नवोदय में चयन हुआ तो साथी शिक्षकों ने ही चुनौती दी कि उनकी पद्धति में इतनी ही ताकत है तो किसी आदिवासी इलाके में यह करिश्मा करके दिखाएं। तब यादव का तबादला आदिवासी गांव कागदीपुरा में हुआ। संसाधनविहीन गांव में पहले तो बच्चे कक्षा में आते ही नहीं थे अब तीन सालों में यहां से चार बच्चों का नवोदय में चयन हो चुका है। यही नहीं आसपास के गांवों के बच्चे भी कागदीपुरा में पढ़ने आने लगे हैं। यादव कहते हैं कि उन्होंने स्कूल में सीखने के कोने बना कर बच्चों को खेल-खेल में खुद प्रयोग कर पढ़ने को प्रेरित किया। बच्चों को अवसर दिए कि वे खुद अपनी बात कहें और जहां बाधा है उसे साथी बच्चों के साथ मिल कर हल करें।

यादव के पढ़ाए हुए बच्चे आज कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं। बच्चे जब सफल होने लगे तो उन्हें अपने विभाग के उच्च अधिकारियों का भी सहयोग मिला। ये दोनों ही बातें इतनी अहम नहीं है जितना यह तथ्य कि यादव के शिक्षण तरीकों से कई सौ गरीब बच्चों ने शिक्षा पाई और अपने जीवन को बेहतर बनाया। इन तरीकों को प्रशिक्षु अधिकारी तो जानेंगे ही अधिक महत्वपूर्ण यह होगा कि खुद उनके विभाग में इन तरीकों को दिल से अपनाया जाए ताकि रटंत विद्या पा रहे बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पा सकें।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है